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मुश्किल घड़ी में बढ़े हाथ तो खुलती चली गईं राह, शुरू हुआ कामयाबी का सिलसिला

आचार्य विनोबा भावे मानते थे कि सेवा के लिए पैसे की जरूरत नहीं होती। जरूरत होती है अपना संकुचित जीवन छोड़ गरीबों व जरूरतमंदों से एकरूप होने की।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 13 Sep 2020 11:03 AM (IST)
मुश्किल घड़ी में बढ़े हाथ तो खुलती चली गईं राह, शुरू हुआ कामयाबी का सिलसिला
अंशु सिंह। एक वक्त था, जब बेंगलुरु की 48 वर्षीय सरोज सिद्दप्पा पति के साथ एक छोटा-सा ईटिंग ज्वाइंट चलाती थीं, लेकिन उनकी मौत के बाद उन्हें उसे बंद करना पड़ा और सरोज को अपने तीन बच्चों की खातिर लोगों के घरों में काम करना पड़ा। बीते एक साल से वे अंकित वेंगुरलेकर के घर पर खाना बनाने और सफाई का काम कर रही थीं। इसी बीच, लॉकडाउन हो गया और उनकी आर्थिक मुश्किलें बढ़ गईं। नए काम नहीं मिलने से आमदनी आधी हो चुकी थी। उस पर से लोन की किस्तें थीं सो अलग। ऐसे में एक दिन उन्होंने अंकित के सामने ‘घर के खाने’ की होम डिलीवरी शुरू करने की इच्छा जताई। अंकित को वह बिजनेस आइडिया पसंद आया और उन्होंने मदद करने का फैसला किया। अंकित बताते हैं,‘सरोज दीदी की क्रैब करी में बहुत स्वाद होता है, तो पहली बार वही करी बनाई गई और मैंने उसे बनाने वाले के परिचय के साथ ट्विटर, इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर दिया। कुछ ही मिनटों में दो किलो क्रैब करी बिक गई। इस तरह,जो ऑर्डर्स मिलने का सिलसिला शुरू हुआ, वह आज भी अनवरत जारी है।‘ अंकित के किचन में करी तैयार होती है, तेल, मसाले, सामग्री आदि वही लाते हैं। लेकिन जो मुनाफा होता है, उसे वे सरोज दीदी को सौंप देते हैं।

मदद कर अंतर्मन को मिली खुशी

अंकित को खुशी है कि वे किसी को उद्यम स्थापित करने में मदद कर पा रहे हैं। क्योंकि उन्होंने देखा है कि एक महिला के लिए कोई भी नया कारोबार शुरू करना कितना कठिन होता है। नेटवर्किंग, पूंजी से लेकर तमाम अन्य चुनौतियां आती हैं। वह बताते हैं, ‘मैंने कल्पना नहीं की थी कि एक छोटी-सी पहल का इतना असर हो सकता है कि दुबई, मुंबई, कोलकाता से लोगों ने संपर्क कर बताया कि वे भी इस तरह का प्रयास एवं मदद करना चाहते हैं। अंतर्मन को इससे ज्यादा खुशी कहां से मिल सकती है।‘

