Analysis: जल संकट से जूझती दुनिया
पानी एक ऐसा अनिवार्य रसायन है जिसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। पृथ्वी पर पानी का होना ही जीवन के उदय का कारण है। जब तक पानी रहेगा, जीवन रहेगा।
नई दिल्ली [ज्ञानेंद्र रावत]। आज जल संकट से समूची दुनिया जूझ रही है। इससे निपटने के बाबत बड़ी-बड़ी बातें, घोषणाएं, दावे-दर-दावे किए जाते हैं, लेकिन कुछेक व्यक्तिगत प्रयासों के अलावा ऐसा कुछ नहीं होता जिससे इस समस्या के समाधान में आशा की किरणें दिखाई दे सकें। सरकारी स्तर पर केवल और केवल योजनाओं की घोषणाओं और आश्वासनों के अलावा और कुछ सामने दिखाई नहीं पड़ता। भले 2010 के जुलाई महीने में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा प्रस्ताव पारित कर दुनिया के हरेक व्यक्ति को पानी का अधिकार दिया हो, जिसके तहत हरेक व्यक्ति को अपनी और अपने परिवार की जरूरतों की पूर्ति के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी मिलना चाहिए।
गौरतलब है कि इसके लिए प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 50 से लेकर 100 लीटर का मानक निर्धारित किया गया है। इसमें खास बात यह कि एक तो यह पानी साफ, सस्ता और स्वीकार्य होना चाहिए। दूसरा पानी का स्नोत उस व्यक्ति के आवास से 1000 मीटर से ज्यादा दूर नहीं होना चाहिए। तीसरा यह कि पानी इकट्ठा करने में 30 मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगना चाहिए। सबसे अहम चौथी बात यह कि परिवार की आय के तीन फीसद से ज्यादा पानी की कीमत नहीं होनी चाहिए। अब यहां सबसे अहम गौर करने वाली बात यह है कि क्या कहीं ऐसा हो रहा है? इसका सीधा सा जबाव है कि नहीं। मौजूदा हालात इसके जीते-जागते सबूत हैं। समूची दुनिया के सभी क्षेत्रों में पानी को लेकर भीषण तनाव की स्थिति है। इसमें जलवायु परिवर्तन ने पानी की किल्लत को दिनों-दिन और बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है।
सर्वविदित है कि पृथ्वी पर पानी का होना ही जीवन के उदय का कारण है। जब तक पानी रहेगा, जीवन रहेगा। पानी एक ऐसा अनिवार्य रसायन है जिसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। समस्त पृथ्वी पर कुल जल का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का केवल 2.07 फीसद ही पीने योग्य शुद्ध जल है। यही समस्या का सबसे बड़ा कारण है। इसके चलते समूची दुनिया को पीने के पानी के संकट का सामना करना पड़ रहा है। आबादी के बढ़ते सैलाब ने समस्या को और विकराल बनाने में अहम भूमिका निभाई है। इसका दुष्परिणाम यह है कि आज दुनिया में करीब 3.6 अरब लोग पीने के पानी को तरस रहे हैं। यदि बीते दिनों संयुक्त राष्ट्र की जारी रिपोर्ट का जायजा लें तो पानी की समस्या से जूझते लोगों की तादाद 2050 में 5.7 अरब तक पहुंच जाएगी।
सच कहा जाए तो दुनिया के एक चौथाई बड़े शहर पानी के भीषण संकट का सामना कर रहे हैं। डाउन टू अर्थ नामक पत्रिका के अध्ययन की मानें तो दुनिया के करीब 200 शहर जल संकट का भीषण सामना कर रहे हैं। यही हाल रहा और हालात में कोई सुधार नहीं हुआ तो जकार्ता, बीजिंग, मास्को, मैक्सिको, लंदन, टोक्यो,
