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अमेरिकी कंपनियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी ई-कॉमर्स में सिक्का जमा चुकी 'Flipkart'

भारतीय ई-कॉमर्स क्षेत्र की अग्रणी कंपनी फ्लिपकार्ट इन दिनों सुर्खियों में है। वजह यह है कि फ्लिपकार्ट इन दिनों दो दिग्गज अमेरिकी कंपनियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sat, 05 May 2018 04:04 PM (IST)
अमेरिकी कंपनियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी ई-कॉमर्स में सिक्का जमा चुकी 'Flipkart'

[आशुतोष त्रिपाठी]। भारतीय ई-कॉमर्स क्षेत्र की अग्रणी कंपनी फ्लिपकार्ट इन दिनों सुर्खियों में है। वजह यह है कि भारतीय ई-कॉमर्स क्षेत्र में अपना सिक्का जमा चुकी फ्लिपकार्ट इन दिनों दो दिग्गज अमेरिकी कंपनियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। पूरी दुनिया में रिटेल क्षेत्र की सबसे मशहूर कंपनियों में शुमार वॉलमार्ट और दुनिया की सबसे मूल्यवान कंपनी बनने की ओर अग्रसर अमेरिकी ई-कॉमर्स दिग्गज अमेजॉन फ्लिपकार्ट में हिस्सेदारी खरीदने के लिए एक-दूसरे के सामने हैं। करीब 12 अरब डॉलर के इस संभावित सौदे की यह खबर देखने में तो साधारण है, लेकिन इसके असर काफी दूरगामी होने वाले हैं। यह सौदा न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया भर के ई-कॉमर्स बाजार के लिए परिवर्तनकारी साबित होने वाला है।

ई-कॉमर्स का बढ़ता बाजार

जहां तक बात ई-कॉमर्स की है तो इस मामले में भारत को नौसिखिया कहा जा सकता है। हालांकि सरकार की ओर से डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेस जैसे मुद्दों को मिल रहे समर्थन के दम पर हम भी इस क्षेत्र में पैर पसारने की जुगत में लगे हुए हैं। भारत का बाजार बहुत बड़ा है और तेजी से वृद्धि कर रहा है, फिर भी यहां अपार संभावनाएं हैं। ई-कॉमर्स बाजार की नजर से देखें तो 2016 में भारत में ऑनलाइन खरीदारी करने वालों की संख्या करीब छह करोड़ थी जो देश में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या का महज 14 फीसद ही था। अनुमान है कि 2026 तक इंटरनेट से जुड़े लोगों की तादाद 50 फीसद से अधिक बढ़ जाएगी। लिहाजा 2026 तक भारत का ई-कॉमर्स बाजार करीब 200 अरब डॉलर का हो जाएगा। विशेषज्ञों की राय है कि 2019 भारत के ई-कॉमर्स बाजार के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष साबित हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि इंटरनेट पर पांच वर्ष से अधिक समय बिताने वाला उपभोक्ता ऑनलाइन खरीदारी करना शुरू कर देता है। फिलहाल यह संख्या भारत में इंटरनेट का प्रयोग करने वाले 43.2 करोड़ लोगों के मुकाबले महज 30 फीसद है, क्योंकि पिछले तीन वर्षो के दौरान ही देश में इंटरनेट के इस्तेमाल में काफी तेजी देखने को मिली है और वह भी सस्ते स्मार्टफोन और मोबाइल इंटरनेट की आई बहार के दम पर। ऐसे में वॉलमार्ट और अमेजॉन के लिए भारतीय बाजार की अहमियत को समझा जा सकता है।

एकाधिकार का खतरा

दरअसल इस मुकाबले को दुनिया के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से की जंग के तौर पर भी देखा जा सकता है। वॉलमार्ट जहां एक ओर अमेरिकी ई-कॉमर्स दिग्गज अमेजान से दो-दो हाथ करना चाहती है वहीं उसकी नजर चीनी ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा के बढ़ते कारोबार पर भी बनी हुई है। ऐसे में भारत का बाजार उसे उसके प्रतिद्वंद्वियों से मुकाबला करने में सक्षम बना सकता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है पूर्व और पश्चिम दोनों ही अपने-अपने कारोबार का आधिपत्य पूरी दुनिया पर कायम करना चाहते हैं। वहीं अमेजॉन भी इस मुकाबले में पीछे नहीं रहना चाहती है। ई-कॉमर्स की दुनिया में तेजी से कदम बढ़ा रही अमेजॉन भी भारत की ओर उम्मीद भरी निगाह से देख रही है। यही वजह है कि अमेजॉन 2013 में भारत में अपनी शुरुआत से अब तक दो अरब डॉलर से अधिक निवेश कर चुकी है और आने वाले वर्षो में तीन अरब डॉलर निवेश का वादा कर रही है। फ्लिपकार्ट द्वारा हिस्सेदारी बेचने की मंशा जाहिर करने में अमेजॉन को भी एक बहुत बड़ा अवसर दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि इस संभावित सौदे में कंपनी भी हाथ आजमा रही है और फ्लिपकार्ट की हिस्सेदारी खरीदने के लिए आकर्षक पेशकश कर रही है। हालांकि कंपनी की कोशिशों को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की ओर से झटका लग सकता है, क्योंकि प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के विलय से ई-कॉमर्स क्षेत्र में एकाधिकार स्थापित होने का खतरा पैदा हो सकता है, जिसकी मंजूरी उसे शायद ही मिले। फ्लिपकार्ट में हिस्सेदारी हासिल करना अमेजॉन के लिए कितना महत्वपूर्ण है इसका पता इस बात से ही चल सकता है कि ऐसा होने पर भारत में 80 फीसद ऑनलाइन रिटेल बाजार पर उसका अधिकार हो जाएगा।

