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वैकल्पिक खेती से समृद्धि लाने का प्रयोग

खरबूज की खेती कर डुमरांव के प्रकाश राय बने किसानों के प्रेरणास्रोत...

By Srishti VermaEdited By: Srishti VermaUpdated: Mon, 12 Jun 2017 10:12 AM (IST)
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बक्सर (रंजीत कुमार पांडेय)। देश में परंपरागत खेती कर रहे कई किसान गरीबी के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हैं। वहीं, कुछ प्रगतिशील किसान परंपरागत खेती के बीच कुछ वैकल्पिक प्रयोग कर न केवल आमदनी बढ़ा रहे हैं बल्कि दूसरों के लिए नजीर भी बन रहे हैं। ऐसे ही किसान हैं डुमरांव के प्रकाश राय। ये धान के कटोरे के रूप विख्यात डुमरांव-बिक्रमगंज मुख्य मार्ग से सटे डुमरांव-भोजपुर राजवाहा नहर के किनारे करीब दस एकड़ भूमि पर खरबूज की खेती करते हैं। इससे केवल दो माह में उनकी अच्छी-खासी कमाई हो जाती है। लगातार दूसरे वर्ष धान-गेहूं की खेती के बाद खरबूज की उनकी लहलहाती फसल और अच्छी कमाई देखकर अन्य किसान भी प्रेरित हुए हैं।

ताइवान वैरायटी के खरबूज की ज्यादा मांग : गर्मी के मौसम में पौष्टिकता से परिपूर्ण खरबूज की स्थानीय व अन्य जिलों में काफी मांग है। प्रकाश के अनुसार जनवरी से मई तक कमोवेश खेत खाली रहते हैं। ऐसे में उन्होंने 60 से 80 दिन में तैयार होने वाले ताइवान प्रजाति के खरबूज बोने की सोची। ताइवानी प्रजाति के खरबूज

की पैदावार अच्छी है और ये काफी मीठे और रसभरे होते हैं। इनकी पटना, आरा, वाराणसी से लेकर भागलपुर तक खासी मांग है। इससे उनकी अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है।

कैसे की जाती है बोआई : ताइवानी प्रजाति के खरबूज की बोआई को पहले बेल तैयार कर उसे क्यारी में रोपा जाता है। खास ढंग से बनाई क्यारी में ड्रिप विधि से सिंचाई और पानी का वाष्पीकरण रोकने के इंतजाम किए जाते हैं। इससे कम खाद, कीटनाशक और कम पानी में बेहतर उत्पादन होता है। ताइवान वैरायटी के पीली बॉबी, हरा रंग, मुस्कान तथा तृसा प्रजाति की खेती फरवरी माह के दूसरे सप्ताह में की जाती है। प्रति एकड़ बोआई में करीब 10 से 15 हजार रुपये खर्च आता है जबकि, कमाई 50 से 60 हजार तक की होती है।

वैकल्पिक (नकदी) खेती करें किसान : प्रकाश को दुख है कि राज्य सरकार परंपरागत खेती के प्रोत्साहन की योजना बनाती है। पंजाब-हरियाणा के किसान इसलिए संपन्न हैं, क्योंकि वे परंपरागत खेती के बीच में वैकल्पिक फसलों की खेती करते हैं। प्रदेश के किसान भी वैकल्पिक खेती कर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं। प्रकाश का कहना है कि अपने प्रदेश में उपजाऊ भूमि, अनुकूल जलवायु, भू-गर्भीय जल भंडार और मजदूरों की उपलब्धता के बावजूद किसानों की स्थिति नहीं सुधर रही है। परंपरात खेती से कुछ अलग करना लाभप्रद हो

सकता है।

-धान-गेहूं के बाद खरबूज लगाकर प्रकाश ने खेती को भी बनाया लाभकारी

-दो माह की फसल से हो रही प्रति एकड़ चालीस हजार रुपये की आय