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भाषण के अनुवाद को लेकर नेहरू और हरिवंश राय बच्चन के बीच हुआ था टकराव, कल्लोल भट्टाचार्य ने अपनी किताब में और क्या कुछ कहा?

साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय विदेश सेवा में शामिल किया था। उनके बीच राष्ट्रपति के भाषण के अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद को लेकर टकराव भी हुआ था। यह बात पत्रकार कल्लोल भट्टाचार्जी की पुस्तक नेहरूज फर्स्ट रिक्रूट्स में कहा गया है। मधुशाला के लेखक हरिवंश राय बच्चन 1955 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए थे।

By Agency Edited By: Sonu Gupta Published: Sat, 22 Jun 2024 02:00 AM (IST)Updated: Sat, 22 Jun 2024 02:00 AM (IST)
भाषण के अनुवाद को लेकर नेहरू और हरिवंश राय बच्चन के बीच हुआ था टकराव। फाइल फोटो।

पीटीआई, नई दिल्ली। क्या आपको पता है कि मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स को विदेश मंत्रालय नाम साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन द्वारा दिया गया था। बच्चन को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय विदेश सेवा में शामिल किया था।

उनके बीच राष्ट्रपति के भाषण के अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद को लेकर टकराव भी हुआ था। इसे तत्कालीन उपराष्ट्रपति जाकिर हुसैन द्वारा पढ़ा जाना था। यह बात पत्रकार कल्लोल भट्टाचार्जी की पुस्तक नेहरूज फर्स्ट रिक्रूट्स में कहा गया है।

1955 में भारतीय विदेश सेवा में  शामिल हुए थे हरिवंश राय बच्चन

मधुशाला के लेखक हरिवंश राय बच्चन 1955 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए थे। विदेश मंत्रालय में उनकी जिम्मेदारी के प्रमुख हिस्से में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के भाषणों का अनुवाद करना शामिल था। जाकिर हुसैन द्वारा दिए जाने वाले भाषण का बच्चन ने अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया था। इसे देखकर जवाहरलाल नेहरू की बच्चन से बहस हो गई।

दोनों के बीच हुआ था टकराव

नेहरू ने कहा कि आपको पता है कि यह भाषण कौन पढ़ेंगे, डॉ. जाकिर हुसैन। वह आपके द्वारा इस्तेमाल कुछ शब्दों का उच्चारण तक नहीं कर पाएंगे। इस पर बच्चन का जवाब था कि पंडित जी, किसी व्यक्ति के उच्चारण की सुविधा के अनुसार भाषा नहीं बदली जा सकती। आप भाषण का उर्दू में अनुवाद क्यों नहीं कराते।

पुस्तक में क्या कहा गया है?

पुस्तक के अनुसार, भाषण का संभवत: उर्दू में अनुवाद नहीं किया जा सकता था, क्योंकि भारतीय संविधान केवल ऐसे सत्रों में हिंदी भाषणों और कई उर्दू शब्दों के साथ हिंदी भाषण के उपयोग की अनुमति देता था। आखिरकार नेहरू ने बच्चन को एक ऐसा पाठ तैयार करने के लिए मना लिया, जिसे पढ़ना तत्कालीन उपराष्ट्रपति जाकिर हुसैन के लिए मुश्किल नहीं था। हुसैन, जिन्होंने राधाकृष्णन की अध्यक्षता में 1962-67 तक उपराष्ट्रपति का पद संभाला, बाद में भारत के तीसरे राष्ट्रपति बने।

पंडित नेहरू ने की हरिवंश राय बच्चन की मदद

पंडित नेहरू ने हरिवंश राय बच्चन की काफी मदद की थी। बच्चन ने जब पीएम नेहरू से समय मांगा और उनसे मुलाकात की। नेहरू ने उन्हें धैर्यपूर्वक सुना। यह जानने पर कि वह छात्रवृत्ति हासिल करने में विफल रहे हैं, नेहरू ने संसद में अपने निजी सचिव बीएन कौल को बुलाया और उनसे हरिवंश राय बच्चन के लिए 8,000 रुपये की छात्रवृत्ति की व्यवस्था करने के लिए कहा।

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