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लगातार घट रही पश्चिम बंगाल की GDP, रह गई 5.6 फीसदी हिस्सेदारी; EAC-PM ने बताया अन्य राज्यों का हाल

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के अनुसार पिछले कई दशकों में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बंगाल की हिस्सेदारी लगातार घट रही है। 2023-24 में उसकी हिस्सेदारी घटकर केवल 5.6 प्रतिशत रह गई है। यह राजस्थान और ओडिशा जैसे पारंपरिक रूप से पिछले राज्यों से भी कम है। 2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी लगभग 30 प्रतिशत है।

By Agency Edited By: Shubhrangi Goyal Updated: Tue, 17 Sep 2024 08:04 PM (IST)
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लगातार घट रही पश्चिम बंगाल की GDP

पीटीआई, नई दिल्ली: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के अनुसार, पिछले कई दशकों में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बंगाल की हिस्सेदारी लगातार घट रही है। देश के पूर्वी हिस्से का विकास जहां चिंता का विषय बना हुआ है।

वहीं बंगाल को छोड़कर अन्य समुद्र तटीय राज्यों ने देश के अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। जहां तक बिहार की बात है तो पिछले दो दशकों में उसकी स्थिति स्थिर रही है और वह अन्य राज्यों से काफी पीछे है। उनके बराबर आने के लिए उसे बहुत तेजी से विकास करना होगा। '

2023-24 में 5.6 रहेगी हिस्सेदारी

भारतीय राज्यों का सापेक्ष आर्थिक प्रदर्शन: 1960-61 से 2023-24' नामक वर्किंग पेपर के मुताबिक, 1960-61 में बंगाल राष्ट्रीय जीडीपी में 10.5 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ तीसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता था। वहीं 2023-24 में उसकी हिस्सेदारी घटकर केवल 5.6 प्रतिशत रह गई है।

इस पूरी अवधि में जीडीपी में बंगाल की हिस्सेदारी लगातार गिरी है। इतना ही नहीं बंगाल की प्रति व्यक्ति आय 1960-61 में राष्ट्रीय औसत के मुकाबले 127.5 प्रतिशत थी, लेकिन 2023-24 में प्रति व्यक्ति आय घटकर राष्ट्रीय औसत का 83.7 प्रतिशत रह गई। यह राजस्थान और ओडिशा जैसे पारंपरिक रूप से पिछले राज्यों से भी कम है।

दक्षिणी राज्यों ने दूसरे प्रांतों को छोड़ दिया पीछा

आर्थिक उदारीकरण के बाद दक्षिणी राज्यों ने किया बेहतर प्रदर्शन ईएसी-पीएम के सदस्य संजीव सान्याल द्वारा लिखित वर्किंग पेपर के अनुसार, भारत के पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों ने 1960-61 से 2023-24 तक देश के अन्य हिस्सों की तुलना में उल्लेखनीय रूप से बेहतर प्रदर्शन किया। 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद दक्षिणी राज्यों ने दूसरे प्रांतों को पीछे छोड़ दिया। पांच राज्यों (कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु) की सामूहिक रूप से 2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी लगभग 30 प्रतिशत है।

आर्थिक उदारीकरण के बाद सभी दक्षिणी राज्यों की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से अधिक हो गई। अध्ययन अवधि के दौरान दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक है। पिछली सदी के छठे दशक में महाराष्ट, बंगाल और तमिलनाडु में सबसे ज्यादा औद्योगिक समूह थे। हालांकि इसके बाद इनकी स्थितियों में परिवर्तन हुआ और बंगाल से उद्योग खत्म होने लगे। 1991 के बाद तमिलनाडु ने बढ़त हासिल की। प्रति व्यक्ति आय में गुजरात ने महाराष्ट्र को पीछे छोड़ा पिछले दो दशक में गुजरात ने देश की जीडीपी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है। राज्य की हिस्सेदारी 1960-61 में 5.8 प्रतिशत से बढ़कर 1970-71 में 6.7 प्रतिशत हो गई थी।

हालांकि, यह 2000-01 तक मोटे तौर पर उसी स्तर पर रही, लेकिन 2022-23 में यह बढ़कर 8.1 प्रतिशत हो गई। यहां यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि गुजरात और महाराष्ट्र पिछले सदी के छठे दशक तक एक ही राज्य थे। गुजरात की प्रति व्यक्ति आय 1960-61 में 118.3 से बढ़कर राष्ट्रीय औसत का 160.7 प्रतिशत हो गई। शुरू में, गुजरात महाराष्ट्र से पीछे था। 1960-61 में महाराष्ट्र की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का 133.7 प्रतिशत थी। हालांकि, 2023-24 में गुजरात की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का 160.7 प्रतिशत हो गई है, जबकि महाराष्ट्र की प्रति व्यक्ति आय 150 प्रतिशत रही। वर्किंग पेपर में कहा गया है कि भारत के पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों ने देश के अन्य प्रांतों की तुलना में अच्छा प्रदर्शन किया है।

देश की जीडीपी में पंजाब से ज्यादा हरियाणा की हिस्सेदारी देश की जीडीपी में हरियाणा का हिस्सा अब पंजाब से अधिक हो गया है और इसकी प्रति व्यक्ति आय 2023-24 में पंजाब के 106.7 प्रतिशत की तुलना में 176.8 प्रतिशत हो गई है। दोनों राज्य कभी एक ही राज्य का हिस्सा थे। पंजाब की जीडीपी में हिस्सेदारी 1960 के दशक में मुख्य रूप से हरित क्रांति के चलते बढ़ी, लेकिन फिर 1990-91 तक लगभग 4.3 प्रतिशत पर स्थिर हो गई और फिर इसमें गिरावट शुरू हुई। अंतत: 2023-24 में 2.4 प्रतिशत पर पहुंच गई। इसके विपरीत, हरियाणा का हिस्सा लगातार बढ़ता गया है और यह 2010-11 से अपेक्षाकृत स्थिर बना हुआ है।

2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में हरियाणा की हिस्सेदारी 3.6 प्रतिशत थी। इस बात की संभावना व्यक्त की गई है कि गुरुग्राम की सफलता हरियाणा की बढ़ती हिस्सेदारी का कुछ हिस्सा हो। पेपर में यह भी सवाल उठाया गया है कि क्या पंजाब का कृषि पर अत्यधिक ध्यान देना 'डच बीमारी' जैसा है, जो औद्योगिकीकरण में बाधा पैदा कर रहा है। अर्थशास्त्र में डच बीमारी को इस तरह से समझा जाता है कि यह जहां एक विशिष्ट क्षेत्र में वृद्धि का कारक बनता है वहीं इसके चलते अन्य क्षेत्रों में पर्याप्त विकास नहीं होता है।