अयोध्या मामले में चली लगातार सुनवाई में जानें सभी पक्षकारों ने क्या दी थी अपने पक्ष में दलील
सुप्रीम कोर्ट में लगातार चली सुनवाई के दौरान सभी पक्षकारों ने अपने-अपने पक्ष में कई तरह की दलीलें दी थीं। जानें क्या थी ये दलीलें।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Sat, 09 Nov 2019 10:58 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में चली लगातार सुनवाई के दौरान सभी पक्षों ने अपने हक में कई तरह की दलीलें दी। इस सुनवाई के दौरान कोर्ट का माहौल कभी सख्त भी दिखाई दिया। जानें इसमें किस पक्ष ने क्या दी थी दलील।
2 अगस्त 2019: राजीव धवन का कहना था कि कोर्ट को इन अपीलों पर सुनवाई से पहले दूसरी लंबित याचिकाओं का निपटारा करना चाहिए। उनकी दलील थी कि कोर्ट ने पूर्व में कहा था कि मामले की सुनवाई में किसी तरह की हस्तक्षेप अर्जी स्वीकार नहीं की जाएगी। इस पर कोर्ट ने कि वह इस बारे में बाद में विचार करेगा। धवन द्वारा बार-बार दलील दिए जाने से नारज कोर्ट ने कहा कि वह कोर्ट को न बताएं कि उन्हें क्या करना है।6 अगस्त 2019: निर्मोही अखाड़े ने सुप्रीम कोर्ट में पूरी राम जन्मभूमि पर कब्जा और प्रबंधन का अधिकार मांगा।उनका कहना था कि इस जमीन के मालिक भगवान रामलला विराजमान ही हैं लेकिन उनकी पूजा अर्चना और प्रबंधन हमेशा से ही निर्मोही अखाड़ा कराता रहा है। लिहाजा वहां पर उसका ही कब्जा है। 1950 में उनसे कब्जे का अधिकार वापस लेकर वहां रिसीवर नियुक्त कर दिया गया था। अखाड़े की दलील थी कि निर्मोही अखाड़ा रामनंदी बैरागी का एक प्राचीन मठ है, जिसके कई मंदिर हैं। राम जन्मभूमि का प्रबंधन भी वही देखता आया है और चढ़ावा भी लेता आया है। निर्माही अखाड़े का कहना था कि 1885 से वहां पर मुस्लिम समाज ने कभी नमाज नहीं पढ़ी है। उनकी दलील पर कोर्ट का कहना था कि उनके मुकदमे में मालिक घोषित करने की मांग का जिक्र नहीं है।
7 अगस्त 2019: भगवान रामलला विराजमान की तरफ से दलील दी गई कि लाखों भक्तों की अटूट आस्था और उनका विश्वास इस बात का सुबूत है कि यही भगवान राम का जन्मस्थान है। लिहाजा इस जमीन का हक उनको ही दिया जाना चाहिए। रामलला की तरफ से कहा गया वाल्मिकी रामायण में तीन जगहों पर जिक्र है कि अयोध्या में ही भगवान राम का जन्म हुआ था। अपने पक्ष में रामलला ने 1776 में भारत आए विदेशी यात्रियों का भी हवाला दिया। रामलला का कहना कि इतने लंबे समय के बाद इस बात का सुबूत देना मुश्किल होगा कि भगवान राम ने यहां जन्म लिया था। लेकिन, लोगों की आस्था इस बात का सुबूत है।
8 अगस्त 2019: रामलला विराजमान ने कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब मुकदमा उनका मंजूर किया गया तो जमीन का हिस्सा दूसरे पक्षों में क्यों बांटा गया। रामलला की तरफ से दलील दी गई कि जन्मस्थान किसी भी सामान्य स्थल को नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने संस्कृत श्लोक 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी' का भी हवाला किया। रामलाल की तरफ से कहा गया कि जन्मस्थान स्वर्ग से भी बड़ा होता है। यह राम जन्मस्थान है जिससे करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है।
9 अगस्त 2019: मुस्लिम पक्ष की तरफ से रोजाना सुनवाई का विरोध करते हुए दलील दी गई कि यह अमानवीय होगा। रोज सुनवाई के बाद अगले दिन की तैयारी करनी होगी और फैसले भी पढ़ने होंगे। राजीव धवन ने ये भी कहा कि जस्टिस चंद्रचूड़ को छोड़कर अन्य जजों ने न तो कोई रिसर्च की होगी और न ही हाईकोर्ट के फैसले को पढ़ा होगा। वहीं, रामलला की तरफ से कहा गया कि कोई पक्ष को कोर्ट को ये नहीं कह सकता है कि उसको कैसे सुनवाई करनी है।
13 अगस्त 2019: रामलला विराजमान की तरफ से दलील दी गई कि मुस्लिम पक्ष ने भी माना है कि यह राम जन्मस्थान ही है। रामलला की तरफ से कहा गया कि जन्म स्थान स्वयं में देवता है और देवता का बंटवारा नहीं किया जा सकता है। लिहाजा यहां पर हिंदू और मुस्लिम पक्ष दोनों का ही एक साथ कब्जा मुमकिन नहीं है।14 अगस्त 2019: रामलला की तरफ से स्कंद पुराण का हवाला दिया गया और कहा गया कि इसमें भी अयोध्या को भगवान राम का जन्मस्थान कहा गया है। कोर्ट आस्था पर तर्क नहीं कर सकता है। इस पक्ष की तरफ से 16वीं शताब्दी में भारत आए विदेशी यात्री विलियम फिंच के अयोध्या भ्रमण के वर्णन का भी हवाला दिया गया। इसमें रामचंद्र के महल और इसके अवशेषों का भी जिक्र किया गया था।
20 अगस्त 2019: रामलला विराजमान की तरफ से कहा गया कि जैसे मुस्लिम पक्ष के लिए मक्का है वैसे ही हिंदुओं के लिए अयोध्या है। इस दौरान इस पक्ष की तरफ से हाईकोर्ट में दर्ज गवाहियों का भी जिक्र किया गया।रामचंद्र दास की गवाही का जिक्र करते हुए कहा गया कि उन्होंने कहा था कि अयोध्या में पूरे विश्व से लोग आते हैं। विश्व में कहीं दूसरी जगह राम जन्मभूमि नहीं है। इस दौरान रामचरित्र मानस का भी उल्लेख किया गया। रामलला की तरफ कई शिलालेखों का भी जिक्र किया गया।
21 अगस्त 2019: राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति की तरफ से दलील दी गई कि इस्लामिक लॉ में कहीं भी मस्जिद को इश्वर नहीं माना गया है वह केवल इबादतगाह होती है। इनका कहना था कि यह दलील गलत है कि मस्जिद सदैव मस्जिद ही होती है और ये नष्ट नहीं हो सकती है। वहीं हिंदू लॉ में स्थान भी देवता होता है जिसको बदला नहीं जा सकता है।26 अगस्त 2019: सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े से पूछा कि वह रामलला विराजमान के मुकदमे के समर्थन में है या विरोध में। कोर्ट का कहना था कि यदि देवता ही नहीं होंगे तो उनकी सेवा, पूजा और प्रबंधन का अधिकार कैसे रहेगा। वह मस्जिद के तो सेवादार नहीं हो सकते। निर्मोही अखाड़े ने रामलला विराजमान का विरोध किया और रामलला विराजमान की ओर से निकट मित्र के मुकदमा दाखिल करने वाले देवकी नंदन अग्रवाल पर सवाल उठाया।
27 अगस्त 2019: अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुररुद्धार समिति ने कहा कि यहां कभी बाबर आया ही नहीं और न ही उसने यहां पर मस्जिद बनवाई। यहां तक की मीर बाकी नाम का भी कोई व्यक्ति नहीं था। इनकी दलील थी कि जिन शिलालेखों के बारे में मुस्लिम पक्ष ने जिक्र किया है उनमें भी विरोधाभास है।28 अगस्त 2019: अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति की तरफ से बाबरनामा, आइन ए अकबरी, हुमायूंनामा, तुर्के जहांगीर का जिक्र करते हुए कहा गया कि इनमें कहीं भी अयोध्या में मस्जिद होने की बात नहीं की गई है।
29 अगस्त 2019: अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति ने दलील दी कि विवादित ढांचे को इस्लामिक कानून के तहत मस्जिद नहीं माना जा सकता है। क्योंकि वहां पर जबरदस्ती कब्जा कर यह बनवाई गई थी। यह भी साबित नहीं हो सका कि बाबर ने इसको अल्लाह को समर्पित किया था।30 अगस्त 2019: उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने हिंदू पक्ष का समर्थन करते हुए अपने हक की जमीन को हिंदुओं को देने की बात कही।
