Mirza Ghalib Top 20 Sher: हर दिल की गहराई में उतरते हैं मिर्जा गालिब के ये 20 बेहतरीन शेर
शायरी की दुनिया का शहंशाह मिर्ज़ा गालिब का आज (27 दिसंबर 2022) आज 226वां जन्मदिन है। अपनी बेबाक शेर-ओ-शायरी के लिए जाने जाने वाले मिर्जा गालिब के कुछ ऐसे शेर को पढ़ें जिसे हर उम्र के लोगों की ज़ुंबा पर तैरती है।
By Piyush KumarEdited By: Piyush KumarUpdated: Tue, 27 Dec 2022 09:05 PM (IST)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। दशकों पहले एक शायर ने यह सवाल पूछा था, 'न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता, डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता' इस सवाल का जवाब अभी तक दे पाना किसी के लिए मुमकिन नहीं हो सका।
27 दिसंबर 1797 को आगरा में जन्में मिर्ज़ा असदउल्लाह बेग ख़ान को समझना किसी आम शख्स के लिए इतना आसाना नहीं है, लेकिन दिल्ली के बल्लीमारान के 'चाचा ग़ालिब' के शेर का मज़ा उठाने के लिए किसी ऊर्दू या फारसी विश्वविधायल में जाने की जरूरत नहीं है। हालांकि, कभी-कभी उनके शेर की गहराई तक उतरना बड़े-बड़े ऊर्दू के जानकारों के लिए भी टेढ़ी खीर साबित हो जाती है।
उनका हर शेर किसी सोने की असर्फी की कीमत और चमक से कम नहीं है। आइए आज ग़ालिब के कुछ ऐसे शेरों को याद करें, जिसमें मोहब्बत की खुशबू है, सोच का समंदर है, बिछड़ने का ग़म है, साक़ी से कुछ इल्तिज़ा है और ऊपर वाले से कुछ सवालात भी हैं।
1- हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होने तक
2- बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे3- कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता4- मरते हैं आरज़ू में मरने की मौत आती है पर नहीं आती5- जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए
6- होगा कोई ऐसा भी कि 'ग़ालिब' को न जाने शाइर तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है7- 'ग़ालिब' बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे8- बना कर फ़क़ीरों का हम भेस 'ग़ालिब' तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं9- तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ए'तिबार होता10- निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले11- मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ12- जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता दुआ क्या है13- देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़ इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है14- गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मिरे आगे15- ये मसाईल-ए-तसव्वुफ़ ये तिरा बयान 'ग़ालिब' तुझे हम वली समझते जो न बादा-ख़्वार होता
16- ए'तिबार-ए-इश्क़ की ख़ाना-ख़राबी देखना ग़ैर ने की आह लेकिन वो ख़फ़ा मुझ पर हुआ17- जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है18 -अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा
19- ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब' हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे20- हां वो नहीं ख़ुदा-परस्त जाओ वो बेवफ़ा सही जिस को हो दीन ओ दिल अज़ीज़ उस की गली में जाए क्यूँयह भी पढ़ें: Mirza Ghalib Birthday: गालिब ने नवाब के लिए लिखा था शेर- तुम सलामत रहो हजार बरस, हर बरस के हों दिन पचास हजार