WHO Alert: 2019 में ये 10 प्रमुख बीमारियां बन सकती हैं करोड़ों मौतों की वजह, रहें सावधान
WHO ने अपने अलर्ट में लोगों को इन 10 बड़ी चुनौतियों की प्रमुख वजह भी बताई है। ये पूरी दुनिया के लिए खतरा बनी हुई है। जरा सी सावधानी बरत हम इन समस्याओं से निपट सकते हैं।
By Amit SinghEdited By: Updated: Wed, 23 Jan 2019 10:45 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। वायु प्रदूषण, टीकाकरण, बढ़ता मोटापा से लेकर इबोला वायरस तक वर्तमान में दुनिया कई स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर कर रही है। डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) की आधिकारिक वेबसाइट पर 2019 में स्वास्थ्य संबंधित शीर्ष दस वैश्विक खतरों की सूची जारी की गई है जिसमें इंसानों पर पड़ने वाले उनके स्वास्थ्य प्रभावों को लेकर चेताया गया है। सूची के मुताबिक दुनिया भर में हर साल करोड़ों लोग इन दस बीमारियों की चपेट में आकर मर जाते हैं।
वायु प्रदूषण
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक शीर्ष दस स्वास्थ्य खतरों में वायु प्रदूषण सबसे बड़ा पर्यावरणीय खतरा है। दुनिया में दस में से नौ लोग हर दिन प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं। विश्व में लगभग 70 लाख लोग हर साल कैंसर, स्ट्रोक, हृदय और फेफड़ों से संबंधित बीमारियों की चपेट में आकर मर जाते हैं। वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से 2030 से 2050 के बीच 2.50 लाख मौतें अनुमानित हैं।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक शीर्ष दस स्वास्थ्य खतरों में वायु प्रदूषण सबसे बड़ा पर्यावरणीय खतरा है। दुनिया में दस में से नौ लोग हर दिन प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं। विश्व में लगभग 70 लाख लोग हर साल कैंसर, स्ट्रोक, हृदय और फेफड़ों से संबंधित बीमारियों की चपेट में आकर मर जाते हैं। वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से 2030 से 2050 के बीच 2.50 लाख मौतें अनुमानित हैं।
गैर संक्रामक रोग
संक्रमण रोगों के खतरों से इतर दुनियाभर में हर साल तकरीबन 70 फीसद मौतें गैर संक्रामक रोगों जैसे मधुमेह, कैंसर और हृदय की बीमारियों से होती हैं, जो तंबाकू व शराब के सेवन, बिगड़ी हुई जीवनशैली, शारीरिक निष्क्रियता, गैरस्वास्थ्यकर खानपान और वायु प्रदूषण से जन्म लेती है। हर साल 30 से 69 साल की उम्र के 1.5 करोड़ लोग इन बीमारियों की चपेट में आकर मर जाते हैं।
संक्रमण रोगों के खतरों से इतर दुनियाभर में हर साल तकरीबन 70 फीसद मौतें गैर संक्रामक रोगों जैसे मधुमेह, कैंसर और हृदय की बीमारियों से होती हैं, जो तंबाकू व शराब के सेवन, बिगड़ी हुई जीवनशैली, शारीरिक निष्क्रियता, गैरस्वास्थ्यकर खानपान और वायु प्रदूषण से जन्म लेती है। हर साल 30 से 69 साल की उम्र के 1.5 करोड़ लोग इन बीमारियों की चपेट में आकर मर जाते हैं।
एंटीबॉयोटिक का अधिक इस्तेमाल
दुनियाभर में लोग गैरजरूरी और छोटी मोटी शारीरिक परेशानियों में एंटीबॉयोटिक दवाओं का सेवन करने से नहीं चूकते हैं जिस वजह से शरीर पर इनका असर बंद हो जाता है। नतीजतन सामान्य संक्रमण और बीमारियां भी प्राणघातक बन जाती हैं। 2000 से 2015 के बीच विश्व में एंटीबॉयोटिक दवाओं की मांग और बिक्री 65 फीसद तक बढ़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक दवाएं बेअसर होने से 2050 तक एक करोड़ मौतें होंगी। इनफ्लूएंजा महामारी
इनफ्लूएंजा वायरस भविष्य में महामारी के रूप में सामने आ सकता है। डब्ल्यूएचओ संभावित महामारी की वजहों का पता लगाने के लिए इनफ्लूएंजा वायरस के प्रसार की लगातार निगरानी कर रहा है जिसमें उसके साथ 114 देशों के 153 संस्थान शामिल हैं। आपदा और संकट
1.6 अरब से अधिक लोग (तकरीबन 1/5 वैश्विक आबादी) सूखा, अकाल, संघर्ष और विस्थापन जैसे संकटग्रस्त स्थानों पर रहने के लिए मजबूर है। प्राकृतिक आपदाओं और संकट से भागे लोगों की शरणार्थी शिविरों में भूख, बीमारियों और अपराध में जान चली जाती है। इबोला
दुनिया के सबसे खतरनाक रोगों में से एक इबोला एक संकट बना हुआ है। अफ्रीका के ग्रामीण क्षेत्रों से फैला इबोला मौजूदा समय में घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में लोगों को चपेट में ले चुका है। इबोला के अलावा, वैज्ञानिक संक्रमण, बुखार, जीका, निपाह वायरस को लेकर भी चेता चुके हैं। टीकाकरण में संकोच
