जी-20 घोषणापत्र पर सहमति बनाने के लिए कई विकल्पों पर विचार, क्या शिखर बैठक के बाद होगा जारी?
हंपी में भारत के शेरपा अमिताभ कांत की अध्यक्षता में तीन दिनों तक सदस्य देशों के शेरपाओं विशेष तौर पर आमंत्रित देशों के प्रतिनिधियों और वैश्विक संगठनों की बैठक हुई। यहां प्रेस कान्फ्रेंस में अमिताभ कांत ने स्वीकार किया कि बतौर अध्यक्ष भारत के पास कई विकल्प हैं लेकिन हम अभी विकास व वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए ज्यादा जरूरी मुद्दों पर ध्यान दे रहे हैं।
By Jagran NewsEdited By: Anurag GuptaUpdated: Sun, 16 Jul 2023 07:10 PM (IST)
जयप्रकाश रंजन, हंपी। जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन में किस तरह से संयुक्त घोषणापत्र जारी करने को लेकर सहमति बने, इस बारे में सदस्य देशों के शेरपाओं के बीच कई विकल्पों पर विचार हो रहा है।
तीन दिनों तक चली शेरपाओं की बैठक में तकरीबन सभी देशों ने इस बात का समर्थन किया है कि सितंबर, 2023 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में होने वाली जी-20 के शीर्ष नेताओं की बैठक के बाद घोषणापत्र जारी होना चाहिए।
हंपी बैठक के बाद भी होगा विमर्श
इसमें यूक्रेन-रूस विवाद का जिक्र किस तरह से हो और इसकी भाषा क्या हो, इसको लेकर पेंच फंसा हुआ है। इसे सुलझाने के लिए कुछ देशों की तरफ से अलग-अलग प्रस्ताव आए हैं, जिनको लेकर हंपी बैठक के बाद भी सदस्य देशों के बीच विमर्श होगा।हंपी में भारत के शेरपा अमिताभ कांत की अध्यक्षता में तीन दिनों तक सदस्य देशों के शेरपाओं, विशेष तौर पर आमंत्रित देशों के प्रतिनिधियों और वैश्विक संगठनों की बैठक हुई।
यहां प्रेस कान्फ्रेंस में अमिताभ कांत ने स्वीकार किया कि बतौर अध्यक्ष भारत के पास कई विकल्प हैं, लेकिन हम अभी विकास व वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए ज्यादा जरूरी मुद्दों पर ध्यान दे रहे हैं।
कब होगी शेरपाओं की अंतिम बैठक?
कुछ दूसरे देशों के शेरपाओं ने बताया कि यूक्रेन मुद्दे को शेरपाओं की चौथी व अंतिम बैठक के लिए छोड़ा जा सकता है। यह बैठक तीन सितंबर को होगी। उसके ठीक बाद 9-10 सितंबर को शीर्ष नेताओं की बैठक है।
दूसरे कूटनीतिक सूत्रों ने बताया कि एक विकल्प यह भी है कि जिस तरह से पिछले वर्ष यूक्रेन-रूस युद्ध के साये में बाली घोषणापत्र जारी हुआ था, उसी तर्ज पर आगे बढ़ा जाए। इसमें रूस के यूक्रेन पर हमले की निंदा की गई थी, लेकिन यह भी लिखा गया था कि कुछ देशों के अलग मत हैं।एक प्रस्ताव ब्राजील का है, जिसके मुताबिक बाली घोषणापत्र में जो हुआ उसे वहीं रहने दिया जाए और अब यह समूह अपने एजेंडे पर आगे बढ़े। एक अन्य विकल्प है कि दूसरे वैश्विक संगठनों जैसे क्वाड, ब्रिक्स की तरफ से जारी होने वाले संयुक्त घोषणापत्रों की तरह बयान जारी हो जिसमें सभी सदस्यों की चिंताएं शामिल की जाए, लेकिन इसको लेकर विकसित देशों का रुख सकारात्मक नहीं है।