मियामी, इस्तांबूल, साओपाउलो, काहिरा और बेंगलुरु आने वाले दिनों में बूंद-बूंद पानी के लिए तरस जाएंगे।जहां तक हमारे देश का सवाल है यूएसएड की रिपोर्ट में इस बात की आशंका व्यक्त की गई है कि 2020 तक भारत जल संकट वाला राष्ट्र बन जाएगा। रिपोर्ट की मानें तो देश के शहरी गरीब सबसे ज्यादा पेयजल की समस्या से जूझ रहे हैं। यहां करीब 17 फीसद आबादी शहरों में स्लम कालोनियों में रहती है। उनमें पानी की उपलब्धता बेहद कम है। न वहां जलापूर्ति के कनेक्शन हैं और न ही उन बस्तियों में रहने वालों को टैंकरों के जरिये दिया जाने वाला पानी पीने योग्य होता है। यह बात दीगर है कि संयुक्त राष्ट्र ने सतत विकास के लक्ष्य यानी एसडीजी के तहत 2030 तक सबको स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने का लक्ष्य रखा है, लेकिन भारतीय शहरों में पानी की समस्या बेहद गंभीर होती जा रही है।
सबसे अहम बात यह है कि शहरों में पेयजलापूर्ति के लिए सरकारी तंत्र पूरी तरह विफल हो रहा है। कारण उसके पास उचित शुल्क पर पानी उपलब्ध कराने की कोई योजना ही नहीं है। यदि 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता घटकर 135 लीटर से अब केवल 67 लीटर ही रह गई है। सबसे बड़ी दुखद बात तो यह है कि जो पानी पीने को मिल भी रहा है, उसमें घुले रसायन और धातळ् मानव जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। पीने के पानी में नाइट्रेट की बढ़ी हुई मात्रा के कारण देश के करीब 23 करोड़ से ज्यादा लोगों पर पेट के कैंसर, स्नायु तंत्र, आंत्रशोध व दिल की बीमारी की तलवार लटक रही है। नाइट्रेट का जहर बच्चों में बेबी सिंड्रोम जैसी मृत्यकारी बीमारी को जन्म दे सकता है।
पानी में आर्सेनिक की मात्रा डब्ल्यूएचओ के मानकों से कहीं ज्यादा है। इससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा है। सच यह है कि देश के 23.9 फीसद लोग आर्सेनिक मिला पानी पीने को विवश हैं। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय भी स्वीकारता है कि देश के 21 राज्यों के 153 से ज्यादा जिले आर्सेनिक युक्त पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, असम, मणिपुर, नगालैंड, अरुणाचल सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। पानी में आर्सेनिक के चलते पंजाब के अमृतसर, तरनतारन, कपूरथला, रोपड़, मनसा, फरीदकोट, मोगा और मालवा के इलाके में लोग कैंसर के सबसे ज्यादा शिकार हैं। पानी में घुला कॉपर महिलाओं का लिवर खराब कर रहा है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार देश के नौ राज्यों की 13,958 बस्तियों का भूजल प्रदूषित है और अत्याधिक उर्वरकों के इस्तेमाल ने तस्वीर बिगाड़ने में प्रमुख भूमिका निभाई है। भूजल के अंधाधुंध दोहन, शुगर मिलों का अंधाधुंध विस्तार (यह जगजाहिर है कि एक किलो चीनी के निर्माण में 2000 लीटर पानी खर्च होता है) और गन्ना, धान, केला, अंगूर और प्याज जैसी अधिक पानी वाली फसलों ने स्थिति को और बिगाड़ा है। औद्योगिक कारखानों के रसायन युक्त अपशेष ने हमारी नदियों सहित समस्त भूजल स्नोतों को प्रदूषित कर दिया है। फिर पूरी दुनिया में 95 फीसद पानी की रोजाना बर्बादी होती है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक यदि दुनिया में पानी बचाने के उपायों पर काम नहीं किया गया तो आने वाले 15 सालों में विश्व को 40 फीसद पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा।
अध्यक्ष, राष्ट्रीय