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पाकिस्तान को सबसे बड़ा झटका, UN में दोस्त ने नहीं दिया साथ; कश्मीर मुद्दे पर साधी चुप्पी

वर्ष 2019 में जब भारत ने अनुच्छेद 370 समाप्त किया एर्दोगेन ने अपने भाषण में पाकिस्तान के समर्थन में कहा था कि दक्षिण एशिया में कश्मीर मुद्दे का समाधान किये बिना शांति स्थापित नहीं हो सकती। इसके बाद उन्होंने कश्मीर की तुलना गाजा पट्टी से की और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के आधार पर इसके समाधान की मांग की। इस साल एर्दोगन ने यूएनजीए में कश्मीर का जिक्र नहीं किया।

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Updated: Wed, 25 Sep 2024 09:09 PM (IST)
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तुर्किए के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री (File Photo)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कश्मीर मुद्दे को हर वर्ष संयुक्त राष्ट्र की सालाना महासभा (यूएनजीए) में उठाने की जुगत में जुटे पाकिस्तान को इस बार मुंह की खानी पड़ी है। पाकिस्तान को सबसे बड़ा झटका उसके मित्र देश तुर्किए के राष्ट्रपति रेसीप एर्दोगन ने दिया है जिन्होंने यूएनजीए में अपने भाषण में कश्मीर का कोई उल्लेख नहीं किया है। जबकि पिछले पांच वर्षों से तुर्किए के राष्ट्रपति लगातार कश्मीर का मुद्दा उठाते रहे हैं।

तुर्किए के राष्ट्रपति ने वर्ष 2019 से वर्ष 2923 तक यूएनजीए के हर भाषण में कश्मीर का जिक्र किया और कई बार उन्होंने भारत पर तीखे हमले भी किये हैं।

कश्मीर का जिक्र नहीं

अनुच्छेद 370 समाप्त किए जानते पर एर्दोगेन ने पाकिस्तान का समर्थन करते हुए कहा था कि दक्षिण एशिया में कश्मीर मुद्दे का समाधान किये बिना शांति स्थापित नहीं हो सकती। इसके बाद उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के आधार पर इसके समाधान की मांग की। लेकिन इस साल उन्होंने गाजा का मुद्दा तो उठाया लेकिन कश्मीर का जिक्र नहीं किया।

कश्मीर पर कब्जा

कश्मीर पर पाकिस्तान को पूर्व में मलेशिया से भी मदद मिली है। वर्ष 2019 में तत्कालीन पीएम महाथिर मोहम्मद ने यूएनजीए में अपने भाषण में भारत पर कश्मीर पर कब्जा करने का अनर्गल आरोप लगाया था। मोहम्मद के बाद मलेशिया के दूसरे पीएम ने ऐसा नहीं किया और ना ही इस वर्ष किये जाने की संभावना है।

जानकार बताते हैं कि एर्दोगन के बदले रवैये के पीछे ब्राजील, रूस, भारत, चीन व दक्षिण अफ्रीका (ब्रिक्स) संगठन में उसके प्रवेश करने की इच्छा है। ब्रिक्स का सदस्य बनने के लिए तुर्किए को भारत का सहयोग चाहिए।

इस वजह से नहीं उठाया कश्मीर का मुद्दा

पिछले वर्ष नई दिल्ली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में एर्दोगन ने हिस्सा लिया था और पीएम मोदी से उनकी द्विपक्षीय मुलाकात भी हुई थी। उसके बाद से एर्दोगन प्रशासन का रवैया बदला है। कश्मीर मुद्दे को उठाने की वजह से भारत ने रक्षा व कारोबार क्षेत्र में चल रहे सहयोग की गति धीमी कर दी थी। अब संकेत है कि इन पर बात फिर आगे बढ़ सकती है।

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