वॉलमार्ट का दांव

असल में वॉलमार्ट काफी लंबे समय से भारतीय बाजार पर नजरें गड़ाए हुए है, पर भारत की खुदरा नीति विदेशी कंपनियों को सीधे उपभोक्ताओं को बिक्री करने की अनुमति नहीं देती है। फ्लिपकार्ट और अमेजॉन जैसी कंपनियां भी ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस के तौर पर काम करती हैं जिसमें 100 फीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति है। एक अहम बात यह है कि भारत एकमात्र ऐसा बड़ा बाजार है जहां ई-कॉमर्स की पहुंच अब भी सीमित है। 2017 में भारत के खुदरा बाजार की वृद्धि दर करीब 23 फीसद रही, जबकि भारत का कुल खुदरा बाजार आकार में 670 अरब डॉलर से भी बड़ा है। हालांकि इसमें ऑनलाइन बिक्री सिर्फ 20 अरब डॉलर की है। ऐसे में इस वर्ष करीब 60 फीसद वृद्धि दर के साथ वृद्धि की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। ऐसे में फ्लिपकार्ट के अधिग्रहण से वॉलमार्ट के लिए भारत के खुदरा बाजार में कदम रखने के दरवाजे खुल जाएंगे जिसके दम पर वह भारत ही नहीं दुनिया भर में अपने प्रतिद्वंद्वियों को कड़ी टक्कर देने की स्थिति में आ जाएगी।1अमेजॉन की स्थिति1जहां तक बात अमेजॉन की स्थिति की है तो वह भारत में काफी मजबूत है। भारतीय ई-कॉमर्स बाजार में उसकी हिस्सेदारी करीब 35 फीसद है, जबकि फ्लिपकार्ट समूह 45 फीसद हिस्सेदारी के साथ उससे काफी आगे है, लेकिन अगर यह सौदा अमेजॉन के पक्ष में होता है तो कंपनी वॉलमार्ट को काफी पीछे छोड़ते हुए आगे निकल जाएगी, जिसका असर न सिर्फ भारत में, बल्कि दुनिया भर में देखने को मिलेगा।

भारत के लिए लाभ

सौदा किसी के भी पक्ष में हो, फ्लिपकार्ट कल को अमेजॉन की हो जाए या फिर वॉलमार्ट की, फायदा तो भारतीय अर्थव्यवस्था का ही होना है। पहला लाभ तो यह कि देश में बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आएगा। दूसरा यह कि कारोबारी दुनिया में एक बार फिर भारत की अहमियत साबित हो जाएगी। विश्व की दिग्गज कंपनियों के भारत में कारोबार का विस्तार करने से कारोबारी प्रक्रियाओं में अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन किया जाएगा। इसके अलावा यह संभावित विलय देश में रोजगार सृजन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण होगा। खुदरा और ई-कॉमर्स क्षेत्र रोजगार वृद्धि में अहम भूमिका निभाते हैं, क्योंकि इसके अंतर्गत लॉजिस्टिक्स, डिलिवरी, वेयरहाउसिंग और अन्य बैक ऑफिस कार्यो के लिए बड़े पैमाने पर लोगों की जरूरत होती है। यह वृद्धि और महत्वपूर्ण तब होगी जब विलय के बाद बनी कंपनी अपने कारोबार का दायरा दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों, कस्बों और गांवों तक बढ़ाएगी, क्योंकि इसके लिए उन्हें बड़े पैमाने पर लोगों और माल की जरूरत होगी।

इसके अलावा उपभोक्ता के तौर पर देखें तो एक बड़ा लाभ यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर की कंपनी के भारत में आने से उन्हें बेहतर ऑफर, उत्पाद, कीमतें और छूट मिलेंगी। हालांकि कुछ लोग कह रहे हैं कि यह सौदा अमेजॉन के पक्ष में हुआ तो भारतीय बाजार में एक तरह का एकाधिकार स्थापित होने का खतरा पैदा हो जाएगा जो न तो उपभोक्ताओं के हित में नहीं होगा और न ही कारोबारियों या उद्योग के लिए। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि यह सौदा फायदे का है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सौदा ई-कॉमर्स उद्योग के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकता है। हालांकि यह उन लोगों के लिए निराशाजनक हो सकता है जो ई-कॉमर्स के क्षेत्र में एक भारतीय कंपनी को ही सफल होते देखना चाहते थे, लेकिन शायद उन्हें इस बात से खुशी मिल सकती है कि आने वाले दिनों में भारत के ई-कॉमर्स क्षेत्र में उन्हें विश्वस्तरीय सेवाएं देखने को मिलेंगी।

[एसोसिएट एडीटर, इनशॉर्ट्स]