ला-नीना इफेक्ट: इस बार कड़ाके की ठंड के आसार नहीं, मैदानी इलाकों में तापमान सामान्य से चार-पांच डिग्री ज्यादा
मानसून की शुरुआत से ही कहा जा रहा था कि इस वर्ष ला-नीना के असर से कड़ाके की ठंड पड़ेगी। किंतु अभी तक प्रशांत महासागर में ला-नीना सक्रिय नहीं हुआ है। मौसम विज्ञानी मान रहे कि अगर दिसंबर में भी ला-नीना की स्थिति बनती है तो कमजोर ही रहेगी। अवधि भी कम होगी। इससे न अत्यधिक ठंड पड़ेगी और न ही सर्दी के महीनों में ज्यादा हिमपात होगा।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। मानसून की शुरुआत से ही कहा जा रहा था कि इस वर्ष ला-नीना के असर से कड़ाके की ठंड पड़ेगी। किंतु अभी तक प्रशांत महासागर में ला-नीना सक्रिय नहीं हुआ है। मौसम विज्ञानी मान रहे कि अगर दिसंबर में भी ला-नीना की स्थिति बनती है तो कमजोर ही रहेगी। अवधि भी कम होगी। इससे न अत्यधिक ठंड पड़ेगी और न ही सर्दी के महीनों में ज्यादा हिमपात होगा।
भारत का मौसम प्रशांत महासागर की स्थितियों पर निर्भर करता है। प्रशांत के पानी के गर्म होने पर अलनीनो और ठंडा होने से ला-नीना सक्रिय होता है। सामान्य तौर पर ला-नीना अप्रैल महीने में उभरता है। नवंबर में चरम पर होता है तथा मार्च तक समाप्त हो जाता है, किंतु इस बार अभी तक ला-नीना का अता-पता नहीं है, जबकि नवंबर आधा बीत चुका है।
मौसम विभाग (आइएमडी) ने मई तक ला-नीना के सक्रिय होने का अनुमान लगाया था। मगर प्रशांत महासागर की सतह पर अभी भी तटस्थ स्थितियां बनी हुई हैं, जिसका संकेत है कि यदि अगले महीने तक ला-नीना की स्थितियां बनती भी हैं तो कमजोर होगी। अवधि भी छोटी होगी।
जम्मू-कश्मीर के पहाड़ों में अच्छा हिमपात नहीं हो पाया है
निजी एजेंसी स्काइमेट के मौसम विज्ञानी जेपी शर्मा ने आंकड़ों के विश्लेषण के बाद बताया कि ला-नीना का संबंध कड़ाके की ठंड या अत्यधिक बारिश से नहीं है। पिछले डेढ़ दशक में प्रशांत में आठ बार ला-नीना की स्थितियां बनी हैं, जिनमें सिर्फ एक बार 2022 में अत्यधिक बारिश हुई है। बाकी वर्षों में सामान्य बारिश ही हुई है। जाहिर है, ला-नीना का बारिश या ठंड से रिश्ता नहीं है। भारत में सर्दी की शुरुआत पहाड़ों पर बर्फबारी के बाद ही होती है। यह बर्फबारी पश्चिमी विक्षोभ के चलते होती है। अभी तक जम्मू-कश्मीर के पहाड़ों में अच्छा हिमपात नहीं हो पाया है।
गुरुवार को एक विक्षोभ बना भी है तो वह मजबूत नहीं है। मैदानी इलाकों में न्यूनतम तापमान सामान्य से चार-पांच डिग्री अधिक है, जिससे नवंबर के अंतिम हफ्ते में भी गर्मी महसूस हो रही है। हालिया पश्चिमी विक्षोभ के चलते जम्मू-कश्मीर में बारिश और बर्फबारी हो सकती है, लेकिन तापमान में एकाएक कमी नहीं आने जा रही है। अगले दस दिनों में धीरे-धीरे ही तापमान में कमी आएगी।
दरअसल, पहाड़ों में तीन-चार घंटे लगातार बारिश के बाद तापमान काफी गिरता है। उसके बाद वाष्प के संघनित होने पर बर्फबारी होती है। फिर तेज हवा चलने लगती है तो ठंड पड़ने लगती है। उत्तर से पश्चिम की ओर आने वाली हवा सामान्य तौर पर सूखी होती है।