चीन के साथ संपर्क में है तिब्बत की निर्वासित सरकार, पीएम सेरिंग ने की पुष्टि; की भारत की चीन नीति
तिब्बत की निर्वासित सरकार के पीएम पेनपा सेरिंग ने कहा है कि वे लगातार चीन के साथ संपर्क में हैं। उन्होंने कहा कि यह संपर्क फिलहाल बैक चैनल ही है और उनका मकसद सिर्फ तिब्बत की आजादी है। इसके अलावा सेरिंग ने चीन को लेकर मोदी सरकार की नीति की भी तारीफ की और कहा कि भारत चीन के सामने अपना पक्ष मजबूती से रख रहा है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत से संचालित तिब्बत की निर्वासित सरकार चीन के साथ लगातार संपर्क में है। यह संपर्क बैक चैनल के जरिये ही चल रहा है और निर्वासित सरकार की तिब्बत की स्वतंत्रता को लेकर नीति में कोई बदलाव नहीं है।
निर्वासित सरकार (सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन-सीटीए) के प्रधानमंत्री पेनपा सेरिंग का कहना है कि बैक चैनल में विमर्श हो रहा है, लेकिन हमारा मकसद सिर्फ तिब्बत की आजादी है और चीन के साथ परोक्ष स्त्रोतों से जो बात हो रही है, उसका मकसद भी चीन-तिब्बत विवाद का समाधान अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत करना है।
इसी महीने हुआ संपर्क
तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री सेरिंग ने गुरुवार को यहां कुछ संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि चीन के साथ उनका संपर्क इस महीने की शुरुआत में ही हुआ है। उल्लेखनीय है कि भारत आधिकारिक तौर पर 'एक चीन' नीति का समर्थन करता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से भारत की तरफ इस नीति को लेकर कोई बयान नहीं दिया गया है।जहां तक चीन-तिब्बत के बीच संपर्क जारी रखने का सवाल है तो इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने सार्वजनिक तौर पर कोई बयान नहीं दिया है। फिलहाल सेरिंग ने चीन के साथ बातचीत का कोई ब्योरा तो नहीं दिया, लेकिन उनकी बात से यह भी स्पष्ट होता है कि सीटीए इस वार्ता को लेकर अभी कोई उम्मीद नहीं लगा रहा है।
सेरिंग का कहना है कि अभी कोई उम्मीद नहीं है। यह वार्ता सिर्फ एक संपर्क बनाए रखने के लिए है। हमें लंबी अवधि के लिए भी सोचना है। सेरिंग ने कहा कि अमेरिकी संसद में पारित 'रिजॉल्व तिब्बत एक्ट' (आरटीए) पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का हस्ताक्षर होने को बहुत बड़ा सकारात्मक कदम मानते हैं।
चीन ने जताई थी नाराजगी
आरटीए को लेकर हाल ही में चीन ने गहरी नाराजगी जताई थी। चीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति को इस विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करने की चेतावनी दी थी। सेरिंग का कहना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह साबित किया है कि उनका देश तिब्बत की समस्या का समाधान तिब्बत की जनता की इच्छानुसार कराने का समर्थन करता है। इसका दीर्घकालिक असर होगा। कई देशों में इस तरह का कानून बनने से चीन पर दबाव बनेगा।