विदेश में मंजूर दवाओं का देश में नहीं होगा क्लीनिकल परीक्षण, लाइलाज बीमारी के मरीजों को मिलेगा फायदा
केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। विदेश में मंजूरी प्राप्त दवाओं के लिए क्लीनिकल परीक्षण की आवश्यकता को खत्म कर दिया है। हालांकि यह छूट सिर्फ पांच श्रेणियों में मिलेगी। लाइलाज बीमारी के मरीजों को इससे फायदा मिलेगा। बता दें कि पश्चिमी बाजारों की तुलना में भारत में किसी नई या लाइलाज बीमारी की दवा को जारी करने में 5 से 20 साल का समय लगता है।
पीटीआई, नई दिल्ली। लाइलाज बीमारी के मरीजों को संजीवनी देते हुए सरकार ने कुछ श्रेणियों की दवाओं के लिए भारत में क्लीनिकल परीक्षण की आवश्यकता को समाप्त कर दिया है। जिन दवाओं को अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूरोपीय संघ में मंजूरी मिली होगी, उनका भारत में क्लीनिकल परीक्षण नहीं कराना होगा।
इन श्रेणियों में मिलेगी छूट
छूट केवल पांच श्रेणियों के तहत दी जाएगी। इनमें दुर्लभ बीमारियों के लिए तैयार होने वाली महंगी दवाएं, जीन और सेलुलर थेरेपी उत्पाद, महामारी की स्थिति में इस्तेमाल की जाने वाली नई दवाएं, विशेष सुरक्षा उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली नई दवाएं और महत्वपूर्ण चिकित्सीय प्रगति वाली नई दवाएं शामिल हैं।
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इन बीमारियों की दवाओं में मिलेंगी छूट
इस छूट से भारत में कैंसर, स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) और ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्राफी (डीएमए) जैसी दुर्लभ बीमारियों और आटोइम्यून स्थितियों के इलाज के लिए नवीनतम दवाओं की शीघ्र उपलब्धता सुनिश्चित होगी। भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीजीसीआई) ने कहा कि नई औषधि और क्लीनिकल परीक्षण नियम 2019 के अनुसार केंद्रीय लाइसेंसिंग प्राधिकरण केंद्र सरकार की स्वीकृति से नई दवाओं के अनुमोदन के लिए स्थानीय क्लीनिकल परीक्षण की छूट पर विचार कर सकता है।वह क्लीनिकल परीक्षण की अनुमति देने के लिए अन्य देशों का नाम भी निर्धारित कर सकता है। वर्तमान में अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के अन्य विनियामक प्राधिकरणों द्वारा अनुमोदित कई दवाएं 'औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम' और उसके तहत बनाए गए नियमों के कारण भारतीय रोगियों के लिए तुरंत उपलब्ध नहीं हैं।