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Emerging Technologies: तकनीक की दुनिया में आने वाले सालों में ट्रेंड करेंगी ये 10 टेक्नोलॉजी, यहां जानें सबकुछ

Emerging Technologies of 2023 विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक सूची में अगले 3-5 वर्षों में दुनिया पर सकारात्मक प्रभाव डालने की सबसे बड़ी क्षमता वाली वार्षिक सूची में जेनरेटिव एआई टिकाऊ विमानन ईंधन और लचीली बैटरी शीर्ष उभरती प्रौद्योगिकियों में से हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस साल ये सभी टेक्नोलॉजीस काफी ट्रेंड में रह सकती हैं। आइए आपको इनके बारे में विस्तार से बताते हैं।

By Babli KumariEdited By: Babli KumariUpdated: Sun, 02 Jul 2023 03:57 PM (IST)
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तकनीक की दुनिया में आने वाले सालों में ट्रेंड करेंगी ये 10 टेक्नोलॉजी (
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Emerging Technologies of 2023: टेक्नोलॉजी हर बीतते दिन के साथ कुछ नया और अपडेटड लाती है। इंसान के जीवन को बहुत आसान बनाती है। बीते कुछ सालों में हमने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और 5जी जैसी तमाम टेक्नोलॉजी को उभरते देखा है। हर साल की तरह 2023 में भी टेक्नोलॉजी का क्षेत्र काफी खास रहने वाला है। टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस साल कुछ खास टेक्नोलॉजीस काफी ट्रेंड में रह सकती हैं।

वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम (World Economic Forum) की वार्षिक सूची में अगले 3-5 वर्षों में दुनिया पर सकारात्मक प्रभाव डालने की सबसे बड़ी क्षमता वाली वार्षिक सूची में जेनरेटिव एआई, टिकाऊ विमानन ईंधन और लचीली बैटरी शीर्ष उभरती प्रौद्योगिकियों में से हैं। इसके अलावा इन सभी टेक्नोलॉजी से उम्मीद है कि ये अगले 3 से 5 साल में बड़ी भूमिका निभाएंगे। चलिए आपको इस लिस्ट में जगह बनाने वाली नई टेक्नोलॉजीज के बारे में बताते हैं।

1. लचीली बैटरी (Flexible batteries): वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (World Economic Forum) की इस लिस्ट में लचीली बैटरी (Flexible Battery) को शामिल किया गया है। इन बैटरीज को हलके मैटेरियल से बनाया गया है। लचीली बैटरी को आसानी से मोड़ा और खींचा जा सकता है। जल्द ही कठोर बैटरियों जिसे अभी प्रयेग किया जा रहा है उसकी जगह ले सकती हैं। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का कहना है कि एक रिपोर्ट के मुताबिक लचीली बैटरी का मार्केट साल 2022-27 तक 240.47 मिलियन डॉलर तक बढ़ जाएगा। सैमसंग, एलजी, एप्पल, नोकिया जैसी कई बड़ी कंपनियां लचीली बैटरी टेक्नोलॉजी का कारोबार कर रही हैं। इस नई पीढ़ी की बैटरी के लिए विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग किया जा सकता है जिसमें मेडिकल वियरेबल्स, बायोमेडिकल सेंसर, लचीले डिस्प्ले और स्मार्टवॉच शामिल हैं।

2. जनरेटिव ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Generative artificial intelligence): आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और चैटजीपीटी का नाम इन दिनों बच्चे-बच्चे के जुबान पर है। 2022 के अंत में ChatGPT की रिलीज़ के साथ, यह सार्वजनिक सुर्खियों में आ गया था। AI के जरिए शिक्षा, अनुसंधान, दवाओं की डिजाइनिंग के साथ आर्किटेक्चर और इंजीनिरिंग में मदद कर सकता है। नासा भी स्पेस में इसके इस्तेमाल करने पर काम कर रहा है। हालांकि अभी तक इस टेक्नोलॉजी पर पूरा भरोसा कायम नहीं हुआ है। इसके लिए इस टेक्नोलॉजी पर और काम करने की जरूरत है।

3. सतत विमानन ईंधन (Sustainable Aviation fuel): सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल को बायो जेट फ्यूल भी कहा जाता है, जो खाना पकाने के तेल और उच्च तेल वाले पौधे के बीजों से बनाया जाता है। इसका इस्तेमाल कार, बाइक और सड़कों पर चलने वाले वाहनों में आसानी से किया जा रहा है। हालांकि एविएशन क्षेत्र में इसके इस्तेमाल की लागत बहुत ज्यादा है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का कहना है कि अभी सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल सिर्फ डिमांड का एक फीसदी ही पूरा कर रहा है।

