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जब इंदिरा गांधी के भी फैसले को मानने से सैम मानेकशॉ ने कर दिया था इंकार

फील्ड मार्शल सैम मानिकशॉ उन सेनाध्यक्षों में से थे जो अपने ही नहीं बल्कि दुश्मन फौज के जवानों से भी दिल से मिलते थे। इसी लिए वह सभी के चहेते थे।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Wed, 04 Apr 2018 03:47 PM (IST)
जब इंदिरा गांधी के भी फैसले को मानने से सैम मानेकशॉ ने कर दिया था इंकार

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। 1971 के भारत-पाक युद्ध के हीरो रहे सैम मानेकशॉ को भला कौन भूल सकता है। उनकी बहादुरी और चतुराई की बदौलत ही भारत ने पाकिस्तान से इकहत्तर की लड़ाई जीती थी और बांग्लादेश को पाकिस्तान के चंगुल से मुक्त कराया था। आज उन्ही‍ सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेद जी मानेकशॉ का जन्मदिन है। सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। उन्होंने करीब चार दशक फौज में गुजारे और इस दौरान पांच युद्ध में हिस्सा लिया। फौजी के रूप में उन्होंने अपनी शुरुआत ब्रिटिश इंडियन आर्मी से की थी। इसके बाद दूसरे विश्व युद्ध में भी उन्होंने हिस्सा लिया था। 1971 की जंग में उनकी बड़ी भूमिका रही। इस जंग में भारतीय फौज की जीत का खाका भी खुद मानेकशॉ ने ही खींचा था। इसके लिए उन्होंने इंदिरा गांधी के हुक्म को भी मानने से इंकार कर दिया था।

सैम ने किया इंदिरा का विरोध

सैम ने एक इंटरव्यू के दौरान उस वक्त की कुछ बातों को सार्वजनिक किया था। उन्होंने बताया कि पूर्वी पाकिस्तान को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री काफी चिंतित थीं। उन्होंने अप्रैल 27 को एक आपात बैठक बुलाई, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान को लेकर उनकी चिंता साफ जाहिर हुई। उस बैठक में सैम भी आमंत्रित थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम को कहा कि कुछ करना होगा। उनके पूछने पर इंदिरा गांधी ने उन्हें पूर्वी पाकिस्तान में जंग पर जाने को कहा। लेकिन सैम ने इसका विरोध किया।

जंग के लिए तैयार नहीं फौज

उन्होंने कहा कि अभी वह इसके लिए तैयार नहीं हैं। प्रधानमंत्री को यह नागवार गुजरा और उन्होंने इसकी वजह भी पूछी। सैम ने बताया कि हमारे पास अभी न फौज एकत्रित है न ही जवानों को उस हालात में लड़ने का प्रशिक्षण है, जिसमें हम जंग को कम नुकसान के साथ जीत सकें। उन्होंने कहा कि जंग के लिए अभी माकूल समय नहीं है लिहाजा अभी जंग नहीं होगी। इंदिरा गांधी के सामने बैठकर यह उनकी जिद की इंतहा थी। उन्होंने कहा कि अभी उन्हें जवानों को एकत्रित करने और उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए समय चाहिए, और जब जंग का समय आएगा तो वह उन्हें बता देंगे।

इंदिरा गांधी की नाराजगी

इस वाक्ये को याद करते हुए उन्होंने बताया कि उनके इस कथन पर प्रधानमंत्री काफी समय तक नाराज रहीं। लेकिन जब फौजियों को एकत्रित करने और प्रशिक्षण देने के बाद वह उनसे मिले तो उनके पास जंग का पूरा खाका तैयार था। इस पर इंदिरा गांधी और उनके सहयोगी मंत्रियों ने सैम से जानना चाहा कि जंग कितने दिन में खत्म हो जाएगी। जवाब में सैम ने कहा कि बांग्लादेश फ्रांस जितना बडा है। एक तरफ से चलना शुरू करेंगे तो दूसरे छोर तक जाने में डेढ से दो माह लगेंगे। लेकिन जब जंग महज चौदह दिनों में खत्म हो गई तो उन्हीं मंत्रियों ने उनसे दोबारा यह सवाल किया कि उन्होंने पहले चौदह दिन क्यों नहीं बताए थे। तब सैम ने कहा कि यदि वह चौदह दिन बता देते और पंद्रह दिन हो जाते तो वहीं उनकी टांग खींचते।

सरेंडर एग्रीमेंट

उन्होंने बताया कि जब जंग अपने अंतिम दौर में थी तब उन्होंने एक सरेंडर एग्रीमेंट बनाया और उसे पूर्वी पाकिस्तान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा को फोन पर लिखवाया और कहा कि इसकी चार कापी बनाई जाएं। एक काफी जनरल नियाजी को दूसरी प्रधानमंत्री को तीसरी जनरल अरोड़ा को और चौथी उनके आफिस में रखने के लिए। उन्होंने बताया कि जंग खत्म होने पर जब वह लगभग नब्बे हजार से ज्यादा कि पाकिस्तान फौज के साथ भारत आए तो उन्होंने पूरी पाक फौज के लिए रहने और खाने की व्यवस्था करवाई। एक वाकये का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ दिन बाद वह पाक कैंप में फौजियों से मिलने गए जहां कई सूबेदार मेजर रेंक के अफसर थे। उन्होंने उनसे हाथ मिलाया और कैंप में मिल रही सुविधाओं के बारे में पूछा और उनके साथ खाना खाया।

समझ गया कि आपने जीत कैसे हासिल की

बाद में वह एक सिपाही से मिलने उसके तंबू में गए और उसके आगे हाथ बढ़ा दिया। उसने हाथ मिलाने से इंकार कर दिया। तब सैम ने उससे पूछा कि तुम हमसे हाथ भी नहीं मिला सकते। बाद में वह सिपाही काफी हिचका और हाथ मिलाया। वह बोला साहब मैं अब समझ गया कि आपने जीत कैसे हासिल की। हमारे अफसर जनरल नियाजी कभी हमसे इस तरह से नहीं मिले जैसे आप मिले हैं। वह हमेशा ही अपने गुरूर में रहते थे और हमें कुछ नहीं समझते थे। इतना कहकर सिपाही भावुक हो गया।

फौजियों से बेहद प्यार 

दरअसल सैम मानेकशॉ एक ऐसे अफसर थे जो अपने फौजियों को बेहद प्यार किया करते थे और उनकी हर खुशी और दुख में शरीक होते थे। फिर चाहे वह मोर्चे पर हों या कहीं और किसी से मिलने में उन्हें कोई परहेज नहीं था। इसी दम पर वह अपनी फौज में सबके चहेते थे।

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