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देश का पहला शहर जहां नहीं है डंपिंग यार्ड, गांधी जयंती पर मिला अवार्ड

दिल्ली में पहाड़नुमा डंपिंग यार्ड के धसकने से हाल ही एक बड़ा हादसा हुआ था। इस घटना ने महानगरों में डंपिंग यार्ड की समस्या को नए सिरे से रेखांकित किया।

By Tilak RajEdited By: Updated: Wed, 04 Oct 2017 09:43 AM (IST)
देश का पहला शहर जहां नहीं है डंपिंग यार्ड, गांधी जयंती पर मिला अवार्ड

अंबिकापुर, ब्यूरो। डंपिंग यार्ड यानी वह जगह जहां शहर भर के कचरे को एकत्र किया जाता है। छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर शहर में डंपिंग यार्ड नहीं है। यह देश का पहला डंपिंग यार्ड विहीन शहर बन गया है। अंबिकापुर के कचरा प्रबंधन मॉडल को देश के लिए रोल मॉडल करार दिया गया है। गत दिवस गांधी जयंती पर इस मॉडल को राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया। इसकी एक खूबी यह भी है कि यह पूरा सिस्टम महिलाओं द्वारा संचालित किया जा रहा है। सैकड़ों महिलाओं को इससे रोजगार प्राप्त हुआ है।

देश का ऐसा पहला शहर
दिल्ली में पहाड़नुमा डंपिंग यार्ड के धसकने से हाल ही एक बड़ा हादसा हुआ था। इस घटना ने महानगरों में डंपिंग यार्ड की समस्या को नए सिरे से रेखांकित किया। कचरा प्रबंधन के अंबिकापुर मॉडल की सबसे बड़ी खूबी यही है कि इसमें डंपिंग यार्ड की जरूरत ही नहीं पड़ती। यही नहीं, अंबिकापुर देश का पहला शहर है, जहां डंपिंग यार्ड नहीं है। पुराना डंपिंग यार्ड अब खूबसूरत पार्क में तब्दील कर दिया गया है। अब यहां कहीं भी कचरे का ढेर नहीं लगाया जाता। हालांकि इस शहर की आबादी कम है, लेकिन इस स्तर के अन्य शहरों की अपेक्षा यह अव्वल स्थान पर है। कचरा प्रबंधन का इसका मॉडल देश में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। देशभर में इसे अपनाया जाना है।

ये है इस मॉडल की खूबी
डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण और सॉलिड एंड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट (एसएलआरएम) यानी सूखे और गीले कचरे को छांटकर अलग करना, इन दो प्रक्रियाओं पर आधारित है यह मॉडल। इसकी शुरुआत यहां दो साल पहले हुई थी। तत्कालीन कलेक्टर ऋतु सेन ने इसकी योजना बनाई थी। इसके तहत निगम के 48 वार्डों में स्वच्छ अंबिकापुर मिशन सहकारी समिति का गठन किया गया। इसकी सभी सदस्य महिलाएं हैं।

ऐसे होता है काम
इसमें 500 से अधिक महिलाओं को घर-घर जाकर कचरा संग्रहण का जिम्मा सौंपा गया है। ये महिलाएं हर दिन घर-घर जाकर कचरा एकत्र करती हैं। हरे रंग की साड़ी, मास्क और दस्ताने पहनीं ये महिलाएं इलेक्ट्रिक रिक्शेनुमा ट्रॉली वाले वाहन पर सवार हो इस काम को तत्परता से अंजाम देती हैं। इसके बाद 17 एसएलआरएम सेंटरों में कचरे को पहुंचाती हैं। जहां कचरे की छंटाई की जाती है। गीले कचरे को खाद में तब्दील कर दिया जाता है। और सूखे कचरे को रिसाइकिल करने के लिए कबाड़ में बेच दिया जाता है।

गुठली के दाम
जैविक खाद से तो आय हो ही रही है। कबाड़ को बेचकर भी समिति को लाखों रुपये प्राप्त हो रहे हैं। वहीं, घरों से कचरा संग्रहण के एवज में हर घर से 50 रुपये मासिक शुल्क लिया जाता है। शहर के तालाबों को स्वच्छ रखना भी इस मॉडल में शामिल है। तालाबों में बतख पालन से तालाबों की सफाई तो हो रही है, साथ ही अंडों से भी अतिरिक्त आय हासिल हो रही है। यह पूरा मॉडल वित्त के मामले में आत्मनिर्भर है। करीब एक हजार महिलाओं को इससे रोजगार प्राप्त हुआ है।

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