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Electoral Bonds Scheme: 'लोकतंत्र में मतदाता का जानकारी का अधिकार सर्वोपरि', चुनावी बांड योजना पर जस्टिस खन्ना ने और कुछ क्या कहा?

चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक ठहराने वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में शामिल जस्टिस संजीव खन्ना ने अपने अलग फैसले में कहा कि लोकतंत्र में एक मतदाता का जानने का अधिकार चंदादाता की निजता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। जस्टिस खन्ना ने कहा कि यह योजना बेईमानी से काम करती है और चुनावी प्रक्रिया में मतदाता के अधिकार को अस्वीकार व खारिज करती है।

By Agency Edited By: Sonu Gupta Updated: Thu, 15 Feb 2024 11:53 PM (IST)
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लोकतंत्र में मतदाता का जानकारी का अधिकार सर्वोपरि : जस्टिस खन्ना। फाइल फोटो।

पीटीआई, नई दिल्ली। Electoral Bonds Scheme: चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक ठहराने वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में शामिल जस्टिस संजीव खन्ना ने अपने अलग फैसले में कहा कि लोकतंत्र में एक मतदाता का जानने का अधिकार चंदादाता की निजता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

बेईमानी से काम करती है यह योजना

जस्टिस खन्ना ने कहा कि यह योजना बेईमानी से काम करती है और चुनावी प्रक्रिया में मतदाता के अधिकार को अस्वीकार व खारिज करती है। क्योंकि न तो निजता का अधिकार और न ही बैंकिंग चैनलों के माध्यम से राजनीतिक चंदे को प्रोत्साहित करने का उद्देश्य मतदाताओं के अधिकार के उल्लंघन को उचित ठहरा सकता है। उन्होंने अपने फैसले में इस योजना को रद करने के कारण बताए।

अपने फैसले में जस्टिस खन्ना ने क्या कहा?

उन्होंने कहा गुप्त मतदान स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों का अभिन्न अंग हैं, इसी तरह राजनीतिक दलों को चंदे में गोपनीयता नहीं, बल्कि पारदर्शिता स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनावों की एक शर्त है। उन्होंने कहा कि वोट देने का अधिकार एक संवैधानिक और वैधानिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) (भाषण व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) पर आधारित है, क्योंकि वोट डालना मतदाता द्वारा एक राय की अभिव्यक्ति के समान है।

नागरिकों का जानने का अधिकार इसी अधिकार से उत्पन्न होता है, क्योंकि मतदान के माध्यम से सार्थक विकल्प चुनने के लिए जानकारी की आवश्यकता होती है। अपने पक्ष में डाले गए वोटों के परिणामस्वरूप चुने गए प्रतिनिधि नए कानून बनाते हैं, मौजूदा कानूनों में संशोधन करते हैं और जब सत्ता में होते हैं तो नीतिगत निर्णय लेते हैं। जस्टिस खन्ना ने यह भी कहा कि कोई लाभ प्राप्त करने के बदले राजनीतिक चंदा देने को मनी लांड्रिंग माना जा सकता है।

केंद्र के तर्क से सहमत नहीं हुई शीर्ष अदालत

शीर्ष अदालत केंद्र के इस तर्क से सहमत नहीं हुई कि आर्थिक नीति के मामलों की न्यायपालिका द्वारा समीक्षा नहीं की जा सकती। जस्टिस खन्ना ने कहा, ''मैं प्रधान न्यायाधीश की इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि योजना का परीक्षण आर्थिक नीति पर लागू मापदंडों पर नहीं किया जा सकता है।

आर्थिक नीति के मामले आम तौर पर व्यापार, व्यवसाय और वाणिज्य से संबंधित होते हैं, जबकि राजनीतिक दलों को चंदा लोकतांत्रिक राजनीति, नागरिकों के जानकारी के अधिकार और हमारे लोकतंत्र में जवाबदेही से संबंधित है। जस्टिस खन्ना ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि चंदादाता अपनी पहचान गुमनाम रखना पसंद कर सकते हैं।

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जब कोई चंदादाता बांड खरीदने जाता है तो उसे पूरी जानकारी देनी होती है और बैंक के केवाईसी मानकों को पूरा करना होता है। फिर उसकी पहचान उस व्यक्ति और बैंक के अधिकारियों को पता चल जाती है, जहां से वह बांड खरीदा गया है।- जस्टिस संजीव खन्ना

आरबीआइ ने जताई थी आपत्ति

जस्टिस खन्ना ने कहा कि आरबीआइ ने इस आधार पर योजना पर आपत्ति जताई थी कि बांड जारी होने के बाद धारक बदल सकते हैं और वास्तव में यह योजना वास्तविक चंदादाता को कोई पता या धन का निशान नहीं छोड़ने में सक्षम कर सकती है। जस्टिस खन्ना ने कहा कि किसी राजनीतिक दल को अपनी पसंद से चंदा देने वाले किसी चंदादाता के विरुद्ध प्रतिशोध, उत्पीड़न या प्रतिशोध की कार्रवाई कानून और शक्ति का दुरुपयोग है जिसे जांचने एवं सही करने की जरूरत है, लेकिन यह योजना को गुमनाम बनाने का कारण नहीं हो सकता।

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