स्वरोजगार के लिए देते बिना सूद ऋण

अहमदाबाद के नरेश सीजापति भी किसी मिसाल से कम नहीं हैं। वैश्विक महामारी ने जब समाज के उन हजारों-लाखों दिहाड़ी मजदूरों के अलावा चाय-पान की दुकान, छतरी या मोमो आदि बेचकर परिवार का भरण पोषण करने वालों का रोजगार व नौकरी छीन ली, तो नरेश ने उनकी जिंदगी को दोबारा से पटरी पर लाने की पहल की। पनाह संस्था के फाउंडर नरेश बताते हैं, ‘100 फॉर 100’ प्रोजेक्ट के माध्यम से हम जरूरतमंदों को बिना सूद दस हजार रुपये तक का कर्ज, साजो-सामान एवं अन्य संसाधन उपलब्ध कराते हैं। ये कर्ज किसी दस्तावेज के आधार पर नहीं, बल्कि उनकी ईमानदारी को देख दिए जाते हैं। इसके अलावा, शुरुआत में उन्हें प्रतिदिन 300 रुपये भी दिए जाते हैं, चाहे कमाई हो या न हो। एक बार उनका बिजनेस स्थापित हो जाता है, तो उन्हें कर्ज की राशि वापस करनी होती है।‘ नरेश ने फिलहाल अहमदाबाद में ऐसे 100 लोगों की मदद करने का लक्ष्य रखा है। कई लोगों ने मोमो बेचने से लेकर अन्य रोजगार शुरू कर दिए हैं। इससे पहले उन्होंने कोविड पीड़ितों के लिए करीब 53 लाख रुपये इकट्ठा किए थे। हजारों लोगों को राशन इत्यादि बांटने से लेकर 200 से अधिक लोगों को वापस उनके गांव भेजने का इंतजाम किया था। इसमें 69 मजदूरों को फ्लाइट से बिहार, उप्र, झारखंड आदि भेजा। वे कहते हैं, ‘हम जो भी करते हैं, उसके पीछे स्वप्रेरणा होती है। इसके लिए नीयत साफ होनी चाहिए।‘

महिला सशक्तीकरण के लिए प्रतिबद्ध

नागपुर के वासुदेव मिश्रा का ‘सिलाईग्राम’ नाम से एक सामाजिक उद्यम है, जहां ग्रामीण महिलाएं एवं लड़कियां कपड़ा फैक्ट्रियों एवं दुकानों से निकलने वाले वेस्ट कपड़े को अपसाइकल कर उससे झोला एवं कुर्तियां आदि बनाती थीं। लेकिन जब कोविड ने दस्तक दी, तो उन्होंने री-यूजेबल मास्क बनाने भी शुरू कर दिए। अब तक पांच हजार से अधिक मास्क बना चुकी हैं यहां की महिलाएं। समाज में इस तरह का कलात्मक एवं सकारात्मक बदलाव लाने के लिए अशोका यंग चेंजमेकर के लिए चयनित हो चुके वासुदेव बताते हैं, ‘मैं नहीं चाहता था कि किसी भी परिस्थिति में महिलाओं का रोजगार छिने, क्योंकि इसी से उनका पूरा परिवार चलता है। मैं खुद गरीबी व आर्थिक तंगी से गुजर चुका हूं। जानता हूं कि बेरोजगारी से क्या हो सकता है।‘

नागरिक-समाज-सरकार को मिलकर करना होगा काम

2015 से सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय वासुदेव मानते हैं कि इस वैश्विक संकट काल में सिविल सोसायटी और सरकार को साथ मिलकर काम करना होगा। तभी व्यापक समाज तक पहुंचकर, उनकी समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है। वे खुद करीब 150 स्वयंसेवी संस्थाओं के अलायंस का हिस्सा हैं और ‘टूगेदर वी कैन’ अभियान के तहत नागपुर पुलिस, प्रशासन, स्थानीय नगर निकाय एवं अन्य सोशल इंफ्लुएंसर्स के साथ काम करते हैं। उन्होंने शहर के तमाम कोविड अस्पतालों में हेल्प डेस्क बनाए हैं, जहां लोगों की काउंसलिंग से लेकर उन्हें जागरूक किया जाता है। टीम ने कॉल सेंटर भी स्थापित किए हैं, जहां अलग-अलग शिफ्टों में वॉलंटियर्स होम आइसोलेशन में रहने वालों की समस्याओं का समाधान देते हैं।

