वर्तमान परिदृश्य में युद्ध केवल आक्रामक व्यापार रणनीति का खेल, डिफेंस एक्सपर्ट व्यू
कंपनियां प्रत्यक्ष तौर पर युद्ध को शुरू करने में भले कोई भूमिका न निभाएं लेकिन स्थिति के अशांत बने रहने की वे पक्षधर होती हैं। इससे सीधे तौर पर प्रभावित देश तो हथियार खरीदते ही हैं अन्य को भी ऐसा करने को विवश होना पड़ता है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 28 Feb 2022 01:08 PM (IST)
कर्नल (रि) आरएसएन सिंह। वर्तमान परिदृश्य में युद्ध केवल हथियार कंपनियों और तेल कंपनियों के फायदे का सौदा रह गए हैं। इस दौरान कुछ लाख लोग यदि मरते हैं तो इन कंपनियों को कोई फर्क नहीं पड़ता है। ये कंपनियां सरकारों को प्रभावित करती हैं। पहले इराक फिर सीरिया में बने हालात तेल और हथियार कंपनियों के लिए फायदेमंद रहे हैं।
इस बात में संदेह नहीं कि यूक्रेन पर रूस का हमला भी ऐसी कई कंपनियों को लाभ पहुंचाएगा। जिस तरह से हमला शुरू होते ही तेल के भाव बढ़े हैं, उससे इस बात की पुष्टि भी हो जाती है। महंगे रक्षा उत्पाद बनाने में कंपनियां बड़ा पैसा लगाती हैं। निश्चित तौर पर रक्षा उत्पादों की खपत शांति काल में नहीं होती। इनके लिए युद्ध एकमात्र साधन हैं। कंपनियां प्रत्यक्ष तौर पर युद्ध को शुरू करने या भड़काने में भले कोई भूमिका न निभाएं, लेकिन यह जरूर चाहती हैं कि स्थितियां कुछ अशांत बनी रहें। ऐसा होने से न केवल वे देश हथियार खरीदते हैं, जो सीधे प्रभावित हैं, बल्कि कई अन्य देश भी अपनी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए हथियारों की खरीद करते हैं।
अमेरिका और रूस दोनों में ही हथियार बनाने की वाली बड़ी कंपनियां हैं और ज्यादातर युद्ध में इनकी भूमिका रही है। हथियार ही नहीं, अब स्टील और फार्मा कंपनियां ऐसी स्थितियों का फायदा उठाती हैं। इसे एक तरह से आक्रामक व्यापार रणनीति भी कह सकते हैं। इराक युद्ध लगातार चर्चा में रहा है। किसी भी देश को सद्दाम हुसैन से उतनी समस्या नहीं थी, जितनी इराक के तेल भंडार पर नियंत्रण की इच्छा थी। इसी तरह सीरिया युद्ध भी गैस और अन्य ईंधन उत्पादों पर केंद्रित रहा। इसी तरह यूक्रेन के मामले में भी कमोबेश ऐसा ही देखने को मिल रहा है। हथियार कंपनियां बिचौलियों की मदद से सरकारों पर दबाव बनाती हैं, जिससे वे हथियार खरीदें। पूरी दुनिया में सैन्य हथियारों की खरीद में दलाली और भ्रष्टाचार के खूब मामले सामने आए हैं। अमेरिका और रूस की अर्थव्यवस्था में हथियारों के कारोबार का बड़ा योगदान रहा है। वहां की सरकारों पर हथियार कंपनियों का प्रभाव साफ दिखता है।
युद्ध अक्सर शक्ति प्रदर्शन का माध्यम बनते हैं। बाद में संबंधित देश उसी शक्ति प्रदर्शन के दम पर अपने हथियारों को श्रेष्ठ साबित करता है और वहां की कंपनियों को अपने नए हथियारों के लिए खरीदार मिलते हैं। जिस तरह से दुनिया का परिदृश्य बदला है, उसमें उन्नत हथियार देशों के लिए बहुत जरूरी भी हो गया है। आज हथियार इसलिए ही नहीं रखने पड़ते हैं कि उनका किसी युद्ध में प्रयोग करना होगा। कोई देश आपको कमजोर समझकर हमला न करे, इसके लिए भी उन्नत हथियार रखने जरूरी हो जाते हैं। असल में यह एक किस्म से हथियारों की होड़ है, जिसे कहीं न कहीं कंपनियों ने ही हवा दी है। हथियार युद्ध टालते हैं या युद्ध का कारण बनते हैं, इन बातों के बीच बहुत हल्की लकीर है। इस अंतर को समझकर ही मानवता सुकून से रह सकती है।
[रक्षा विशेषज्ञ]