Agnipath Scheme Protest: अग्निपथ योजना में ऐसी कोई खामी नहीं दिखती जिसके नाम पर इतना विरोध किया जाए
कुछ विघ्नसंतोषियों ने आशंका जताई है कि शायद युवाओं के आदर्शो में बदलाव आ सकता है और वे नकारात्मक ताकतों के साथ मिल सकते हैं। यह सचमुच में भारतीय युवाओं और सेना दोनों के मूल्यों व आदर्शो का अपमान है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 21 Jun 2022 08:58 PM (IST)
नरेंद्र शर्मा। नई तकनीक, नई योजना और नए विचार का अक्सर विरोध होता है, परंतु जिस तरह का विरोध अग्निपथ योजना को लेकर हो रहा है, वह समझ का विरोध कम, हताशा का हाहाकार ज्यादा लग रहा है। लोकतंत्र में यदि विरोध की वकालत की जाती है तो उसका तार्किक भी होना चाहिए। जब सरकार ने युवाओं के पहले दिन के विरोध के बाद ही भ्रम दूर करने के लिए सारे बिंदुओं को नए सिरे से स्पष्ट किया तो फिर विरोध करने वालों की भी जिम्मेदारी थी कि वे विरोध की मनमर्जी के बजाय इसका तार्किक विवेचन करते।
कुछ भूतपूर्व सैन्य अधिकारी भले ही अग्निपथ योजना का दबी जुबान से विरोध कर रहे हैं, लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि इसका समर्थन करने वालों की संख्या विरोध करने वालों की तुलना में कहीं बहुत अधिक है। ऐसे में क्यों न माना जाए कि विरोधी आतंक पैदा करके सरकार को डराने की कोशिश कर रहे हैं? जबकि केंद्र सरकार ने साफ तौर पर कहा है कि चार साल बाद 25 प्रतिशत अग्निवीरों को तो सेना में ही स्थायी रूप से ले लिया जाएगा और शेष बचे जवानों में से जो उद्यमी बनना चाहता है, जो कारोबार करना चाहेगा, उसे रियायती दर पर बैंक से कर्ज की सुविधा दी जाएगी।
जो आगे पढ़ना चाहते हैं, उन्हें कक्षा 12वीं का सर्टिफिकेट दिया जाएगा, अगर सेना में चार साल बिताने वाला वह नौजवान 10वीं पास करके ही आया होगा। आगे की पढ़ाई के लिए ब्रिजिंग कोर्स की सुविधा दी जाएगी और जो युवा नौकरी करना चाहेंगे उन्हें कई केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और राज्य पुलिस भर्ती में प्राथमिकता दी जाएगी। सरकार ने यह भी कहा है कि अग्निपथ योजना से युवाओं के लिए अवसरों की कमी नहीं होगी। इसके उलट अवसरों में वृद्धि होगी।
सरकार ने इस बात को भी विस्तार से स्पष्ट कर दिया है कि अग्निपथ योजना के कारण भारतीय सेना रेजिमेंट व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा, बल्कि यह और मजबूत होगी, क्योंकि इस योजना के तहत उत्कृष्ट अग्निवीरों का चयन होगा। जो लोग यह भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं कि सेना के तीनों अंगों की क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ेगा, सरकार ने उनकी इस आशंका को भी बेमतलब की बताया है। विश्व के अनेक देशों में इस तरह की संक्षिप्त सेवा मौजूद है, जहां इनका पहले ही परीक्षण हो चुका है और उससे स्पष्ट हो गया है कि इससे सेना की पारंपरिक व्यवस्था में कोई मुश्किलें नहीं पैदा होंगी। दुनियाभर की सेनाओं को देखें तो उसमें युवाओं की संख्या काफी ज्यादा है। इस पूरी व्यवस्था को इस ढंग से डिजाइन किया गया है कि कभी भी युवाओं तथा अनुभवियों के बीच 50-50 प्रतिशत से ज्यादा का फासला नहीं होगा।
कुछ विघ्नसंतोषियों ने आशंका जताई है कि शायद युवाओं के आदर्शो में बदलाव आ सकता है और वे नकारात्मक ताकतों के साथ मिल सकते हैं। यह सचमुच में भारतीय युवाओं और सेना दोनों के मूल्यों व आदर्शो का अपमान है। जब बिना कोई राष्ट्रवादी ट्रेनिंग पाए और बिना किसी भविष्य की सुरक्षा के भारत के आम युवा देश की नकारात्मक ताकतों के साथ नहीं घुलते-मिलते तो फिर ऐसी आशंका क्यों जताई जा रही है कि चार साल की शानदार ट्रेनिंग पाने और अनुशासन में रहने के बाद युवा आतंकियों के साथ कैसे मिल जाएंगे, जबकि तब उनके पास गंवाने के लिए बहुत कुछ होगा। अगर ऐसा होना हो तो सबसे पहले वे युवा अतिवादियों से जा मिलें जिनके पास न तो ऐसी कोई ट्रेनिंग है, न कोई न्यूनतम सुरक्षित भविष्य है और न किसी तरह की आर्थिक उपलब्धि। जबकि चार वर्षो में यहां युवक ऐसी हर चीज हासिल करेंगे।