उल्फा ने हथियार और गोला-बारूद को त्यागा, शांति समझौते के बाद भंग हुआ उग्रवादी संगठन; त्रिपक्षीय समझौते पर किए थे दस्तखत
सशस्त्र अलगाववादी संगठन उल्फा ने अपने गठन के 44 साल बाद औपचारिक रूप से भंग हो गया है। संगठन साढ़े चार दशक के अस्तित्व के दौरान स्वतंत्र असम के लिए एक हिंसक अभियान चलाया। संगठन के महासचिव अनूप चेतिया ने बताया कि संगठन को भंग करने का निर्णय मंगलवार को असम के दरांग जिले में हुई संगठन की बैठक में लिया गया।
पीटीआई, गुवाहाटी। सशस्त्र अलगाववादी संगठन उल्फा ने अपने गठन के 44 साल बाद औपचारिक रूप से भंग हो गया है। संगठन साढ़े चार दशक के अस्तित्व के दौरान स्वतंत्र असम के लिए एक हिंसक अभियान चलाया।
पिछले दिसंबर में केंद्र और असम सरकार के साथ अपने त्रिपक्षीय शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। अब इसी समझौते के आधार पर औपचारिक रूप से संगठन भंग हो गया। उल्फा भंग होने के साथ ही 23 जनवरी का दिन इतिहास के पन्नो पर दर्ज हो गया। संगठन के एक वरिष्ठ नेता ने यह जानकारी दी।
'हिंसा का रास्ता छोड़ें उल्फा'
समझौते में कहा गया था कि उल्फा को हिंसा का रास्ता छोड़ देना होगा, सभी हथियार और गोला-बारूद त्यागने होंगे और एक महीने के भीतर संगठन को भंग करना होगा। संगठन के महासचिव अनूप चेतिया ने बताया,
संगठन को भंग करने का निर्णय मंगलवार को असम के दरांग जिले में हुई संगठन की बैठक में लिया गया। संगठन की पिछली आम परिषद की बैठक में उसके कैडर की अनजाने में की गई गलतियों और कमीशन के अन्य कृत्यों के लिए बिना शर्त माफी मांगी थी।
उन्होंने बताया कि संगठन सात अप्रैल, 1979 को अस्तित्व में आया था। इसे ऊपरी असम के शिवसागर में अहोम-युग के रंग घर स्मारक के प्रांगण में बनाया गया था। अविभाजित उल्फा के कमांडर इन चीफ परेश बरुआ वार्ता विरोधी उल्फा (स्वतंत्र) गुट के प्रमुख बने हुए हैं।