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शहरी सर्वे रिपोर्ट में मेयरों के निश्चित कार्यकाल की सिफारिश, केंद्रीय सहायता के भरोसे रहने के बजाय खुद आगे आएं राज्‍य

शहरी सर्वे रिपोर्ट में मेयरों के निश्चित कार्यकाल की सिफारिश की गई है। केंद्रीय आवासन एवं शहरी कार्य मंत्री हरदीप पुरी ने मंगलवार को यह रिपोर्ट जारी की। पुरी ने कहा कि यह रिपोर्ट कठिन श्रम का नतीजा है और इसकी सराहना की जानी चाहिए। इससे शहरी नियोजन को राज्यों के स्तर पर ले जाने में मदद मिलेगी।

By Jagran NewsEdited By: Nidhi AvinashUpdated: Tue, 17 Oct 2023 08:47 PM (IST)
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शहरी सर्वे रिपोर्ट में मेयरों के निश्चित कार्यकाल की सिफारिश (Image: pib.gov.in)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश में शहरों की प्रणाली में सुधार की रफ्तार धीमी है और राज्य सरकारों को केंद्र की योजनाओं तथा कार्यक्रमों के भरोसे रहने के बजाय इन सुधारों की अगुआई के लिए खुद आगे आना चाहिए।

इस निष्कर्ष के साथ शहरी नियोजन की रूपरेखा बनाने वाली संस्था जनाग्रह ने अपनी छठे वार्षिक सिटी सिस्टम सर्वे में एक बार फिर शहरी निकायों को सरकारों की सहायता के साथ-साथ अपने बलबूते वित्तीय मामलों में समर्थ बनाने की सलाह दी गई है।

कठिन श्रम का नतीजा है यह रिपोर्ट

केंद्रीय आवासन एवं शहरी कार्य मंत्री हरदीप पुरी ने मंगलवार को यह रिपोर्ट जारी की। पुरी ने कहा कि यह रिपोर्ट कठिन श्रम का नतीजा है और इसकी सराहना की जानी चाहिए। इससे शहरी नियोजन को राज्यों के स्तर पर ले जाने में मदद मिलेगी।

रिपोर्ट शहरों को क्षमतायुक्त बनाने के लिए एक जरूरी संवैधानिक सुधार की भी वकालत करती है। खास तौर पर 74वें संविधान संशोधन की भावना को सही तरह लागू करने के लिहाज से। जनाग्रह के अनुसार मेयरों का पांच साल का निश्चित कार्यकाल होना चाहिए और तय समय पर चुनाव भी होने चाहिए।

एक वार्ड कमेटी का होना चाहिए गठन

तीस हजार तक आबादी वाले वार्डों में एक वार्ड कमेटी का गठन होना चाहिए। राज्य चुनाव आयोग के पास ऐसी शक्ति होनी चाहिए कि वह निकाय चुनाव कराए और उसके पास मतदाता सूची, परिसीमन, आरक्षण और रोटेशन का अधिकार होना चाहिए। छठे सर्वे में सभी राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों के शहरी कानूनों का आकलन किया गया है। इसके तहत सभी 4800 से अधिक शहरों को कवर किया गया, जबकि 2017 में किया गया सर्वेक्षण शहर स्तर पर किए गए विश्लेषण पर आधारित था।

शहरों के लिए एक राष्ट्रीय शहरी नियोजन की जरूरत

जनाग्रह के सीईओ श्रीकांत विश्वनाथन के अनुसार इस सर्वेक्षण में शहरी प्रणाली में सुधार को लेकर नए नजरिये की अपेक्षा की गई है। हमने 82 नगरीय कानूनों, 44 टाउन प्लानिंग अधिनियमों, 32 नीतिगत योजनाओं और दूसरे दस्तावेजों के साथ ही 176 संबंधित कानूनों-नियमों और अधिसूचनाओं का अध्ययन किया और इस आधार पर इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि शहरों के लिए एक राष्ट्रीय शहरी नियोजन और विकास संबंधी दिशानिर्देश अपनाने की जरूरत है।

'त्रिस्तरीय स्थानीय विकास का मॉडल होना चाहिए'

क्षेत्रीय, नगरीय और वार्ड स्तर पर, त्रिस्तरीय स्थानीय विकास का मॉडल होना चाहिए। इसके लिए निश्चित समयसीमा और मजबूत प्लानिंग की जरूरत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक माडल निकाय अधिनियम की जरूरत है, क्योंकि मेयरों और निकाय परिषदों का समर्थ होना सबसे अधिक आवश्यक है।

माडल निकाय अधिनियम और आधुनिक नगर परिषदें ही बुनियादी ढांचे के विकास के लिए जरूरी कानूनी शक्ति प्रदान कर सकती हैं। इसी से नागरिकों के बीच अपने शहरी शासन के प्रति भरोसे पैदा होगा। इसमें सलाह दी गई है कि ब्लूमबर्ग हार्वर्ड सिटी लीडरशिप इनीशिएटिव को एक माडल के रूप में देखा जा सकता है और उसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में लागू किया जा सकता है।

पहल की शुरुआत 2017 में हुई

इस पहल की शुरुआत 2017 में की गई थी और अब तक 465 मेयर तथा 2271 शहरी अधिकारी पूरी दुनिया में इसे अपना चुके हैं। 180 जिलों में शहरीकरण राष्ट्रीय औसत से अधिक रिपोर्ट के अनुसार शहरी करण के पैटर्न के आधार पर देश के 180 जिलों में रोचक रुझान देखने को मिल रहा है। इन जिलों में शहरीकरण की रफ्तार राष्ट्रीय औसत से अधिक है, जबकि 78 जिले राज्य के औसत से आगे हैं।

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तेजी से बढ़ता शहरीकरण

ये जिले शहरी-ग्रामीण संगम के उत्कृष्ट उदाहरण हो सकते हैं। तेजी से बढ़ता शहरीकरण भारत में शहरी आबादी 40 करोड़ के आसपास है, जो लगभग आठ हजार रिहाइशी इलाकों में रहती है। इनमें 4800 शहर और कस्बे शामिल हैं। 4800 शहरों में 53 की आबादी दस लाख से अधिक है, 470 की आबादी एक लाख से अधिक है और 4000 शहर एक लाख से कम आबादी वाले हैं। रिपोर्ट के अनुसार चूंकि अपने देश में शहरों और कस्बों की परिभाषा दूसरे देशों के मुकाबले कठिन है, इसलिए यह संभव है कि अब तक आधी से अधिक आबादी शहरी क्षेत्रों में पहुंच चुकी हो।

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