श्रीकृष्ण के पैर छूने को बेताब यमुना की लहरों से घबरा गए थे वासुदेव
जन्माष्टमी पर कोयला गांव में भले ही कोई बड़ा धार्मिक आयोजन न होता हो, लेकिन गांव को यह नाम देवकी पुत्र ने ही दिलाया। श्रीकृष्ण को मथुरा से गोकुल पहुंचाए जाने का गवाह यह गांव रहा है। कान्हा के प्राकट्य के बाद पिता वसुदेव इसी घाट से उन्हें गोकुल छोडऩे गए थे। कान्हा के चरण छूने को बेताब यमुना की लहरें दे
मथुरा, जागरण संवाददाता। जन्माष्टमी पर कोयला गांव में भले ही कोई बड़ा धार्मिक आयोजन न होता हो, लेकिन गांव को यह नाम देवकी पुत्र ने ही दिलाया। श्रीकृष्ण को मथुरा से गोकुल पहुंचाए जाने का गवाह यह गांव रहा है। कान्हा के प्राकट्य के बाद पिता वसुदेव इसी घाट से उन्हें गोकुल छोड़ने गए थे। कान्हा के चरण छूने को बेताब यमुना की लहरें देख घबराए वासुदेव ने पुकार लगाई थी, कोई लेऊ। यही शब्द इस गांव के जन्म के आधार बने। श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर आधी रात को कान्हा का प्राकट्य हुआ।
कंस के प्रकोप से बचाने की मंशा से वसुदेव कान्हा को गोकुल लेकर जा रहे थे। यमुना की लहरें उफान भर रही थीं। यमुना का यह रूप देखकर वसुदेव घबरा गए थे। कान्हा को बचाने की चिंता में दुखी वसुदेव जी कातर स्वर में पुकारने लगे- कोई लेऊ। यही शब्द कोयला गांव के जन्म के आधार बने।