पहुंच में होने के बावजूद टीकाकरण कराने में संकोच अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। बीमारी से बचाव के सबसे किफायती तरीकों में से एक टीकाकरण हर साल 20 से 30 लाख मौतों को रोकता है। इस प्रवृति में सुधार लाकर इस साल 15 लाख मौतों को टाला जा सकता है। प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल एक व्यक्ति के स्वास्थ्य से संबंधित जरूरतों को पूरा कर सकती है और कई गंभीर बीमारियों की रोकथाम हो सकती है। कई देशों में पर्याप्त प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं नहीं हैं। 2018 में जारी लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अपर्याप्त प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की वजह से हर साल 50 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। डेंगू
मच्छरों जनित ये बीमारी पिछले दो दशकों से खतरा बनी हुई है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इस साल डेंगू के अनुमानित 39 करोड़ मामले सामने आ सकते हैं और दुनिया की 40 फीसद आबादी डेंगू के खतरे में हैं। सही समय पर इलाज न मिलने पर इनमें से 20 फीसद की जान जा सकती है।एचआइवी
लगभग 2.2 करोड़ लोग वर्तमान में एचआइवी का इलाज करा रहे हैं। 3.7 करोड़ लोग दुनियाभर में एचआइवी से पीड़ित हैं जिनमें से 30 लाख बच्चे और किशोर हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया का 2030 तक बच्चों और किशोरों के बीच एड्स को खत्म करने का प्रयास पटरी पर नहीं हैं।यह भी पढ़ें-
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इनफ्लूएंजा वायरस भविष्य में महामारी के रूप में सामने आ सकता है। डब्ल्यूएचओ संभावित महामारी की वजहों का पता लगाने के लिए इनफ्लूएंजा वायरस के प्रसार की लगातार निगरानी कर रहा है जिसमें उसके साथ 114 देशों के 153 संस्थान शामिल हैं। आपदा और संकट
1.6 अरब से अधिक लोग (तकरीबन 1/5 वैश्विक आबादी) सूखा, अकाल, संघर्ष और विस्थापन जैसे संकटग्रस्त स्थानों पर रहने के लिए मजबूर है। प्राकृतिक आपदाओं और संकट से भागे लोगों की शरणार्थी शिविरों में भूख, बीमारियों और अपराध में जान चली जाती है। इबोला
दुनिया के सबसे खतरनाक रोगों में से एक इबोला एक संकट बना हुआ है। अफ्रीका के ग्रामीण क्षेत्रों से फैला इबोला मौजूदा समय में घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में लोगों को चपेट में ले चुका है। इबोला के अलावा, वैज्ञानिक संक्रमण, बुखार, जीका, निपाह वायरस को लेकर भी चेता चुके हैं। टीकाकरण में संकोच
पहुंच में होने के बावजूद टीकाकरण कराने में संकोच अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। बीमारी से बचाव के सबसे किफायती तरीकों में से एक टीकाकरण हर साल 20 से 30 लाख मौतों को रोकता है। इस प्रवृति में सुधार लाकर इस साल 15 लाख मौतों को टाला जा सकता है। प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल एक व्यक्ति के स्वास्थ्य से संबंधित जरूरतों को पूरा कर सकती है और कई गंभीर बीमारियों की रोकथाम हो सकती है। कई देशों में पर्याप्त प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं नहीं हैं। 2018 में जारी लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अपर्याप्त प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की वजह से हर साल 50 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। डेंगू
मच्छरों जनित ये बीमारी पिछले दो दशकों से खतरा बनी हुई है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इस साल डेंगू के अनुमानित 39 करोड़ मामले सामने आ सकते हैं और दुनिया की 40 फीसद आबादी डेंगू के खतरे में हैं। सही समय पर इलाज न मिलने पर इनमें से 20 फीसद की जान जा सकती है।एचआइवी
लगभग 2.2 करोड़ लोग वर्तमान में एचआइवी का इलाज करा रहे हैं। 3.7 करोड़ लोग दुनियाभर में एचआइवी से पीड़ित हैं जिनमें से 30 लाख बच्चे और किशोर हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया का 2030 तक बच्चों और किशोरों के बीच एड्स को खत्म करने का प्रयास पटरी पर नहीं हैं।यह भी पढ़ें-
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