Amit Shah: गांवों के विकास के लिए 25 वर्षों का लक्ष्य तय करे नाबार्ड- अमित शाह
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के 42वें स्थापना दिवस पर गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने के लिए 25 वर्षों का लक्ष्य तय करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि इस लक्ष्य को नाबार्ड का सिर्फ बोर्ड नहीं बल्कि प्रत्येक कर्मचारी के सहयोग से तय किया जाना चाहिए। प्रत्येक पांच-पांच वर्ष पर उसकी समीक्षा भी होनी चाहिए।
By Jagran NewsEdited By: Mohd FaisalUpdated: Wed, 12 Jul 2023 09:30 PM (IST)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के 42वें स्थापना दिवस पर गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने के लिए 25 वर्षों का लक्ष्य तय करने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि इस लक्ष्य को नाबार्ड का सिर्फ बोर्ड नहीं, बल्कि प्रत्येक कर्मचारी के सहयोग से तय किया जाना चाहिए। प्रत्येक पांच-पांच वर्ष पर उसकी समीक्षा भी होनी चाहिए। अगर ऐसी व्यवस्था के तहत हम लक्ष्य तय करते हैं तो विश्वास है कि पूरा होगा।
'कृषि क्षेत्र और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को करना होगा समृद्ध'
अमित शाह ने कहा कि स्वतंत्रता के सौ वर्ष पूरे होने पर नए भारत की तैयारी के लिए हमें कृषि क्षेत्र और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समृद्ध करना होगा। नाबार्ड को अपने पिछले प्रदर्शन और भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ने की जरूरत है।ग्रामीण विकास के लिए सहकारी संगठनों के बीच सहयोग की आवश्यकता पर जोर देते हुए अमित शाह ने कहा कि 65 प्रतिशत ग्रामीण आबादी वाला देश नाबार्ड के बिना समृद्ध और सशक्त नहीं हो सकता। नाबार्ड के बिना ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
नाबार्ड ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में लगाए 20 लाख करोड़ रुपये
उन्होंने स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देने और गांवों को आत्मनिर्भर बनने में सहायता करने के लिए नाबार्ड के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि 12 जुलाई 1982 को स्थापना के बाद से अबतक 42 वर्षों के दौरान नाबार्ड ने 14 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि के साथ 20 लाख करोड़ रुपये ग्रामीण अर्थव्यवस्था में लगाए हैं। खेती की जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न योजनाओं के तहत 12 लाख करोड़ वित्तीय मदद दी गई है।पहले सिर्फ 896 करोड़ रुपये था कृषि में अल्पकालिक ऋण
कृषि में अल्पकालिक ऋण पहले सिर्फ 896 करोड़ रुपये था, जो अब एक लाख 58 हजार करोड़ तक पहुंच गया है। दीर्घकालिक ऋण भी 2300 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। दस हेक्टेयर भूमि अगर सिंचित होती है तो उसमें छह एकड़ नाबार्ड के तहत होती है। सहकारिता मंत्री ने कहा कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बदलाव सहकारी संस्थाओं के बिना संभव नहीं है। नाबार्ड का इसमें बड़ा योगदान होगा, क्योंकि एक करोड़ से अधिक स्वयं सहायता समूहों को वित्तीय मदद मिली है।