विश्वस्तरीय बनाने के लिए यूजीसी का बदलेगा स्वरूप
यूजीसी को मजबूत देने को लेकर यह पहल उस समय शुरू हुई है, जब उसके ज्यादातर नियम-कायदे मौजूदा जरूरतों के लिहाज से अनुपयुक्त हो गए है।
अरविंद पांडेय। नई दिल्ली। उच्च शिक्षण संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाने के साथ और ज्यादा स्वायत्तता देने में जुटी सरकार अब यूजीसी को भी नया स्वरूप देगी। मौजूदा जरूरतों को देखते हुए उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए नए सिरे से नियम-कायदे गढ़े जाएंगे। सरकार के स्तर पर इसे लेकर सहमति लगभग बन चुकी है। जल्द ही इस पर काम भी शुरु हो सकता है। संसद के मानसून सत्र में सरकार इसे लेकर बिल भी ला सकती है।
यूजीसी को मजबूत देने को लेकर यह पहल उस समय शुरू हुई है, जब उसके ज्यादातर नियम-कायदे मौजूदा जरूरतों के लिहाज से अनुपयुक्त हो गए है। ऐसे में उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए नए नियम अब वैश्विक जरूरतों के लिहाज से तैयार किए जाएंगे। उच्च शिक्षण संस्थानों को मजबूती देने के लिए यूजीसी के नियमों में बदलाव की पहल पहले भी की गई है, लेकिन अंत समय में सरकार को इसे टालना पड़ गया था। अब सरकार फिर से इसे लेकर आगे बढ़ी है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों की मानें तो मौजूदा जरूरतों के लिहाज से यूजीसी के नियमों में बदलाव जरूरी हो गया है। ऐसे में इसे अब और टालना ठीक नहीं रहेगी। उच्च शिक्षण संस्थानों के संचालन को लेकर यूजीसी ने मौजूदा प्रचलित नियमों को 1956 में तैयार किया था। तब से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काफी बदलाव आ गए है।
यूजीसी के नियमों में बदलाव की यह सिफारिश नीति आयोग भी कर चुकी है। इसके पहले नीति आयोग की सिफारिश पर सरकार ने हाल ही में आईआईएम बिल को भी मंजूरी दी है। इसके बाद आईआईएम से मिलने वाली डिग्रियों की साख वैश्विक स्तर पर बढ़ी है। अभी तक आईआईएम की तरफ से डिप्लोमा प्रदान किया जाता था। सरकार इसके अलावा इंजीनियरिंग कालेजों को नियंत्रित करने वाली संस्था एआईसीटीई और बीएड कालेजों को नियंत्रित करने वाली संस्था एनटीसीई के नियमों में भी बदलाव करने की योजना पर काम कर रही है। मौजूदा समय में इंजीनियरिंग और बीएड कालेजों की गुणवत्ता को लेकर सवाल खड़े होते रहते है। ऐसे में सरकार का मानना है कि इसके कानून को भी कड़ा बनाया जाए, ताकि संस्थानों की विश्वसनीयता बरकरार रहे। माना जा रहा है कि यूजीसी के साथ इसके बदलाव का भी मसौदा जल्द ही सामने आ सकता है।