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कम से कम इस मामले में तो हमसे बेहतर ही है पाकिस्‍तान, हमें है सीखने की जरूरत

ज्‍यादातर मामलों में हम पाकिस्‍तान को खरी-खोटी ही सुनाते दिखाई देते हैं। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। इस बार हमें पाकिस्‍तान से सीखने की जरूरत है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Thu, 18 Oct 2018 09:39 PM (IST)
कम से कम इस मामले में तो हमसे बेहतर ही है पाकिस्‍तान, हमें है सीखने की जरूरत
नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। पाकिस्‍तान का जिक्र आते ही हमारे मन में बड़े अजीब-अजीब भाव आने लगते हैं। ज्‍यादातर मामलों में हम पाकिस्‍तान को खरी-खोटी ही सुनाते दिखाई देते हैं। अकसर हम सभी एक जुट होकर यह कहने से भी बाज नहीं आते हैं कि हमसे उसको कुछ सीखना चाहिए। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। इस बार हमें पाकिस्‍तान से सीखने की जरूरत है। दरअसल, जिस तरह से पाकिस्‍तान में बच्‍ची जैनब की दुष्‍कर्म के बाद हत्‍या का फैसला तामील हुआ है वह वास्‍तव में काबिले तारीफ है। पाकिस्‍तान की लखपतकोट जेल में आज जैनब के दोषी को फांसी दे दी गई, वह भी घटना सामने आने के महज दस माह के अंदर।

जैनब मामला
आपको बता दें कि इसी वर्ष जनवरी में छह वर्ष की मासूम बच्‍ची के साथ दुष्‍कर्म के बाद हत्‍या करने का मामला प्रकाश में आया था। इसके बाद फरवरी में अपराधी को दोषी मानते हुए इमरान अली को आतंक रोधी कोर्ट (एटीसी) ने मौत की सजा सुनायी थी। उसको कोर्ट ने चार अलग-अलग मामलों में दोषी मानते हुए यह सजा सुनाई थी। लाहौर से 50 किमी दूर स्थित कौसर शहर में हुए इस अपराध की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी थी और भारत समेत सभी देशों ने इसकी कड़ी निंदा भी की थी। लेकिन आज बुधवार को इमरान की फांसी के साथ इस मामले का पटाक्षेप भी हो गया। दस माह में अपराध होने से लेकर दोषी को फांसी देने तक सभी के लिए पाकिस्‍तान को जितना सराहा जाना चाहिए उतना सही है।

दिल्‍ली गैंगरेप
अब जरा एक नजर अपने देश की भी कर लेते हैं। दुष्‍कर्म के साल दर साल बढ़ते मामलों को यदि नजरअंदाज कर कुछ ऐसे मामले उठाए जाएं जिन्‍होंने पूरे देश को हिला दिया था तो पाकिस्‍तान के मुकाबले हम फिसडडी ही साबित होंगे। आपको याद होगा 16 दिसंबर 2012 की वो ठिठुरन भरी रात, जब एक युवती के साथ उसके दोस्‍त के सामने चलती बस में हैवानियत का नंगा नाच खेला गया था। इस मामले की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी। यहां तक की यूएन में भी इसपर अफसोस जताया गया और दोषियों के खिलाफ जल्‍द से जल्‍द कड़ी सजा देने की अपील भी की गई। मामला सामने आने के बाद दिल्‍ली के इंडिया गेट पर हजारों की भीड़ कड़ी सर्दी में दोषियों के खिलाफ जल्‍द सजा देने की अपील करती नजर आई।

दोषियों की फांसी का इंतजार
यह नजारा महज एक दिन का नहीं बल्कि कई दिनों तक चला। सितंबर 2013 को फास्‍ट ट्रेक कोर्ट ने इसके सभी चार दोषियों को फांसी की सजा सुनाई। 13 मार्च 2014 को दिल्‍ली हाईकोर्ट ने सजा पर मुहर लगाई। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और 5 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत की सजा को सही ठहराते हुए इस पर मुहर लगाई। इसके बाद दोषियों ने रिव्‍यू पेटिशन फाइल की जिसे 9 जुलाई 2018 को खारिज कर दिया गया। लेकिन इसके बाद भी दोषी फांसी के फंदे से आज तक दूर हैं। इसको हमारी न्‍यायिक प्रक्रिया की ज‍टिलता ही कहा जाएगा। फिलहाल दोषियों के पास सजा को अपने से दूर रखने के दूसरे भी विकल्‍प मौजूद हैं। बहरहाल, यह अकेला मामला नहीं है जहां पर दोषियों को फांसी पर लटकाने में वर्षों लग गए हों।

रंगा-बिल्‍ला को फांसी देने में लगे चार वर्ष
आपको बता दें कि 1978 में हुए गीता और संजय चोपड़ा हत्‍याकांड के दोषी रंगा और बिल्‍ला को भी 1982 में फांसी पर लटकाया गया था। इस मामले में भी बच्‍ची के साथ दुष्‍कर्म के बाद उसकी नृशंस हत्‍या कर दी गई थी। इस मामले की गूंज काफी दूर तक सुनाई दी थी। इस घटना ने सभी को हिला कर रख दिया था।

दुष्‍कर्म और हत्‍या के दोषी को दस साल बाद दी फांसी
14 अगस्‍त 2014 को पश्चिम बंगाल की अलीपुर जेल में धनंजय चटर्जी को फांसी दी गई थी। यह सजा उसको 14 वर्षीय एक लड़की के साथ दुष्‍कर्म के बाद हत्‍या करने के आरोप में सुनाई गई थी। यह घटना 5 मार्च 1994 को कोलकाता के भवानीपुर स्थित आनंद अपार्टमेंट में घटी थी। मामला सामने आने के बाद से धनंजय को फांसी लगने तक दस साल लग गए।

ऑटो शंकर को फांसी देने में लगे तीन वर्ष
1988 में चेन्‍नई में लगातार बच्चियों के गुम होने के बाद सीरियल किलर के तौर पर सामने आने वाले ऑटो शंकर को 31 मई 1991 को लंबी कानूनी लड़ाई के बाद फांसी दी जा सकी थी। शंकर अपने साथियों के साथ मिलकर बच्चियों को अगवा करता था। उसका मकसद उन्‍हें देह व्‍यापार में धकेलना होता था। कोई भी बच्‍ची यदि गड़बड़ करती थी तो वह उसकी हत्‍या कर शव को या तो जला देता था या फिर घर में ही दफना देता था।