'चाबहार समझौते पर विवरण का इंतजार', अमेरिकी राजदूत बोले- हम भारत की कनेक्टिविटी परियोजनाओं के खिलाफ नहीं
भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने दैनिक जागरण को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा कि भारत और ईरान के बीच तेहरान में चाबहार पोर्ट के विकास व प्रबंधन को लेकर हुए दीर्घकालिक समझौते के विस्तृत विवरण का अमेरिका इंतजार कर रहा है। इसके बाद ही वह इस बारे में फैसला करेगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका भारत की कनेक्टिविटी परियोजनाओं के खिलाफ नहीं है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। भारत और ईरान के बीच तेहरान में 13 मई 2024 को चाबहार पोर्ट के विकास व प्रबंधन को लेकर किये गये दीर्घकालिक समझौते के विस्तृत विवरण का इंतजार अमेरिका कर रहा है। इसके बाद ही वह इस बारे में फैसला करेगा। मोटे तौर पर अमेरिका भारत की कनेक्टिविटी परियोजनाओं के खिलाफ नहीं है और कुछ क्षेत्रों में तो वह भारत के साथ मिल कर कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर काम कर रहा है, लेकिन ईरान का मामला दूसरा है।
वजह यह है कि अमेरिका इरान को आतंकवाद को पोषित करने वाले देशों में मानता है और इस पर प्रतिबंध लगा चुका है। यह बात भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने दैनिक जागरण को दिए गए एक साक्षात्कार में कही। यह साक्षात्कार यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉफ इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएड) की तरफ से आयोजित दक्षिण एशिया क्षेत्रीय ऊर्जा साझेदारी (एसएआरईपी) सेमिनार के दौरान गार्सेटी ने दिया।
विवरण का इंतजार
गार्सेटी ने कहा कि हम चाबहार को लेकर किये गये समझौते के विवरण का इंतजार कर रहे हैं कि क्या किया गया है। समझौता हुआ है लेकिन उसका विवरण देखना जरूरी है। ईरान उस क्षेत्र में दुनिया के दूसरे देशों में आतंकवाद को बढ़ावा देने में और हिंसा को प्रायोजित करने वाला देश रहा है। यही वजह है कि उस पर प्रतिबंध लगाया गया है।उन्होंने कहा कि जो कंपनियां समझौता कर रही हैं उनको इस बात का पता होना चाहिए। पूर्व में इस बारे में भारत के साथ इस बारे में सरकारी स्तर पर बात हुई है लेकिन अभी इसके बारे में हमारे पास कोई विवरण नहीं है। सामान्य तौर पर हम विस्तार से जानेंगे तभी कुछ स्पष्ट तौर पर कह सकेंगे।
मध्य एशिया के साथ जुड़े भारत
गार्सेटी ने फिर कहा कि लेकिन मोटे तौर पर हम चाहते हैं कि भारत दुनिया के दूसरे देशों के साथ लिंक्ड हो। हम चाहते हैं कि मध्य एशिया के साथ भारत जुड़े। हम चाहते हैं कि पुराना स्पाइस रूट (प्राचीन काल का जापान, इंडोनेशिया, भारत होते हुए मध्य पूर्व को जोड़ने वाला कारोबारी मार्ग) भी मजबूत हो। दूसरे देश भी इस बारे में प्रस्ताव कर रहे हैं।उन्होंने आगे कहा कि हम स्वयं चाहते हैं कि एक तरह की सोच वाले लोकतांत्रिक देशों को शामिल करके आगे बढ़ा जाए। लेकिन इसमें परियोजनाओं की आड़ में कर्ज के बोझ वाला दबाव ना हो, जो सभी देशों के लिए लाभदायक हो। यही वजह है कि हमने जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत व दूसरे देशों के साथ मिल कर भारत-मध्य पूर्व-यूरोपी कारीडोर (आइएमईसी) की घोषणा की। यह एक एतिहासिक घोषणा थी। मध्य पूर्व से लेकर दक्षिण एशिया तक के लोग उम्मीद की किरण के तौर पर देख रहे हैं। यह भविष्य के लिए बहुत ही अच्छा होगा।