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Veerappan: खूंखार वीरप्पन की कहानी, वो चंदन तस्कर जिसने अधिकारी का सिर काट खेला फुटबॉल; बेटी की भी चढ़ाई बलि

Veerappan Dreaded Poacher दक्षिण भारत के जंगलों का सबसे बड़ा और खूंखार तस्कर वीरप्पन के किस्से आज भी चर्चा में रहते हैं। एक ऐसा डाकू जिसने सैंकड़ों लोगों की हत्या की और अपनी बच्ची तक को नहीं छोड़ा उसकी कहानी अब चर्चा का विषय बन गई है। कारण है उसपर हाल ही में बनी एक डॉक्यूमेंट्री। आज हम आपको वीरप्पन के जीवन के कुछ खूंखार किस्से बताएंगे....

By Mahen KhannaEdited By: Mahen KhannaUpdated: Sun, 06 Aug 2023 06:14 PM (IST)
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Veerappan Dreaded Poacher वीरप्पन की दरिंदगी की कहानी।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Veerappan Dreaded Poacher 'बेटा सो जा वरना गब्बर आ जाएगा', ये डायलॉग सभी ने शोले फिल्म में जरूर सुना होगा, लेकिन असल जिंदगी में ऐसा आतंक और खौफ वीरप्पन का था। वीरप्पन दक्षिण भारत के जंगलों का सबसे बड़ा और खूंखार तस्कर था, जिसके ऊपर सैंकड़ों लोगों की हत्या, 2000 से ज्यादा हाथियों का शिकार और 140 करोड़ से ज्यादा की चंदन तस्करी का आरोप था। लंबी मूछे और बेखौफ आवाज उसकी पहचान थी।

वीरप्पन का डर ऐसा था कि आज भी तमिलनाडु के लोगों के जहन में उसकी दरिंदगी की कहानियां जिंदा है। वीरप्पन जब तक जिंदा रहा दक्षिण की सरकारों के लिए सिर दर्द बना रहा। कर्नाटक के गांव गोपिनाथम में 8 जनवरी 1952 को जन्मे वीरप्पन का असली नाम मुनिस्वामी वीरप्पन (Muniswamy Veerappan) था। 

ऐसा डाकू जिसने सैंकड़ों लोगों की हत्या की और अपनी बच्ची तक को नहीं छोड़ा, उसकी कहानी अब चर्चा का विषय बन गई है। कारण है, उसपर हाल ही में बनी एक डॉक्यूमेंट्री (The Hunt for Veerappan)। आज हम आपको वीरप्पन के जीवन के कुछ खूंखार किस्से बताएंगे....

वर्ष 1987 में चर्चा में आया वीरप्पन

Veerappan केवल खूंखार ही नहीं, दिमाग से भी खेलता था। वीरप्पन साल 1987 में उस समय चर्चा में आया, जब उसने दिगंबर नाम के एक वन अधिकारी को अगवा किया था। दरअसल, वनों में जब अधिकारी जांच को आते थे तब वीरप्पन और उनकी मुठभेड़ हो जाती थी।

1993 में 21 लोगों को बारूद से उड़ाया

Veerappan के चर्चा में आने से पहले तमिलनाडु के जंगलों में पुलिस पैट्रोलिंग करती थी। इसके प्रमुख लहीम शहीम गोपालकृष्णन हुआ करते थे। गोपालकृष्णन काफी ताकतवर थे, इसलिए उनके साथी उन्हें रैम्बो भी कहा करते थे। इसी बीच साल 1993 में 9 अप्रैल को कोलाथपुर गांव में एक पोस्टर पाया जिसने सनसनी मचा दी। दरअसल, इसमें वीरप्पन ने रैम्बो के लिए भद्दी भद्दी गालियां लिखी थीं और पकड़ने की चुनौती दी थी।

रैम्बो भी वीरप्पन के उकसावे में आ गए और उसे पकड़ने निकल पड़े। इसके बाद बीच में उनकी जीप खराब हो गई, जिस कारण उन्होंने रास्ते में तैनात पुलिस से वैन ले ली और 15 मुखबिरों, 2 वन गार्ड और 4 पुलिसवालों के साथ निकल पड़े। वीरप्पन को इसकी भनक लग गई और उसने रास्ते में बारूद बिछा दिए। जैसे ही बस पहुंची एक बड़ा धमाका हुआ और सभी लोग मारे गए।

