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Halal Certification: SC को क्यों करना चाहिए विचार? कोर्ट ने हलाल सर्टिफिकेट से जुड़ी याचिका पर UP सरकार से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने हलाल सर्टिफिकेट वाले उत्पादों की बिक्री स्टोरेज और वितरण पर रोक लगाने वाली अधिसूचना को चुनौती देने वाली दो अलग-अलग याचिकाओं पर शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य से जवाब मांगा। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ के समक्ष जब याच‍िकाएं सुनवाई के लिए आईं तो पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार केंद्र और अन्य को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगे।

By Agency Edited By: Anurag GuptaUpdated: Fri, 05 Jan 2024 03:49 PM (IST)
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हलाल सर्टिफिकेट पर रोक को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई (फाइल फोटो)
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हलाल सर्टिफिकेट वाले उत्पादों की बिक्री, स्टोरेज और वितरण पर रोक लगाने वाली अधिसूचना को चुनौती देने वाली दो अलग-अलग याचिकाओं पर शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य से जवाब मांगा। इस दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि इन याचिकाओं पर कोर्ट को क्यों विचार करना चाहिए?

पिछले साल 18 नवंबर को खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 की धारा 30 (2) (ए) के तहत आयुक्त, खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन उत्तर प्रदेश के कार्यालय द्वारा अधिसूचना जारी की गई थी।

कोर्ट का याचिकाकर्ता से सवाल

न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ के समक्ष जब याच‍िकाएं सुनवाई के लिए आईं तो पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार, केंद्र और अन्य को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगे।

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पीठ ने याचिकाकर्ता के वकीलों से सवाल किया कि शीर्ष अदालत को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिकाओं पर विचार क्यों करना चाहिए और उन्हें पहले हाई कोर्ट का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाना चाहिए?

वकील ने क्या दी दलील

याचिकाकर्ता के एक वकील ने दलील दी कि इस मुद्दे का देशभर में प्रभाव शामिल है और इसका व्यापार एवं वाणिज्य पर भी प्रभाव है। पीठ ने कहा,

हाई कोर्ट के आदेश का भी देशभर में असर होगा। मान लीजिए कि किसी विशेष दस्तावेज पर हाई कोर्ट रोक लगाता है तो वह देशभर में लागू होगा।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंतरराज्यीय व्यापार और वाणिज्य के मुद्दे पर हाई कोर्ट भी विचार कर सकता है। वहीं, वकील ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे पर विचार करना चाहिए कि क्या ऐसी अधिसूचना जारी की जा सकती है। उन्होंने कहा कि व्यापार, वाणिज्य और धार्मिक भावनाओं पर प्रभाव के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य का मुद्दा भी था।