भारत विरोधी गतिविधियों का गढ़ बन रहा तुर्किये, कूटनीतिक तरीके से एर्दोगेन सरकार पर दबाव बनाने की है रणनीति
भारत में कट्टरता फैलाने में तुर्किये की इन एजेंसियों की गतिविधियों का मुद्दा भारत ने कूटनीतिक स्तर पर उठाया भी है। तुर्किये में राष्ट्रपति एर्दोगेन की सरकार आने के बाद से वहां पाकिस्तान परस्त और भारत विरोधी गतिविधियों के कई उदाहरण मिले हैं। (फाइल फोटो)
By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Updated: Mon, 14 Nov 2022 10:05 PM (IST)
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। इसी वर्ष सितंबर में जब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तुर्किये के अपने समकक्ष मेवलुत कालुसोगलू से मुलाकात की थी तो ऐसा प्रतीत हुआ कि दोनों देशों के बीच कश्मीर को लेकर जारी मतभेद को दूर करने की कोशिश होगी, लेकिन उसके बाद जो संकेत तुर्किये से भारतीय एजेंसियों को मिले हैं, वह बहुत उत्साहवर्द्धक नहीं है।
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जिस तरह से अस्सी व नब्बे के दशक की शुरुआत में दुबई भारत विरोधी गतिविधियों का वैश्विक केंद्र बन गया था, उसी तरह से अंकारा भी भारत के हितों के खिलाफ एक केंद्र बन रहा है। हाल के महीनों में जिस तरह से अफगानिस्तान में और उसके बाद मध्य एशियाई देशों में तुर्किये की तरफ से अपनी गतिविधियां तेज करने की सूचनाएं आ रही हैं, उससे भारत की सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हैं।
पाकिस्तान तुर्किये के जरिए कश्मीर में भारत के खिलाफ काम करने में जुटा
भारत के रणनीतिकारों को पुख्ता जानकारी है कि पाकिस्तान तुर्किये के जरिए कश्मीर और अफगानिस्तान में भारत के हितों के खिलाफ काम करने की साजिश में जुटा है। तुर्किये सरकार के कई बड़े अधिकारी इसमें पाकिस्तान की एजेंसियों को पूरा मदद कर रहे हैं।
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भारत के रणनीतिकारों की बढ़ी चिंता
हाल ही में तुर्किये और उज्बेकिस्तान के बीच सैन्य सहयोग को लेकर एक समझौता हुआ है जिसको लेकर भारत के रणनीतिकारों की चिंता बढ़ी है। उज्बेकिस्तान मध्य एशिया के सबसे अहम देशों में से एक है और अब पाकिस्तान का एक बड़ा सहयोगी देश तुर्किये उसके साथ एक गहरा सैन्य संबंध बनाने की नींव रख रहा है। यह समझौता तब हुआ है जब भारत खुद उज्बेकिस्तान व ईरान के साथ मिल कर चाबहार पोर्ट को विकसित करने और उसके जरिये मध्य एशिया में रास्ता तलाशने की कोशिश में है।