जल्लीकट्टू को लेकर भावुक हुईं ट्रांसजेंडर कीर्तन, कहा- बैलों के जीतने पर ऐसा लगेगा, जैसे मेरे बच्चे जीते हों
ट्रांसजेंडर कीर्तन आगामी जल्लीकट्टू के लिए अपने बैलों को तैयार कर रही हैं। उन्होंने कहा कि वे जल्लीकट्टू बैलों को अपने बच्चों के रूप में देखती हैं। जब ये बैल विजेता होंगे तो उन्हें उतनी ही खुशी होगी जितनी कि उनके अपने बच्चों के खेल जीतने पर होती है।
By AgencyEdited By: Achyut KumarUpdated: Mon, 12 Dec 2022 01:48 PM (IST)
मदुरै (तमिलनाडु), एएनआई। मदुरै की एक ट्रांसजेंडर कीर्तन (Keertana) आगामी जल्लीकट्टू उत्सव के लिए आठ बैलों को प्रशिक्षित कर रही हैं। पिछले चार सालों से कीर्तन ने खुद को इस काम के लिए समर्पित कर दिया है। ट्रांसजेंडर समुदाय के दो अन्य सदस्य बैलों के रखरखाव में कीर्तन की मदद कर रहे हैं। जल्लीकट्टू का अभ्यास तमिलनाडु में पोंगल उत्सव के एक भाग के रूप में किया जाता है, जो आमतौर पर जनवरी में होता है।
कीर्तन ने तोड़ा 'मिथ'
इससे पहले, जल्लीकट्टू को केवल पुरुषों के लिए एक वीरतापूर्ण खेल के रूप में माना जाता था। इस 'मिथ' को खारिज करते हुए, पोट्टापनायूर (मदुरै) के मूल निवासी कीर्तन ने कहा, 'यह वर्षों से साबित हो चुका है कि लिंग वीरता और उपलब्धियों को परिभाषित नहीं कर सकता है।'यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- क्या जल्लीकट्टू को किसी रूप में अनुमति दी जा सकती है
किसी 'बच्चे' से कम नहीं हैं बैल
कीर्तन के लिए जल्लीकट्टू बैल किसी 'बच्चे' से कम नहीं हैं। उन्होंने कहा, 'मेरे पास आठ जल्लीकट्टू बैल हैं। हम आगामी जल्लीकट्टू प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए इनको प्रशिक्षित कर रहे हैं। हर कोई पढ़ रहा है और अपने-अपने क्षेत्र में कुछ हासिल कर रहा है, लेकिन मेरी इच्छा जल्लीकट्टू के इस पारंपरिक खेल में हासिल करने की है।'
'मैं अपने बैलों को बच्चों की तरह देखती हूं'
कीर्तन ने कहा, 'मेरा कोई बच्चा नहीं है लेकिन मैं इन जल्लीकट्टू बैलों को अपने बच्चों के रूप में देखती हूं। जब ये बैल विजेता होंगे, तो मुझे उतनी ही खुशी होगी, जितनी कि मेरे अपने बच्चों को खेल जीतने पर।' बैलों के प्रशिक्षण में कीर्तन की मदद कर रहे दूसरे ट्रांसजेंडर अक्षय ने कहा, 'मैं कीर्तन के साथ जल्लीकट्टू सांडों को चार साल से प्रशिक्षण दे रही हूं। हमें बच्चा नहीं हो सकता, लेकिन बैल हमें खुश करते हैं। मुझे यकीन है कि वे रेस जीतने जा रहे हैं।'सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला
जल्लीकट्टू तमिलनाडु में एक मजबूत खेल के रूप में मनाया जाता है। हालांकि यह सालों से इस बहस में उलझा हुआ है कि इसे जारी रखा जाना चाहिए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले गुरुवार को सांडों को काबू करने के खेल 'जल्लीकट्टू' और बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति देने वाले तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकार के कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा।
तमिलनाडु सरकार ने पिछली सुनवाई में शीर्ष अदालत से कहा था कि खेल आयोजन सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हो सकते हैं और 'जल्लीकट्टू' में सांडों पर कोई क्रूरता नहीं है। सरकार के वकील ने कहा, 'यह एक गलत धारणा है कि एक गतिविधि, जो एक खेल या मनोरंजन की प्रकृति में है, का सांस्कृतिक मूल्य नहीं हो सकता है।'ये भी पढ़ें: RTI: जवाब देने के लिए मांगे 14 लाख रुपए, कहीं थमा दिए लीपेपोते दस्तावेज
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