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श्रीकृष्ण के पैर छूने को बेताब यमुना की लहरों से घबरा गए थे वासुदेव

जन्माष्टमी पर कोयला गांव में भले ही कोई बड़ा धार्मिक आयोजन न होता हो, लेकिन गांव को यह नाम देवकी पुत्र ने ही दिलाया। श्रीकृष्ण को मथुरा से गोकुल पहुंचाए जाने का गवाह यह गांव रहा है। कान्हा के प्राकट्य के बाद पिता वसुदेव इसी घाट से उन्हें गोकुल छोडऩे गए थे। कान्हा के चरण छूने को बेताब यमुना की लहरें दे

By Edited By: Updated: Wed, 28 Aug 2013 09:24 PM (IST)

मथुरा, जागरण संवाददाता। जन्माष्टमी पर कोयला गांव में भले ही कोई बड़ा धार्मिक आयोजन न होता हो, लेकिन गांव को यह नाम देवकी पुत्र ने ही दिलाया। श्रीकृष्ण को मथुरा से गोकुल पहुंचाए जाने का गवाह यह गांव रहा है। कान्हा के प्राकट्य के बाद पिता वसुदेव इसी घाट से उन्हें गोकुल छोड़ने गए थे। कान्हा के चरण छूने को बेताब यमुना की लहरें देख घबराए वासुदेव ने पुकार लगाई थी, कोई लेऊ। यही शब्द इस गांव के जन्म के आधार बने। श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर आधी रात को कान्हा का प्राकट्य हुआ।

कंस के प्रकोप से बचाने की मंशा से वसुदेव कान्हा को गोकुल लेकर जा रहे थे। यमुना की लहरें उफान भर रही थीं। यमुना का यह रूप देखकर वसुदेव घबरा गए थे। कान्हा को बचाने की चिंता में दुखी वसुदेव जी कातर स्वर में पुकारने लगे- कोई लेऊ। यही शब्द कोयला गांव के जन्म के आधार बने।

ग्रामीण बताते हैं कि प्राचीन काल में इस स्थान को प्रमुख श्रद्धा केंद्र के रूप में मानकर काफी संख्या में भक्त आते थे। करीब डेढ़ साल पहले एक स्वयं सेवी संस्था ने इस स्थान पर लाखों रुपये व्यय कर सूप में कन्हैया, नंगे बदन वसुदेव के विग्रह स्थापित कर प्राचीन गौरव को जिंदा किया। अब ये धार्मिक स्थल श्रद्घालुओं को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। प्रभु लीला का भी स्मरण कराता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर यहां कोई धार्मिक आयोजन नहीं होता, लेकिन शरद पूर्णिमा पर अवश्य तिल के तेल से भरे हजारों दीप प्रज्जवलित कर यमुना मैया को अर्पित किए जाते हैं।

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