Tripura Election में तीन बड़ी ताकतों में तीन मुद्दों पर त्रिकोणीय संघर्ष, वोटों की गिनती दो मार्च को होगी
त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भाजपा को वामदल-कांग्रेस गठबंधन से तो सीधी चुनौती मिल ही रही थी ग्रेटर टिपरा लैंड को मुद्दा बनाकर त्रिपुरा के शाही परिवार के प्रद्योत देबबर्मा के नेतृत्व में एक अलग शक्ति भी प्रभावी हो चुकी थी।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में 81 प्रतिशत से अधिक मतदान ने सभी दलों की धुकधुकी बढ़ा दी है। भाजपा शासित इस राज्य पर कब्जे को लेकर तीन बड़े मुद्दों पर त्रिकोणीय संघर्ष हुआ है। भाजपा को वामदल-कांग्रेस गठबंधन से तो सीधी चुनौती मिल ही रही थी, ग्रेटर टिपरा लैंड को मुद्दा बनाकर त्रिपुरा के शाही परिवार के प्रद्योत देबबर्मा के नेतृत्व में एक अलग शक्ति भी प्रभावी हो चुकी थी।
वोटों की गिनती दो मार्च को होगी। चुनाव में अगर किसी को बहुमत नहीं मिलेगा तो टिपरा मोथा का स्टैंड महत्वपूर्ण हो सकता है। त्रिशंकु की स्थिति में पूछ बढ़ सकती है। पार्टी में टूट का खतरा भी मंडरा सकता है।
वोटिंग पैटर्न की अगर बात की जाए तो पिछली बार की तुलना में इस बार करीब आठ प्रतिशत कम वोट पड़े हैं। मतदाताओं की निरपेक्षता के असर का आकलन किया जा रहा है। हालांकि तत्काल स्पष्ट व्याख्या करना पूरी तरह सच नहीं हो सकता है। फिर भी मुद्दों के आधार पर विवेचना की जा रही है। सबसे बड़ा मुद्दा ग्रेटर टिपरा लैंड की है। परिणाम बताएगा कि टिपरा मोथा का कितना असर होगा।
राज्य में आदिवासियों की संख्या 31.8 प्रतिशत
विधानसभा की 60 सीटों में एक तिहाई अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में आदिवासियों की संख्या 31.8 प्रतिशत है। फिर भी बंगालियों के बराबर कभी प्रभाव नहीं रहा। उनके विचारों को जब तब हवा दी गई, जिससे कभी-कभी आक्रोश की अभिव्यक्ति भी होती रही।
ऐसे में कांग्रेस से अलग होकर प्रद्योत देबबर्मा ने बिखरे आदिवासी समाज को एक कर टिपरा मोथा नाम से राजनीतिक संगठन खड़ा कर दिया। अलग राज्य का नारा दिया और बहुत कम समय में ही चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया।भाजपा ने बेमेल गठबंधन को भी प्रचारित किया है। इसके असर की भी परख होनी है।
भाजपा ने अपने पुराने सहयोगी दल के साथ स्वभाविक गठबंधन जारी रखा, परंतु चुनाव की घोषणा से पहले तक कांग्रेस और वामदल दूसरे के खिलाफ आग उगलते रहे और अंतिम समय में गठबंधन कर लिया। देखा जाना बाकी है कि शीर्ष स्तर पर मेलजोल का संदेश नीचे तक किस रूप में पहुंचा है। इसके लिए दोनों दलों के पास पर्याप्त समय नहीं था। अन्य बड़े मुद्दे में पिछले पांच वर्षों के दौरान पूर्वोत्तर के राज्यों में विकास कार्य को भी कम करके नहीं आंका जा सकता।
कांग्रेस ने डाले हथियार
टिपरा मोथा के अति सक्रिय तेवर से माना जा रहा है कि वामदलों एवं कांग्रेस को झटका लग सकता है। इसका कारण भी है। टिपरा मोथा के प्रमुख प्रद्योत देबबर्मा 2019 तक प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रह चुके हैं। अलग राज्य के नाम पर रास्ता अलग किया। जिन 42 सीटों पर उन्होंने प्रत्याशी उतारे हैं, उनमें से अधिकतर पर भाजपा से सीधी लड़ाई है।
अगर प्रद्योत कांग्रेस में ही बने रहते तो संघर्ष की कहानी कुछ और होती। 2013 के चुनाव में 36 प्रतिशत से ज्यादा वोट लाने वाली कांग्रेस ने वामदल को 60 में से 47 सीटें देकर स्वयं को 13 सीटों तक सीमित कर लिया।
2018 के चुनाव की स्थिति
पार्टी : सीट : वोट प्रतिशत
भाजपा : 35 : 43.59
माकपा : 16 : 42.22
आईपीएफटी : 8 : 7.38
कांग्रेस : 00 : 01.79
भाकपा : 00 : 0.82
तृणमूल : 00 : 0.75
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