जब पकड़े जाने के बाद भी छूट गया वीरप्पन

एक बार वन अधिकारी पी श्रीनिवास (P.Srinivas) ने वीरप्पन को पकड़कर गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन वीरप्पन इतना चालाक था कि वो तब भी बच निकला। उसने सुरक्षाकर्मियों से सिर में दर्द की बात कही और तेल मंगाया। इसके बाद उसने वो तेल सिर की जगह हाथों में लगाया और कुछ ही मिनटों में उसने अपने हाथ हथकड़ियों से बाहर निकाले और भाग निकला।

वीरप्पन ने लिया बदला

वीरप्पन ने श्रीनिवास से अपनी गिरफ्तारी का बदला भी लिया। वीरप्पन ने श्रीनिवास को मारने के लिए अपने छोटे भाई अरजुनन को साथ में लिया और एक चाल चली। जैसे ही श्रीनिवास अरजुनन के सम्पर्क में आए, अरजुनन ने उन्हें वीरप्पन के सरेंडर करने की बात कही। हालांकि, ये सब वीरप्पन की चाल थी। 

इसके बाद वीरप्पन को जैसे ही श्रीनिवास पकड़ने आए उसने गोली मारकर अपना बदला लिया।

वन अधिकारी का सिर काट खेला फुटबॉल

श्रीनिवास की हत्या करने के बाद भी वीरप्पन का दिल नहीं भरा और उसने इसके बाद अधिकारी का सिर काटा और घर ले गया। इसके बाद उसके गैंग ने श्रीनिवास के कटे सिर से फुटबॉल भी खेला।

अभिनेता राज कुमार का अपहरण

साल 2000 में दक्षिण भारत के मशहूर फिल्म अभिनेता राज कुमार (Raj Kumar) का भी पाला डाकू वीरप्पन से पड़ा। वीरप्पन ने राज कुमार का अपरहण कर लिया और उन्हें 100 दिनों तक अपने पास रखा। इस दौरान उसने तमिलनाडु और कर्नाटक दोनों ही सरकारों को घुटने पर ला दिया और अपनी कई बातें मनवाई।

नवजात बेटी तक की चढ़ाई बलि

Veerapan इतना दरिंदा था कि उसने खुद को बचाने के लिए अपनी नवजात बेटी तक की बलि चढ़ा दी थी। साल 1993 में वीरप्पन को एक लड़की पैदा हुई थी। उस समय इस तस्कर का गैंग बड़ा नहीं था और इसलिए वो थोड़ा डरता था। बच्ची जब रोती तो वीरप्पन और डरता, क्योंकि बच्चे के रोने की आवाज 110 डेसिबल के आसपास होती है जो बिजली कड़कने की आवाज से सिर्फ 10 डेसिबल कम होती है। एक बार वीरप्पन को उसकी बेटी ने रोने की वजह से मुसीबत में फंसा दिया। इसलिए उसने अपनी बच्ची की आवाज़ को हमेशा के लिए बंद कर दी। 1993 में कर्नाटक एसटीएफ को मारी माडुवू में एक समतल जमीन के नीचे खड्डे में नवजात बच्ची का शव मिला था।

ऐसे हुआ वीरप्पन का अंत

वीरप्पन के खात्मे के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने तमिलनाडु स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया। वीरप्पन को मारने के लिए विजय कुमार (STF Chief Vijay Kumar) एसटीएफ के चीफ बने। 18 अक्टूबर 2004 को एसटीएफ को भनक लगी की वीरप्पन आंख का इलाज कराने के लिए जंगल से बाहर आ रहा है। 

इसके बाद एसटीएफ ने चाल चलते हुए वीरप्पन के लिए एक एंबुलेंस का इंतजाम किया। योजना के तहत एंबुलेंस में वीरप्पन आकर बैठ गया। एंबुलेंस को एसटीएफ का ही आदमी चला रहा था। योजना के अनुसार, ड्राईवर तय स्थान पर एंबुलेंस छोड़ भाग गया।

यहां पहले से मौजूद एसटीएफ के जवान खात लगाए बैठे थे और उन्होंन एके-47 से फायरिंग कर 20 मिनट के अंदर वीरप्पन का खात्मा कर दिया।