Udham Singh: 21 साल बाद उधम सिंह ने ऐसे जलियांवाला बाग कांड का लिया था बदला, मोटी किताब में छुपाई थी पिस्तौल
Uddham Singh Death Anniversary 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड का उधम सिंह पर गहरा असर पड़ा था। उन्होंने मन में ठान लिया था कि वह डायर को उसके किए अपराधों की सजा दिलाकर रहेंगे। मासूम लोगों की हत्या का बदला लेने के लिए उन्हें 21 साल का समय लग गया था। आज उधम सिंह की बरसी है और हम आपको उनकी देशप्रेम की कहानी बताएंगे।
By Nidhi AvinashEdited By: Nidhi AvinashUpdated: Mon, 31 Jul 2023 10:22 AM (IST)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Udham Singh: 'सेवा देश दी जिंदड़ीए बड़ी ओखी, गल्लां करनियां ढेर सुखालियां ने, जिन्हां देश सेवा विच्च पैर धरया, ओहना लख मुसीबतां झेलियां ने।' शहीद उधम सिंह इस नज्म को अक्सर गुनगुनाते थे। इस नज्म से उनका गहरा लगाव था।
13 मार्च 1940 को माइकल ओ डायर को मारने के बाद जब ब्रिटिश पुलिस ने उनके लंदन स्थित घर की तलाशी ली थी तो वहां से उन्हें एक लाल रंग की निजी डायरी मिली थी। इस डायरी में ऊधम सिंह ने इस नज्म को पंजाबी में तराशा हुआ था।आज उधम सिंह की बरसी है। आज ही के दिन 1940 में उधम सिंह को फांसी दी गई थी। आखिर, ऐसा क्यों किया गया आइए जानें...
इन नामों से जाने जाते थे शहीद ऊधम सिंह
विदेशों में फ्रैंक ब्राजील और बावा सिंह के नाम से रहे, लेकिन उनकी डायरी में वह अपना नाम केवल राम मोहम्मद सिंह आजाद (एमएस आजाद) लिखते थे। लंदन की दो जेलों में बंद रहने के दौरान उन्होंने दर्जनों पत्र लिखे और सभी पर एमएस आजाद नाम ही दर्ज था। खुद को राम मोहम्मद सिंह आजाद के नाम से स्थापित करने के पीछे उधम सिंह का मकसद केवल भारतीयों के मन में धर्मनिरपेक्षता की आवाज बुलंद करना था।
माता-पिता और भाई की मौत के बाद अकेले हो गए थे उधम सिंह
सरदार उधम सिंह ने जलियांवाला बाग कांड के जघन्य नरसंहार को अंजाम देने वाले और पंजाब के तत्कालीन गर्वनर जनरल माइकल ओ डायर को लंदन जाकर गोली मारी थी। मासूम लोगों की हत्या का बदला लेने के लिए उन्हें 21 साल का समय लगा। क्रांतिकारी उधम सिंह को इसके लिए 31 जुलाई 1940 को लंदन के कॉक्सटन हॉल में फांसी की सजा सुनाई गई थी।
26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरुर इलाके के सुनाम गांव में जन्मे उधम सिंह केवल 3 साल के थे, जब उनकी मां का देहांत हो गया था। कुछ सालों के बाद उनके पिता भी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। अनाथ हो जाने के कारण उधम और उनके भाई मुक्ता सिंह को अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। इस दौरान उनके बड़े भाई की भी मौत हो गई। वह पूरे अकेले हो गए थे। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए।