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World Press Freedom Day 2022 : पत्रकारों की मौत पर क्या हैं दुनियाभर के आंकड़े? 87 फीसद पत्रकारों की मौत के केस अनसुलझे

World Press Freedom Day 2022 बीतें कुछ वर्षों में कितने पत्रकारों को जान से हाथ धोना पड़ा। भारत की क्‍या स्थिति रही है। आइए जानते हैं कि पत्रकारों की मौत के मामले में दुनिया में कौन से मुल्‍क सबसे आगे हैं। दक्षिण एशियाई देशों की क्‍या स्थिति है।

By Ramesh MishraEdited By: Updated: Sat, 07 May 2022 12:44 PM (IST)
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पत्रकारों की मौत पर क्या हैं दुनियाभर के आंकड़े? 87 फीसद पत्रकारों की मौत के केस अनसुलझे। एजेंसी।
नई दिल्‍ली, जेएनएन। स्‍वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्‍मा गांधी ने कहा था कि प्रेस की स्‍वतंत्रता एक मूल्‍यवान विशेषाधिकार है। कोई भी लोकतांत्रिक मूल्‍यों वाली सरकार इसका त्‍याग नहीं कर सकती। पत्रकारों पर सच नहीं लिखने के लिए दबाव बनाने की जरूरत हमेशा से होती रही है। गांधी जी की सौ वर्ष पूर्व कही ये बात आज भी प्रासंगिक है। दुनियाभर में कई बार पत्रकारों को सच की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है। इस कड़ी में हम आप को बतांएगें कि बीते कुछ वर्षों में कितने पत्रकारों को जान से हाथ धोना पड़ा। भारत के विभिन्‍न राज्‍यों में क्‍या स्थिति रही है। आइए जानते हैं कि पत्रकारों की मौत के मामले में दुनिया में कौन से मुल्‍क सबसे आगे हैं। दक्षिण एशियाई देशों की क्‍या स्थिति है।

1- आस्टिया की राजधानी विएना स्थित इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट (आईपीआई) हर साल विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (3 मई) की पूर्व संध्या पर डेथ वाच की लिस्ट जारी करता है। इसमें हर वर्ष पत्रकारों की रिपोर्टिंग के दौरान मारे जाने का आंकड़ा होता है। आईपीआई की रिपोर्ट का दावा है कि अधिकतर पत्रकारों के मारे जाने की वजह संघर्ष नहीं बल्कि भ्रष्टाचार है। आईपीआई की रिपोर्ट में हत्या की जांचों पर भी सवाल उठाया गया है। रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार हत्या के मामलों की जांच बेहद धीमी है।

2- वर्ष 1993 से दुनियाभर में 1519 पत्रकार जान से हाथ धो चुके हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि वर्ष 2006 के बाद से सभी पत्रकारों की हत्याओं में से 87 फीसद केस आज भी अनसुलझे हैं। इनमें दो तिहाई से ज्यादा ऐसे देशों में हुई जहां कोई सशस्त्र संघर्ष जारी नहीं था। एक दशक पहले वर्ष 2013 में स्थिति अलग थी, जब दो तिहाई पत्रकारों की हत्या संघर्ष से गुजर रहे देशों में हुई थी। यूनेस्को (UNESCO) के आकड़ों के मुताबिक साल 2021 में 55 पत्रकारों की मौत हुई थी। वर्ष के पहले चार महीनों में ही 29 पत्रकार अपनी जान खो चुके हैं। इनमें से रूस और यूक्रेन जंग के दौरान सुर्खियों में आए इस देश में सात पत्रकारों को जान गंवानी पड़ी है।

3- पिछले 29 सालों के आंकड़ों के मुताबिक पत्रकारों के लिए सबसे घातक देश ईराक रहा है। इराक में 201 पत्रकारों ने जान गंवाई है। इसके बाद दूसरे स्‍थान पर मेक्सिको है। तीसरे स्‍थान पर  फिलीपींस का नम्बर आता है। भारत के पड़ोसी देश भी पत्रकारों के लिए खतरनाक जगहों में से एक हैं। इस मामले में पाकिस्तान चौथे स्‍थान पर है। 5वें स्‍थान पर अफगानिस्तान का नाम है। तालिबान हुकूमत के बाद अफगानिस्‍तान में प्रेस की आजादी पर प्रतिबंध है। दक्षिण एशियाई मुल्‍कों में बांग्लादेश और श्रीलंका में पत्रकारों को कर्तव्य निभाते हुए जान से हाथ धोना पड़ा है।

पत्रकारों की मौत के मामले में शीर्ष 10 देश 

1- ईराक : 201

2- मेक्सिको : 139

3- फिलींपीस : 112

4- पाकिस्तान : 86

5- अफगानिस्तान : 81

6- सोमालिया : 75

7- भारत : 53

8- ब्राजील : 52

9- कोलंबिया : 48

10- होड्रउस : 45

अन्‍य प्रमुख देशों का हाल

1- दक्षिण एशियाई मुल्‍कों के अन्‍य देशों में बांग्‍लादेश 25 पत्रकारों की हत्‍या हुई है। प्रेस की आजादी के मामले में भारत के पड़ोसी मुल्‍क नेपाल ने अच्‍छी प्रग‍ति की है, लेकिन वहां आठ पत्रकारों की हत्‍या हुई है। चीन में प्रेस की आजादी पर कड़े प्रतिबंध है। प्रेस में मीडिया और इंटरनेट का दायरा बेहद सीमित है। इसके बावजूद वहां दो पत्रकारों की हत्‍या हुई है। प्रसे फ्रीमड इंडेक्‍स में रूस भी काफी नीचले पायदान पर है। रूस में कम्‍युनिस्‍ट शासन है। वहां पुतिन की सरकार है। रूस में 34 पत्रकारों की हत्‍या हुई है। रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान चर्चा में आए इस देश में 23 पत्रकारों की हत्‍या हुई है।

2- आईपीआई की रिपोर्ट के मुताबिक लैटिन अमरीका ऐसी जगह है जहां पत्रकारों की सबसे अधिक हत्याएं होती हैं। इन जगहों पर अधिकतर पत्रकार नशीली दवाओं की तस्करी और राजनीतिक भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग करते हैं। लैटिन अमरीका में हर महीने औसतन 12 पत्रकारों से अधिक की हत्या होती है। इसमें सबसे ज्‍यादा मैक्सिको में होती है। दक्षिण एशिया में भी पत्रकारों की हत्या बड़ी बात नहीं है। पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक जगह अफगानिस्‍तान है। गौरतलब है कि आईपीआई 1997 से पत्रकारों की हत्या के ऊपर काम कर रहा है। साल 1997 से अब तक डेथ वाच के अनुसार, 1801 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है।