इनका ये है कहना

‘सरोज दीदी’ की कहानी ने छुआ दिलों को

मैंने सोशल मीडिया सरोज दीदी के आइडिया को शेयर किया था, जो देखते ही देखते वायरल हो गया। पहले ट्विटर इंडिया ने उसे शेयर किया। फिर मशहूर शेफ विकास खन्ना ने। दरअसल, तमाम नकारात्मकता के बीच दीदी की कहानी और उनकी बनाई क्रैब करी ने लोगों के दिलों को छू लिया था। लेकिन जिस रफ्तार से हमें ऑर्डर्स मिल रहे थे, उसे समय पर डिलीवर करना उतना आसान नहीं था। तब हमने ‘कनोश’ नामक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से संपर्क किया, जो होम शेफ को एक प्लेटफॉर्म देता है।

अच्छी बात यह रही कि उसके संस्थापक सरोज दीदी की कहानी से प्रभावित थे और उनकी मदद करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने बिना किसी शुल्क के हमारी करी व मेन्यू को अपने प्लेटफॉर्म पर स्थान दिया। इससे दो दिनों में 60 से ज्यादा ऑर्डर्स आए। आज डिशेज बनाने में दीदी के बच्चे और रिश्तेदार भी उनका हाथ बंटा रहे हैं। मुझे तो उनकी हाथ का बना स्वादिष्ट भोजन मिल ही रहा है।

अंकित वेंगुरलेकर, पीआर हेड, शाओमी

सड़क के पशुओं के लिए पहल

संकट के समय में इंसानों के बारे में तो सभी सोच रहे हैं, लेकिन जानवरों को भी हमारी मदद की जरूरत होती है। उनके साथ भी हादसे होते हैं। उन्हें भूख लगती है। इसी उद्देश्य के साथ मैंने स्ट्रीट एवं स्ट्रे एनिमल्स के लिए ‘काइंडनेस: द यूनिवर्सिल लैंग्वेज ऑफ लव’ नाम से एक पहल की है। इसके तहत हम जानवरों का टीकाकरण कराने से लेकर उन्हें भोजन आदि देते हैं। हमने अलग-अलग शहरों में ‘वॉटर बाउल’ अभियान चलाया हुआ है, जिसमें लोगों से अपने घर के बाहर बर्तन में पानी भरकर रखने की अपील की जाती है। हमारी कोशिश सड़क पर रहने वाले कुत्तों, पशुओं के प्रति समाज की सोच में बदलाव लाने की है। मैं लोगों के भ्रम को तोड़ना चाहती हूं कि कुत्ते सिर्फ इंसानों को काटते हैं। कोई भी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता, जब तक कि उसे गलत तरीके से छेड़ा न जाए। इसके अलावा, हम भोपाल स्थित ‘हॉउकी’ (इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी ऐंड सर्विसेज कंपनी) के साथ टाईअप कर गरीब लोगों को राशन तथा सरकारी स्वास्थ्य विभाग, पुलिस स्टेशन, भारतीय सेना, निजी अस्पतालों को ड्यूरासेल की बैटरी उपलब्ध करा रहे हैं, जिनका इस्तेमाल आइआर थर्मामीटर में किया जाता है। इस समय 800 से ज्यादा वॉलंटियर्स हमसे जुड़कर देश भर में काम कर रहे हैं।

चांदनी, अशोका चेंजमेकर, भोपाल

काउंसलिंग से निकाला समाधान

कोरोना काल में नागपुर प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती डॉक्टर्स व पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी के रूप में सामने आई। वह चाहकर भी नई भर्तियां नहीं कर पा रहे थे। क्योंकि डर के कारण कोई अस्पतालों में काम नहीं करना चाह रहा था। तब हमने लोगों से संपर्क किया, उनकी काउंसलिंग की और आखिरकार 100 से अधिक मेडिकल-पैरामेडिकल स्टाफ को अनुबंध के आधार पर विभिन्न सरकारी (कोविड) अस्पतालों में तैनात किया जा सका। देश के अन्य हिस्सों में भी इस मॉडल को अपनाया जा सकता है, ताकि अधिक से अधिक लोगों की मदद हो सके।

वासुदेव मिश्रा, संस्थापक, सिलाईग्राम