EWS Verdict संवैधानिक पीठ के सामने आने वाले कई मामले ऐसे रहे हैं जिन पर पीठ के सभी सदस्यों की राय एक नहीं रही है। ऐसे में बहुमत पर फैसला लिया गया। EWS रिजर्वेशन विवाद पर आया फैसला भी ऐसा ही है लेकिन दो मामले इनसे अलग हैं।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Mon, 07 Nov 2022 02:33 PM (IST)
नई दिल्ली (आनलाइन डेस्क)। देश की आजादी के बाद से सुप्रीट कोर्ट की संवैधानिक पीठ (Constitutional Bench of Supreme Court) ने कई मामलों का निपटारा किया है। ये सभी मामले यूं तो अपने आप में अहम रहे हैं, लेकिन इनमें से दो मामले ऐसे थे, जिनसे देश की राजनीति, संस्कृति और आम जनता पूरी तरह से प्रभावित थी। ये दो मामले उन कई मामलों से बेहद अलग इसलिए भी हैं,क्योंकि इनमें संवैधानिक पीठ के सभी सदस्यों की राय एक समान थी।
क्यों खास है एक समान राय का होना
इन मामलों में एक समान राय का दिखाई देना इसलिए बेहद खास हो जाता है, क्योंकि इसके बाद 'न' की कोई गुंजाइश ही नहीं होती है। आपको बता दें कि हाल ही में EWS Reservation विवाद पर आया सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ का फैसला 3-2 से लिया गया है। संवैधानिक पीठ के फैसले अधिकतर बहुमत के आधार पर ही लिए जाते रहे हैं। ऐसे मामले बेहद कम ही हैं, जिनमें पीठ के सभी सदस्यों की राय एक समान रही है। ऐसे दो मामलों में से एक अयोध्या विवाद और दूसरा समलैंगिकता का अधिकार मामला रहा है।
अयोध्या विवाद
भारत की आजादी के बाद से ही ये विवाद लगातार निलंबित रहा। इस पर लगातार राजनीति होती रही। ये मामला राजनीतिक भी था और आस्था से भी जुड़ा था। इस मामले ने निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर पूरा किया। इस मामले की सुनवाई को अंत में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ का गठन किया गया। इस पीठ की अध्यक्षता तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रजंन गोगोई ने की थी। इस पीठ ने 9 नवंबर 2019 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
क्या था फैसला
अपने फैसले में कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा की याचिका को खारिज करते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड को भी इस वाद को लगाने के अधिकार से वंचित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 5-0 से एकमत होकर विवादित स्थल को मंदिर स्थल माना और फैसला रामलला के पक्ष मे सुनाया था। कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित भूमि को राम जन्मभूमि माना और मस्जिद के लिये अयोध्या में 5 एकड़ जमीन देने का आदेश राज्य सरकार को दिया था।
अनुच्छेद 377 समलैंगिकता का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट के इस मामले में दिए ऐतिहासिक फैसले ने देश की तस्वीर बदलने में एक अहम भूमिका निभाई। इस फैसले से पूर्व देश में थर्ड जेंडर को कोई मान्यता नहीं प्राप्त थी, लेकिन इस फैसले के बाद इसमें आमूलचूल बदलाव हुआ। थर्ड जैंडर को न सिर्फ कानूनी मान्यता हासिल हुई, बल्कि समाज में उन्हें बराबर का दर्जा भी हासिल हुआ था। एलजीबीटी के अधिकारों को लेकर सुनाया गया सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ का ये फैसला ऐतिहासिक था। इस फैसले के बाद इस समुदाय के लोगों को हीनभावना से देखना बंद हो गया। लोग खुल कर सामने आए और माना कि वो ऐसे हैं। समान लिंग के लोगों के बीच यौन गतिविधि कानूनी है, लेकिन समान-लिंग वाले जोड़े कानूनी रूप से विवाह नहीं कर सकते हैं या नागरिक भागीदारी प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
क्या था फैसला
6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377(भारतीय दंड संहिता) को असंवैधानिक घोषित करके समलैंगिकता के अपराधीकरण को समाप्त कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में वर्ष 2014 के बाद से भारत में ट्रांसजेंडर लोगों को बिना लिंग परीक्षण के लिंग बदलने की अनुमति दी। कोर्ट ने उन्हें थर्ड जेंडर के तौर पर रजिस्टर्ड करने का हक दिया। आपको बता दें कि भारत में 2011 की जनगणना के मुताबिक करीब 4.80 लाख लोग इस श्रेणी में आते हैं। इस फैसले को सुनाने वाली पीठ में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, एएम खानविल्कर, डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल थे। पीठ ने अपने फैसले में साफ किया था कि इस कानून को पूरी तरह से निरस्त नहीं किया है। इसको निरस्त करने से अराजकता बढ़ सकती है।
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