Vande Bharat Express: स्वदेशी तकनीक को मिली रफ्तार, वंदे भारत के लिए 52 रूट तैयार; 75 ट्रेनें चलाने का लक्ष्य
भारतीय रेलवे ने कहा कि 52 मार्गों की भी तैयारी कर ली है। सभी मार्ग पर एक-एक कर वंदे भारत को चलाया जाना है। चालू वर्ष में ही 15 अगस्त तक पहले संस्करण की 75 ट्रेनें चलाने का लक्ष्य है। शेष रूटों का चयन भी किया जा रहा है।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। ट्रेनों के सफर को अत्यधिक आरामदायक और यात्रियों को गंतव्य तक समय पर पहुंचाने के लिए रेलवे मंत्रालय को कई तरह के बदलाव एवं नवनिर्माण के दौर से गुजरना पड़ रहा है। स्वदेशी तकनीक से विकसित वंदे भारत ट्रेनों को देश में अभी दस रूटों पर चलाया जा रहा है।
रेलवे ने आगे के 52 मार्गों की भी तैयारी कर ली है। सभी मार्ग पर एक-एक कर वंदे भारत को चलाया जाना है। चालू वर्ष में ही 15 अगस्त तक पहले संस्करण की 75 ट्रेनें चलाने का लक्ष्य है। शेष रूटों का चयन भी किया जा रहा है।
मुंबई से शिर्डी के लिए दसवीं ट्रेन जल्द होगा शुरू
आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा के तहत रफ्तार, सुरक्षा और सुविधायुक्त सफर के पैमाने पर स्वदेशी डिजाइन, कल-पुर्जे एवं संसाधनों से निर्मित वंदे भारत ट्रेनों के रूप में रेल मंत्रालय की लंबी छलांग है। पहली बार इस ट्रेन को 15 फरवरी 2019 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली-बनारस रूट पर हरी झंडी दिखाई थी। मुंबई से शिर्डी के लिए दसवीं ट्रेन को इसी दस फरवरी को शुरू किया गया है। निर्धारित लक्ष्य को समय पर पूरा करने में जुटे रेलवे बोर्ड के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती इस ट्रेन के निर्माण को लेकर है।
कई रेल फैक्ट्रियों में एक महीने के भीरत निर्माण होगा शुरू
अभी तक सिर्फ चेन्नई स्थित इंटीग्रल रेलवे कोच फैक्ट्री में ही वंदे भारत ट्रेनों के प्रथम संस्करण का निर्माण किया जा रहा, लेकिन लक्ष्य को समय पर पूरा करने के लिए तीन अन्य लातूर, सोनीपत और रायबरेली रेल फैक्ट्रियों में भी एक महीने के भीतर निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाएगा।
चेन्नई की फैक्ट्री में अभी प्रत्येक महीने दो से तीन ट्रेनों का निर्माण किया जा रहा है। रेलवे का मानना है कि जब तीन अन्य फैक्टि्रयों में भी निर्माण शुरू हो जाएगा तो प्रत्येक महीने कम से कम दस से 12 ट्रेनें बनने लग जाएंगी। इस तरह 15 अगस्त तक 75 ट्रेनों को चलाने के लक्ष्य को आसानी से पूरा कर लिया जाएगा।
आठ वर्षों में होगा सभी ट्रेनों का कायाकल्प
सफर को सहज-सुगम बनाने के लिए आठ वर्षों के भीतर यात्री ट्रेनों के स्वरूप में बड़ा परिवर्तन किया जाना है। रेलवे की तैयारी 2030 तक पुराने वर्जन की सभी ट्रेनों के कायाकल्प की है। इसके लिए वंदे भारत को विकल्प के तौर पर रखा गया है। प्रतिघंटे 180 किमी की रफ्तार से दौड़ सकने की क्षमता वाली वंदे भारत के पहले संस्करण की सभी ट्रेनों में बैठकर यात्रा की जा सकती है। अगले संस्करण में स्लीपर ट्रेनें बनाई जा रही हैं।
दो सौ स्लीपर वंदे भारत ट्रेनों के निर्माण का काम तेजी से चल रहा है। लगभग 26 हजार करोड़ रुपये से इन ट्रेनों को दो वर्ष के भीतर बना लेना है। पहले संस्करण की निर्माण लागत सौ करोड़ रुपये प्रति ट्रेन है। स्लीपर वर्जन ट्रेनों को सुविधा जनक बनाने के क्रम में प्रति ट्रेन की लागत राशि 30 करोड़ रुपये बढ़ गई है। इसे और अपडेट किया जाना है। ट्रेनों की रफ्तार बढ़ेगी तो लागत भी बढ़ सकती है।
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