सिनौली में उत्खनन: एक तरफ सेना के सामान्य योद्धाओं का तो दूसरी ओर शाही परिवार का शवाधान
इतिहासकारों के मुताबिक, दूसरे और तीसरे चरण के उत्खनन में बरामद मानव कंकाल, स्वर्ण मुद्राएं तथा कीमती वस्तुओं से प्रमाणित होता है कि यहां शवाधान केंद्र में कोई शाही राजघराना दफन है।
By Edited By: Updated: Fri, 15 Feb 2019 10:52 AM (IST)
अश्वनी त्रिपाठी, बागपत। उत्तर प्रदेश के बागपत स्थित सिनौली में चल रहे उत्खनन में अभी तक मिले प्रमाणों से महाभारतकालीन सभ्यता की पुष्टि नहीं हुई है। हां, तीन चरणों में हुए उत्खनन से अहम जानकारी जरूर उजागर हुई है। द्वितीय और तृतीय चरण के उत्खनन में निकल रहे मानव कंकाल व अवशेष प्रथम चरण के अवशेषों से बिल्कुल भिन्न हैं। पहले चरण में यहां 117 कंकाल निकाले गए। अध्ययन के बाद इतिहासकारों ने इन्हें युद्ध में मारे गए सामान्य सैनिकों का कंकाल बताया। इतिहासकारों के मुताबिक, दूसरे और तीसरे चरण के उत्खनन में बरामद मानव कंकाल, स्वर्ण मुद्राएं तथा कीमती वस्तुओं से प्रमाणित होता है कि यहां शवाधान केंद्र में कोई शाही राजघराना दफन है।
इतिहासकार डॉ. अमित राय जैन कहते हैं, प्रथम, द्वितीय और तृतीय चरण की खोदाई में मिले अवशेषों में काफी अंतर है। 2005 में हुए उत्खनन में एक शवाधान केंद्र सिनौली में ही निकला, जिससे 117 कंकाल मिले। सभी कंकालों के साथ तलवारें, हाथों में कवच, ढाल तथा युद्ध में प्रयोग होने वाले अन्य सामान मिले। इनके पास से कोई स्वर्णजड़ित या बेशकीमती वस्तु नहीं निकली। उनका दावा है कि ये कंकाल युद्ध में लड़ने वाले सैनिकों के थे, लेकिन 2018 में इस स्थान से 200 मीटर दूर खोदाई में निकले अवशेषों और कंकालों में काफी अंतर मिला। अब खोदाई में तलवारें, मुकुट व बेशकीमती शाही वस्तुएं भी निकलने लगीं। इनमें तीन भव्य रथ निकले। एक रथ पूरा था। कीमती ताबूत और नौ कंकाल भी थे, जिनके पास से सोने के आभूषण, ताम्रनिधि, स्वर्णनिधि, कीमती मुकुट और मशालें, जबकि महिलाओं के कंकालों के पास कीमती श्रंगारिक वस्तुएं मिलीं। बरामद वस्तुओं में भारी अंतर के आधार पर इतिहासकार दावा कर रहे हैं कि प्रथम चरण में हुई खोदाई में निकले कंकाल सैनिकों के थे, जबकि दूसरे और तीसरे चरण में निकले कंकाल किसी शाही घराने के हैं।
अमित राय जैन के अनुसार, तीन चरणों की खोदाई में करीब 150 कंकाल, रथ, मुकुट, आभूषण और अवशेष बरामद हो चुके हैं, बस्ती की तलाश जारी है। बताते हैं कि पांच हजार साल पूर्व इंसान अपने शवाधान केंद्रों को बस्ती से पांच सौ मीटर दूर बनाता था। इस लिहाज से महाभारतकाल की बस्ती भी सिनौली में आसपास ही होनी चाहिए। बस्ती का पता चलने के बाद ही महाभारत युग की असली खोज की जा सकेगी।
सिंधु घाटी नहीं, वास्तव में महाभारतकालीन सभ्यता
इतिहासकारों ने जिस सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता कहा है असल में वह वैदिक या महाभारतकालीन सभ्यता है। पूरे उत्तर भारत में वैदिक सभ्यता के अवशेष धरती के अंदर हैं और अब उत्खनन में बाहर निकल रहे हैं। सिनौली के उत्खनन में मिले लकड़ी के रथ पर तांबे का प्रयोग भी है। लकड़ी का हिस्सा तो मिट्टी हो चुका है, लेकिन तांबा जस का तस है। मुट्ठे वाली तलवार, तांबे की कीलें, कंघी कॉपर होर्ड कल्चर का प्रतिनिधित्व करती है। ताबूत और उसके आसपास मिली सामग्री से प्रमाणित होता है कि यह शवाधान केंद्र किसी राज परिवार का रहा होगा।
इतिहासकारों ने जिस सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता कहा है असल में वह वैदिक या महाभारतकालीन सभ्यता है। पूरे उत्तर भारत में वैदिक सभ्यता के अवशेष धरती के अंदर हैं और अब उत्खनन में बाहर निकल रहे हैं। सिनौली के उत्खनन में मिले लकड़ी के रथ पर तांबे का प्रयोग भी है। लकड़ी का हिस्सा तो मिट्टी हो चुका है, लेकिन तांबा जस का तस है। मुट्ठे वाली तलवार, तांबे की कीलें, कंघी कॉपर होर्ड कल्चर का प्रतिनिधित्व करती है। ताबूत और उसके आसपास मिली सामग्री से प्रमाणित होता है कि यह शवाधान केंद्र किसी राज परिवार का रहा होगा।