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एक रानी और एक राजा के असीम प्रेम का प्रतीक है यह प्राचीन मंदिर, जानिए इसकी रोचक कहानी

छत्तीसगढ़ के सिरपुर का विश्व प्रसिद्ध लक्ष्मण मंदिर लाल ईंटों से बना भारत का अद्वितीय मंदिरों में से एक है। यह मंदिर रानी वासटा देवी के पति प्रेम का साक्षी है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Updated: Fri, 27 Sep 2019 08:41 AM (IST)
एक रानी और एक राजा के असीम प्रेम का प्रतीक है यह प्राचीन मंदिर, जानिए इसकी रोचक कहानी
आनंदराम साहू, रायपुर। (विश्‍व पर्यटन दिवस पर विशेष) सिरपुर (छत्तीसगढ़) का विश्व प्रसिद्ध लक्ष्मण मंदिर लाल ईंटों से बना भारत का अद्वितीय मंदिरों में से एक है। रानी वासटा देवी के पति प्रेम का साक्षी। एक ओर आगरा में शाहजहां ने मुमताज की याद में 1593-1631 ई. में सफेद संगमरमर पत्थर से ताजमहल बनवाया, जो आज पूरे विश्व की धरोहर है। दूसरी ओर एक विधवा रानी वासटादेवी ने अपने पति हर्षगुप्त की स्मृति में लाल ईंटों से छठवीं शताब्दी में यह लक्ष्मण मंदिर बनवाया, जो आज भी विश्व धरोहर का हिस्सा बनने का इंतजार कर रहा है।

15 सौ साल बाद भी है विश्‍व की धरोहर बनने की प्रतीक्षा में

समय बीतता गया। शासक बदलते गए। हर काल में नारी की यह अपनी 'अमर प्रेम गाथा" कहता रहा, लेकिन पुरुष प्रधान समाज में नारी के प्रेम के प्रतीक इस अखंड मंदिर को वह महत्व नहीं मिला, जिसका वह हकदार है। लक्ष्मण मंदिर का निर्माण 525- 540 ई. में कराया गया, जो पंद्रह सौ साल बाद भी आज विश्व धरोहर बनने की प्रतीक्षा में है। यहां हर साल देश-विदेश से लाखों पर्यटक आते हैं।

लाल ईंटों से निर्मित इस अद्वितीय मंदिर की प्रशंसा करते नहीं थकते। मंदिर के वास्तु और स्थापत्य कला की सर्वत्र सराहना होती है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर लाल पत्थरों में उकेरी गई विष्णु के दशावतार की प्रतिमाएं विशेष आकर्षण का केंद्र हैं। लाल ईंटों से बना नारी के मौन प्रेम का साक्षी यह लक्ष्मण मंदिर वर्षों के इतिहास को अपने में समाहित किया हुआ है। छत्तीसगढ़ के पुरा वैभव और इतिहास को अपने गर्भ में समाहित किए हुए सिरपुर के टीलों की खोदाई से दक्षिण कौशल का इतिहास सामने आया है।

जंगली वादियों के बीच स्थित है प्राचीन नगरी सिरपुर

वर्तमान छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 80 किमी दूर महानदी के तट पर जंगली वादियों के बीच स्थित है सिरपुर। यह प्राचीन छत्तीसगढ़ अर्थात दक्षिण कोशल की राजधानी श्रीपुर होने का गौरव अपने में समेटे हुए हैं। प्राचीनकाल में श्रीपुर सोमवंशी शासकों की राजधानी थी। बौद्ध, शैव, वैष्णव और जैन सभी धर्मों से संबंधित प्राचीन पाषाण प्रतिमाएं यहां पुरातात्विक उत्खनन से मिली है। जो सिरपुर के सर्वधर्म समभाव की संस्कृति को दर्शाता है।

प्राकृतिक आपदाएं भी नहीं हिला सकीं प्रेम के इस स्मारक की बुनियाद

सिरपुर के गाइड गोवर्धन प्रसाद कन्‍नौजे बताते हैं कि प्राकृतिक आपदाएं भी प्रेम के इस स्मारक की बुनियाद को हिला नहीं सकीं। इतिहासकारों ने उल्लेखित किया है बारहवीं शताब्दी में यहां भयंकर भूकंप आया था, जिसमें श्रीपुर जमींदोज हो गया। राजमहल से लेकर सब कुछ ढह गया। चौदहवीं शताब्दी में महानदी में विकराल बाढ़ आया था जो श्रीपुर को वैभव की नगरी से खंडहर में तब्दील कर गया, लेकिन इन दो बड़ी आपदाओं ने भी प्रेम के इस स्मारक की बुनियाद को हिला नहीं सकी। यूरोपियन साहित्यकार एडविन एराल्ड के अनुसार लाल ईंटों से बना नारी के मौन प्रेम का साक्षी यह मंदिर अद्वितीय और अद्भुत है।