Electoral Bond: इलेक्टोरल बॉन्ड पर देश में कब क्या हुआ? यहां समझिए चुनावी बॉन्ड की पूरी क्रोनोलॉजी
Electoral Bonds सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया है। चुनावी साल में सरकार को यह बड़ा झटका लगा है। चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दलों को फंडिंग का एक तरीका है। चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता से संबंधित मामले में घटनाओं का क्रम आप यहां पढ़ सकते हैं।
पीटीआई, नई दिल्ली। Chronology of events in Electoral bonds case: सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया है। चुनावी साल में सरकार को यह बड़ा झटका लगा है।
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि जनता को सूचना का अधिकार है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया साल 2023 के अप्रैल महीने से लेकर अब तक की सारी जानकारियां चुनाव आयोग को दे और आयोग ये जानकारी कोर्ट को दे।
चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता से संबंधित मामले
राजनीतिक दलों को फंडिंग का एक तरीका, चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता से संबंधित मामले में घटनाओं का क्रम इस प्रकार है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गुरुवार को इसे रद्द करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।- 2017: वित्त विधेयक में चुनावी बॉन योजना पेश की गई।
- 14 सितंबर, 2017: मुख्य याचिकाकर्ता एनजीओ 'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' ने योजना को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
- 03 अक्टूबर, 2017: SC ने एनजीओ द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्र और EC को नोटिस जारी किया।
- 2 जनवरी, 2018: केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड योजना को अधिसूचित किया।
- 7 नवंबर, 2022: चुनावी बॉन्ड योजना में एक वर्ष में बिक्री के दिनों को 70 से बढ़ाकर 85 करने के लिए संशोधन किया गया, जहां कोई भी विधानसभा चुनाव निर्धारित हो सकता है।
- 16 अक्टूबर, 2023: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एससी बेंच ने योजना के खिलाफ याचिकाओं को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजा।
- 31 अक्टूबर, 2023: सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने योजना के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
- 2 नवंबर, 2023: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा।
- 15 फरवरी, 2024: सुप्रीम कोर्ट ने योजना को रद्द करते हुए सर्वसम्मति से फैसला सुनाया और कहा कि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार के साथ-साथ सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है।
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