Uniform Civil Code: समान नागरिक संहिता क्या है और इसके लागू होने पर क्या प्रभाव पड़ेगा, जानें सब कुछ
What is Uniform Civil Code समान नागरिक संहिता यानी यूनिफार्म सिविल कोड इस समय देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। राज्यसभा में भी इसे लेकर विधेयक पेश किया गया है जिसका विपक्ष ने विरोध किया। आइए जानते हैं यूनिफार्म सिविल कोड क्या है...
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। भारतीय जनता पार्टी के सांसद किरोड़ी साल मीणा ने शुक्रवार को राज्यसभा में भारी हंगामे के बीच समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किया। इसका विपक्ष ने विरोध किया। विधेयक के पक्ष में 63 तो विपक्ष में 23 मत पड़े। आइए जानते हैं कि समान नागरिक संहिता क्या है, इसको लागू करने की मांग क्यों की जा रही है और इसके लागू होने से क्या प्रभाव पड़ेगा...
समान नागरिक संहिता क्या है (What is Uniform Civil Code)
समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिए एक कानून सुनिश्चित करेगी, जो सभी धार्मिक और आदिवासी समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे संपत्ति, विवाह, विरासत और गोद लेने आदि में लागू होगा। इसका मतलब यह है कि हिंदू विवाह अधिनियम (1955), हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) और मुस्लिम व्यक्तिगत कानून आवेदन अधिनियम (1937) जैसे धर्म पर आधारित मौजूदा व्यक्तिगत कानून तकनीकी रूप से भंग हो जाएंगे।
अनुच्छेद 44 क्या है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के मुताबिक, 'राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।' यानी संविधान सरकार को सभी समुदायों को उन मामलों पर एक साथ लाने का निर्देश दे रहा है, जो वर्तमान में उनके संबंधित व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित हैं। हालांकि, यह राज्य की नीति का एक निर्देशक सिद्धांत है, जिसका अर्थ है कि यह लागू करने योग्य नहीं है।
उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 47 राज्य को नशीले पेय और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दवाओं के सेवन पर रोक लगाने का निर्देश देता है। हालांकि, देश के अधिकांश राज्यों में खपत के लिए शराब बेची जाती है।
कानूनी विशेषज्ञों की अलग राय
कानूनी विशेषज्ञ इस बात पर बंटे हुए हैं कि क्या किसी राज्य के पास समान नागरिक संहिता लाने की शक्ति है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि चूंकि विवाह, तलाक, विरासत और संपत्ति के अधिकार जैसे मुद्दे संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं, जो 52 विषयों की सूची है, जिन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, राज्य सरकारों के पास इसे लागू करने की शक्ति।
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हालांकि अनुच्छेद 44 कहता है कि एक यूसीसी 'भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों' पर लागू होगा, जिसका अर्थ यह प्रतीत होता है कि अलग-अलग राज्यों के पास वह शक्ति नहीं है। यूसीसी लाने के लिए राज्यों को शक्ति देने से कई व्यावहारिक मुद्दे भी सामने आ सकते हैं। उदाहरण के लिए, क्या होगा यदि गुजरात में यूसीसी है और उस राज्य में शादी करने वाले दो लोग राजस्थान चले जाते हैं? वे किस कानून का पालन करेंगे?
भाजपा के एजेंडे में है यूनिफार्म सिविल कोड
बता दें, समान नागरिक संहिता यानी यूनिफार्म सिविल कोड का मुद्दा लंबे समय से बहस का केंद्र रहा है। भाजपा के एजेंडे में भी यह शामिल रहा है। पार्टी जोर देती रही है कि इसे लेकर संसद में कानून बनाया जाए। भाजपा के 2019 लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में भी यह शामिल था।
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अनुच्छेद 44 का उद्देश्य कमजोर समूहों के खिलाफ भेदभाव को दूर करना और देश भर में विविध सांस्कृतिक समूहों के बीच सामंजस्य स्थापित करना है। डा. बीआर आंबेडकर ने संविधान तैयार करते समय कहा था कि यूसीसी वांछनीय है, लेकिन फिलहाल यह स्वैच्छिक रहना चाहिए। इस प्रकार संविधान के मसौदे के अनुच्छेद 35 को भाग IV में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के हिस्से के रूप में जोड़ा गया था।
समान नागरिक संहिता की उत्पति कैसे हुई?
समान नागरिक संहिता की उत्पत्ति औपनिवेशिक भारत में हुई, जब ब्रिटिश सरकार ने 1835 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें अपराधों, सबूतों और अनुबंधों से संबंधित भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता की आवश्यकता पर जोर दिया गया था। यह भी सिफारिश की गई थी हिंदुओं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इस तरह के संहिताकरण के बाहर रखा जाए।
राव समिति का गठन
ब्रिटिश सरकार ने व्यक्तिगत मुद्दों से निपटने वाले कानूनों में हुई वृद्धि को देखते हुए 1941 में हिंदू कानून को संहिता बद्ध करने के लिए बीएन राव समिति बनाई। इस समिति का काम हिंदू कानूनों की आवश्यकता के प्रश्न की जांच करना था। समिति ने शास्त्रों के अनुसार, एक संहिताबद्ध हिंदू कानून की सिफारिश की, जो महिलाओं को समान अधिकार देगा।
1956 में अपनाया गया हिंदू कोड बिल
समिति ने 1937 के अधिनियम की समीक्षा की और हिंदुओं के लिए विवाह और उत्तराधिकार के नागरिक संहिता की मांग की। राव समिति की रिपोर्ट का प्रारूप बीआर आंबेडकर की अध्यक्षता वाली एक चयन समिति को प्रस्तुत किया था। 1952 में हिंदू कोड बिल को दोबारा पेश किया गया। बिल को 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के रूप में अपनाया गया।
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