सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि उग्रवाद के आगमन के साथ घाटी से विस्थापित हुए 4.5 लाख कश्मीरियों के बारे में बहुत कम कहा गया जिससे उनका सच सामने नहीं आया। बता दें कि जस्टिस कौल खुद एक कश्मीरी पंडित हैं और उन्हें लगता है कि 30 साल से अधिक की बेलगाम हिंसा के बाद लोगों के लिए आगे बढ़ने का समय आ गया।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा है कि उग्रवाद के आगमन के साथ घाटी से विस्थापित हुए 4.5 लाख कश्मीरियों के बारे में बहुत कम कहा गया, जिससे उनका पूरा सच सामने नहीं आया। ऐसा संभवत: इसलिए हुआ, क्योंकि वे इतने बड़े वोट बैंक नहीं थे कि उनके मामले में किसी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप किया जाता।
जस्टिस कौल सुप्रीम कोर्ट की उस संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा था। उन्होंने कहा,
उग्रवाद के कारण शांति भंग होने से पहले विभिन्न समुदायों के लोग एक साथ रहते थे और उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा है कि स्थिति 'धीरे-धीरे खराब' कैसे हो गई।
जस्टिस कौल खुद एक कश्मीरी पंडित हैं और उन्हें लगता है कि 30 साल से अधिक की बेलगाम हिंसा के बाद अब लोगों के लिए आगे बढ़ने का समय आ गया है।
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क्या कुछ बोले जस्टिस संजय किशन कौल?
जस्टिस कौल ने प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के फैसले का भी जिक्र किया और कहा,
यह एक सर्वसम्मत फैसला था। इसका मतलब है कि हम सबने जरूर यह सोचा होगा कि यही सही रास्ता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि हर फैसले, खासकर महत्वपूर्ण फैसले पर बहस होती है। ऐसे भी लोग होंगे, जिनका नजरिया अलग होगा, लेकिन मेरे ऊपर इसका प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि कोई निर्णय एक स्थिति में एक राय है। हमें इसके बारे में अति संवेदनशील नहीं होना चाहिए।
सेवानिवृत्ति के बाद पद को लेकर जज खुद करें फैसला
संवैधानिक अदालतों के पूर्व न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी कार्यभार संभालना चाहिए या नहीं, इस पर लोगों की राय विभाजित है। इस बीच, जस्टिस एसके कौल ने विचार व्यक्त किया है कि जिन लोगों को ऐसी जिम्मेदारी की पेशकश की गई है, उन्हें खुद निर्णय लेने की अनुमति दी जानी चाहिए।उन्होंने कहा कि यह संवैधानिक अदालतों के न्यायाधीश पर छोड़ दें कि वह क्या करना चाहते हैं। बताते चलें, एक तरफ जहां भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीशों-जस्टिस जेएस खेहर, आरएम लोढ़ा और एसएच कपाडि़या ने घोषणा की थी कि वह सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद नहीं लेंगे।
यह भी पढ़ें: Supreme Court की फटकार के बाद दिल्ली सरकार ने RRTS कॉरिडोर के लिए जारी किए 150 करोड़वहीं, एक अन्य सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई को सेवानिवृत्त होने के बाद राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया था। पूर्व सीजेआई पी सतशिवम को भी रिटायर होने के बाद केरल का राज्यपाल बनाया गया था।
कभी-कभी राजनीतिक बन जाता है वायु प्रदूषण का मुद्दा
जस्टिस एसके कौल ने कहा कि वायु प्रदूषण के मुद्दे को कभी-कभी 'राजनीतिक' मुद्दे के रूप में लिया जाता है। उन्होंने कहा कि अदालतों को कार्यपालिका का काम नहीं करना चाहिए, बल्कि कार्यपालिका पर अपना काम करने का दबाव डालना चाहिए। हर सर्दियों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को प्रभावित करने वाले वायु प्रदूषण को लेकर जब उन्होंने आदेश पारित किया था तो संबंधित अधिकारियों ने कई कदम उठाए।