2 सितंबर 2019: मुस्लिम पक्ष की तरफ से दी गई दलील में कहा गया कि हिंदुओं ने हमला किया, जबरन घुसे, मस्जिद को ध्वस्त किया और अब जमीन पर अधिकार की मांग कर रहे हैं। इस दौरान इस पक्ष ने विदेशी यात्रियों और इतिहासकारों के वर्णन को साक्ष्य के तौर पर स्वीकार किए जाने का विरोध किया।3 सितंबर 2019: सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या में विवादित स्थल पर मस्जिद होने का दावा कर रहे पक्ष ने कहा कि 22-23 दिसंबर 1949 की रात जो कुछ हुआ वह कोई चमत्कार नहीं बल्कि एक सोची समझी रणनीति थी। रात के अंधेरे में चुपके से मूर्तियों को अंदर रख दिया गया था। मुस्लिम पक्ष का कहना था इसकी शुरुआत 19 मार्च 1949 को उस वक्त हुई थी जब निर्मोही अखाड़े ने पंजीकरण कराया था।
5 सितंबर 2019: मुस्लिम पक्ष ने निर्मोही अखाड़े को सेवादार के तौर पर माना लेकिन कहा कि विवादित जमीन का मालिकाना हक मुस्लिमों का ही है। 12 सितंबर 2019: मुस्लिम पक्ष की दलील थी कि विवादित स्थल पर मूर्तियां रखकर दावा जरूर किया जा रहा है लेकिन वहां पर मालिकाना हक केवल मुस्लिम पक्ष का ही है। इस पक्ष का दावा था कि निर्मोही अखाड़े ने कभी भी मस्जिद के अंदर अधिकार का दावा नहीं किया।12 सितंबर 2019: मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष के जमीन पर दावे का विरोध करते हुए कहा कि मस्जिद के अंदर मूर्तियों का रखा जाना गैरकानूनी गतिविधि थी। इन्हें आधार बनाकर जमीन पर हक का दावा नहीं किया जा सकता है।16 सितंबर 2019: मुस्लिम पक्ष ने जन्मस्थान को देवता मानते हुए पक्षकार बनने का विरोध करते हुए कहा कि यदि ये मान लिया जाए तो अन्य पक्षों का अधिकार खत्म हो जाएगा। इसमें कोर्ट भी कुछ नहीं कर सकेगा।19 सितंबर 2019: सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को कहा कि विवादित स्थल पर 1935 में रैलिंग के पार गर्भ गृह में मूर्ति होने और दर्शन करने के बारे में मौखिक साक्ष्य हैं।20 सितंबर 2019: मुस्लिम पक्ष ने दलील दी कि 1985 में राम जन्मभूमि न्यास का गठन किया गया। इसका गठन कारसेवा मूवमेंट को गति देने के मकसद से किया गया था। सरकार के श्वेत पत्र में भी इसको सामाजिक और राजनीतिक मूवमेंट बताया गया। 1990 में विहिप ने कारसेवा की घोषणा की और 30 अक्टूबर 1990 को कुछ कारसेवकों द्वारा गुंबद को मामूली क्षति पहुंचाए जाने की बात कही गई। 30 अक्टूबर और 2 नवंबर 1990 को वहां गोलियां चलाई गईं, जिसमें 16 लोगों की मौत हुई।24 सितंबर 2019: कोर्ट ने कहा कि आइन ए अकबरी में जन्मस्थान का जिक्र नहीं है तो उसमें मस्जिद का भी जिक्र नहीं है। ऑल इंडिया मुस्लिम फोरम के प्रतिनिधियों ने मंदिर का किया समर्थन।25 सितंबर 2019: सुप्रीम कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड की आपत्ति पर जानना चाहा कि जब हाईकोर्ट में उसकी तरफ से एएसआई रिपोर्ट पर कोई सवाल खड़ा नहीं किया गया तो अब सुप्रीम कोर्ट में वह ऐसा क्यों कर रहे हैं। 27 अक्टूबर 2019: मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में कहा कि एएसआई की मुख्य रिपोर्ट और उसके निष्कर्षों के बीच कोई सामंजस्य नहीं है। एएसआई के निष्कर्ष अनुमानों पर आधारित होते है और यह भिन्न हो सकते हैं। साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के तहत महज विशेषज्ञों की राय मानी जाती है।1 अक्टूबर 2019: भगवान रामलला की तरफ से दलील दी गई कि मुस्लिम पक्ष का एएसआई को बदनाम करना दुर्भाग्यपूर्ण है। एएसआई की रिपोर्ट वैज्ञानिक साक्ष्य है। एएसआई ने हाईकोर्ट के आदेश पर कोर्ट के निरीक्षक की निगरानी में विवादित स्थल की खोदाई कर रिपोर्ट दी थी।14 अक्टूबर 2019: मुस्लिम पक्षने कहा कि 450 वर्ष बाद विवादित स्थल की खोदाई का विरोध करते हुए कहा कि यह सही नहीं है। अगर इस तरह होगा तो फिर लोगों का कहना है कि यहां पर 500 मस्जिदें मंदिरों को तोड़कर बनवाई गईं।