तमिलनाडु में जयललिता के मुख्यमंत्री बनने के साथ शुरू हुई थी नेता पूजन की परंपरा, शपथ के बाद कई हुए दंडवत
MGR की पार्टी दो धड़े में बंट गई थी। उस समय जब जयललिता का एक पक्ष खुलकर विरोध कर रहा था तो वहीं गुट एमजीआर का उत्तराधिकारी मान बैठा था। उनके विश्वास ने जयललिता के मन में हुंकार भरी और वह एमजीआर के धड़े की लीडर बन गईं।
By Ashisha Singh RajputEdited By: Ashisha Singh RajputUpdated: Mon, 08 May 2023 07:41 PM (IST)
नई दिल्ली, आशिषा सिंह राजपूत। तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री और अन्नाद्रमुक प्रमुख जयरामन जयललिता ने उतार-चढ़ाव से भरे अपने जीवन में कई लड़ाइयां लड़ी और जीतीं हैं। उनके करियर का ग्राफ भी ऊपर-नीचे हुआ लेकिन हर बार वह दुगनी ताकत से वापस उठ खड़ी हुईं। वह अपने निजी एवं राजनीतिक दुष्प्रचारकों से लड़ने के दृढ़ निश्चय के लिए पहचानी जाती हैं। राज्य के हजारों लोग उन्हें देवी का रूप में मानते थे।
तमिलनाडु की राजनीति में जयललिता ने बनाया अपना शीर्ष स्थान
एक तरफ जहां जयललिता ने फिल्मी दुनिया में पर्दे पर अपनी अदाकारी का जलवा बिखेरा तो वहीं, दूसरी तरफ तमिलनाडु की राजनीति में उन्होंने अपना शीर्ष स्थान बनाया। जयललिता के फिल्मी करियर और राजनीतिक करियर में एम जी रामचंद्रन यानी MGR का सबसे अहम और बड़ा योगदान रहा है।
MGR वही शख्स थे, जो जयललिता को राजनीति में लेकर आए थे। लेकिन MGR के निधन के बाद जयललिता ने वो दुनिया देखी, जो MGR के रहते हुए उन्होंने कभी महसूस भी नहीं की थी।इस खबर का आधार जयललिता की जीवनी पर लिखी गई किताब 'जयललिता- कैसे बनीं एक फिल्मी सितारे से सियासत की सरताज' है, जिसके कुछ दिलचस्प किस्सो में से एक पहलू का जिक्र किया गया है। इस किताब को तमिलनाडु के मशहूर लेखक में से एक वासंती द्वारा लिखा गया है, जिसका हिंदी अनुवाद सुशील चंद्र तिवारी ने किया है।
MGR के निधन के बाद जयललिता ने सीखी राजनीति
जयललिता के राजनीतिक करियर की शुरुआत डीएमके पार्टी से हुई थी। 1987 में जब एमजीआर के निधन के बाद जयललिता ने असल मायने में राजनीति को समझा। MGR की पार्टी दो धड़े में बंट गई थी। उस समय जब जयललिता का एक पक्ष खुलकर विरोध कर रहा था तो वहीं, गुट एमजीआर का उत्तराधिकारी मान बैठा था। उनके विश्वास ने जयललिता के मन में हुंकार भरी और वह एमजीआर के धड़े की लीडर बन गईं। उन्होंने खुद के एमजीआर के विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।