4. डिजाइनर फेज (Designer phages): डिजाइनर फेज ऐसे वायरस होते हैं जो विशिष्ट प्रकार के बैक्टीरिया को चुनिंदा रूप से संक्रमित करते हैं। वायरस को इंसानों को फायदा पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ये वायरस विशेष प्रकार की बैक्टीरिया पर असर डालते हैं। ये वायरस अपने जेनेटिक इंफॉर्मेशन को बैक्टीरिया में इंजेक्ट करते हैं, जो बैक्टीरिया के फंक्शन को बदल सकते हैं। इसे किसी दवा के प्रति संवेदनशील बनाया जा सकता है। इन "डिज़ाइनर" फ़ेज़ का उपयोग अंततः माइक्रोबायोम से जुड़ी बीमारियों के इलाज या खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में खतरनाक बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए किया जा सकता है। इसके अलावा भी इसका और भी इस्तेमाल किया जा सकता है। 

5. मानसिक स्वास्थ्य के लिए मेटावर्स (Metaverse for mental health): मेटावर्स फॉर मेंटल हेल्थ आधुनिक समय में सभी की जरूरत है। भागदौड़ भरी ज़िंदगी में सभी इंसान कहीं न कहीं अवसाद का शिकार बना हुआ है। कोरोना ने मेंटल हेल्थ की समस्या को इतना बढ़ा दिया है कि दुनिया में हेल्थ की सुविधाओं की कमी होती जा रही है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का कहना है कि मेंटल हेल्थ ट्रीटमेंट के लिए उपयुक्त परिस्थितियां मेटावर्स उपलब्ध करा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मैच्यूरिंग इंटरफेस टेक्नोलॉजीज डिस्टेंस पार्टिसिपेंट के बीच सामाजिक और भावानात्मक संबंधों को बढ़ा सकती है। कई लोग इसपर गेमिफिकेशन ऐर दूसरे तरीकों से काम कर रहे हैं, जो मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्या को कम कर सकते हैं।

6. वियरेबल्स प्लांट सेंसर (Wearable plant sensors): परंपरागत तौर पर फसलों की निगरानी मिट्टी परीक्षण और उसे देखकर की जाती है, जो काफी महंगे और समय लेने वाले हैं। हाल ही में लो-रिजॉल्यूशन वाले सैटेलाइट डेटा की मदद से फसल की सेहत की निगरानी की जा रही है। इसमें सेंसर से लैस ड्रोन और ट्रैक्टर्स भी शामिल हैं, जिससे जानकारी हासिल होती है। अब इसके आगे की प्लानिंग एक-एक पौधे की निगरानी वियरेबल्स तरीके से करना है।

7. स्थानिक ओमिक्स (Spatial omics): इंसान लाखों कोशिकाओं से बने हैं। लेकिन इसे अंदर क्या होता है? बायोलॉजिकल प्रोसेस कैसे काम करता है। इसको समझने में Spatial omics मदद कर सकते हैं। कोरोना से मारे गए लोगों के नमूनों के Spatial omics स्टडी से पता चला है कि SARS-CoV-2 सभी टिश्यू में सेलुलर पाथवे में व्यापक डिस्रप्शन का कारण बनता है।

8. फ्लेक्सिबल न्यूट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स ( Flexible neural electronics) : ब्रेन मशीन इंटरफेस दिमाग के इलेक्ट्रिकल सिंग्नल्स को सेंसर हार्डवेयर के जरिए कैप्चर करने की इजाजत देता है। इसे पहले से ही मिर्गी के मरीजों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है और नर्वस सिस्टम से जुड़े कृत्रिम अंग बनाते हैं। हालांकि वर्तमान इंप्लांट्स चिप्स जैसे हार्ड मटेरियल से बने होते हैं, जो इंसानों को जख्मी कर सकते हैं और काफी असुविधाजनक हो सकते हैं।

9. सस्टेनेबल कंप्यूटिंग (Sustainable computing): जब हम गूगल पर सर्च करते हैं, कोई मेल भेजते हैं या एआई के किसी फॉर्म का इस्तेमाल करते हैं तो हम डेटा सेंटर्स से कनेक्ट करते हैं। इसमें दुनिया में बिजली उत्पादन का एक फीसदी खर्च होता है। हालांकि आने वाले समय में हम नेट जीरो एनर्जी डेटा सेंटर्स की तरफ बढ़ सकते हैं। सबसे पहले गर्मी कम करने के लिए कूलिंग सिस्टम का इस्तेमाल करना है।

10. AI फैसिलिएटेड हेल्थकेयर (AI-facilitated healthcare): कोरोना महामारी के बाद सरकार और एकेडमिक टीमें एआई और एमएल मॉडल का इस्तेमाल कर रही हैं, ताकि मरीजों के इलाज में देरी ना हो। इससे विशेष तौर पर विकासशील देशों को मदद मिल सकती है। इसके लिए भारत का उदाहरण ले सकते हैं। भारत की आबादी 1.4 अरब है और उसने मेडिकल पहुंच बनाने के लिए AI पर आधारित एप्रोच को अपनाया है।