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पानी के निजीकरण की हिमाकत न करे शीला: संघ

आरएसएस ने भाजपा पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए कहा है कि शीला दीक्षित की सरकार के खिलाफ मजबूत विपक्ष नहीं है। भगवा संगठन ने सत्तारूढ़ काग्रेस को चेतावनी दी है कि पानी का निजीकरण करने की किसी भी कोशिश से दंगे हो सकते हैं, जैसा कि वर्ष 2000 में बोलीविया में हुआ था।

By Edited By: Updated: Mon, 14 Nov 2011 01:42 PM (IST)
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नई दिल्ली। आरएसएस ने भाजपा पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए कहा है कि शीला दीक्षित की सरकार के खिलाफ मजबूत विपक्ष नहीं है। भगवा संगठन ने सत्तारूढ़ काग्रेस को चेतावनी दी है कि पानी का निजीकरण करने की किसी भी कोशिश से दंगे हो सकते हैं, जैसा कि वर्ष 2000 में बोलीविया में हुआ था।

आरएसएस ने अपने मुखपत्र 'आर्गनाइजर' में आरोप लगाया है कि दिल्ली में काग्रेस की सरकार पानी का निजीकरण करने की योजना बना रही है जिससे आम लोगों की मुश्किलें बहुत बढ़ जाएंगी। मुखपत्र ने अपने हालिया अंक के एक संपादकीय में कहा है कि पानी एक राष्ट्रीय संसाधन है जो किसी की संपत्ति नहीं हो सकती, जिसे मुनाफा लेकर आपूर्ति की जाए। यह आवश्यक चीज है और सरकार का यह मूलभूत कर्तव्य है कि वह देश के हर घर में स्वच्छ जलापूर्ति करे। लेकिन दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित वर्ष 2000 से पानी का निजीकरण करने करने के लिए बार- बार कोशिश कर रही है।

संपादकीय में कहा गया है कि सरकार का साहस बढ़ाने में एक मजबूत राजनीतिक विपक्ष की गैर मौजूदगी भी जिम्मेदार है। आरएसएस ने दावा किया है कि शीला इस बारे में एक खाका तैयार करने के लिए एक बहुराष्टीय कंपनी के संपर्क में है और दिल्ली की मुख्यमंत्री ने कुछ दिन पहले कहा था कि उनकी सरकार निजीकरण की योजना पर आगे बढ़ रही है।

दक्षिणपंथी संगठन ने चेतावनी दी कि यदि इस प्रस्ताव को लागू किया गया तो दंगे भड़क सकते हैं और लोगों की मौत हो सकती है, जैसा कि दक्षिण अमेरिका के एक छोटे से देश बोलीविया में हुआ था।

बोलीविया में ऐसा उस वक्त हुआ था, जब विश्व बैंक ने वर्ष 2000 में वहा की सरकार को इस तरह के प्रस्ताव पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया था। मुखपत्र ने बोलीविया में पानी को लेकर छिड़े जंग के बारे में लिखा है कि पानी का बिल आसमान छूने लगा। कई मामलों में परिवार की आय का आधा हिस्सा पानी के बिल का भुगतान करने में खर्च होने लगा। कुछ ही हफ्तों के अंदर पानी पर अधिकार को लेकर दंगे भड़क गए, जिसके चलते लोगों की मौतें हुई। आखिरकार, सरकार को अनुबंध तोड़ना पड़ा।

संपादकीय में कहा गया है कि दुनिया की सिर्फ दो प्रतिशत शहरी आबादी को निजी कंपनिया जलापूर्ति कर रही है, खासतौर पर इंग्लैंड और वेल्स में। इसमें कहा गया है कि विश्व की अन्य छह प्रतिशत आबादी को निजी प्रबंधन वाले सरकारी कंपनियों के जरिए जलापूर्ति की जा रही है।

मुखपत्र में कहा गया है कि जल ही जीवन है। यदि यह प्रभावित होता है तो लोग प्रतिक्रिया करेंगे और हिंसक प्रतिक्रिया होगी। दिल्ली को दूसरी बोलीविया नहीं बनने दें। दिल्ली में सिर्फ कुछ गिने चुने वीआईपी घरों को चौबीसों घटें जलापूर्ति की जाती है

इसमें पानी की उपलब्धता बढ़ाने का सुझाव दिया गया है। साथ ही यह भी सुझाव दिया गया है कि जल स्तर बढ़ाने और लीकेज को बंद करने के लिए कोशिशें की जा सकती है।

गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने हाल ही में कहा था कि पानी का निजीकरण कर देने से लीकेज की समस्या से निजात मिल जाएगी और पानी की बर्बादी पर अंकुश लग जाएगा, जिससे जलापूर्ति बेहतर हो जाएगी।

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