Aparajita Bill: क्या है बंगाल का नया अपराजिता कानून? कब और किसे होगी फांसी की सजा, जानिए सबकुछ
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 31 वर्षीय डॉक्टर से बलात्कार और हत्या के मामले में भारी विरोध के बाद पश्चिम बंगाल विधानसभा ने आज राज्य के लिए आपराधिक संहिता भारतीय न्याय संहिता में कुछ प्रावधानों में संशोधन करने के लिए अपराजिता विधेयक पारित किया। ये संशोधन बलात्कार और बाल शोषण के लिए दंड को और अधिक कठोर बनाते हैं। आइए जानते हैं इसके बारे में...
माला दीक्षित, नई दिल्ली। महिला सुरक्षा को लेकर सवालों में घिरी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से लाया गया नया प्रस्ताव सवालों के घेरे में है। राजनीतिज्ञ ही नहीं विधि विशेषज्ञ भी सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि ममता सरकार ने मंगलवार को संशोधन कानून पारित कर दुष्कर्म के अपराध में फांसी की सजा का प्रविधान किया है जबकि एक जुलाई से पूरे देश में लागू हुए नये आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता में पहले से ही दुष्कर्म के जघन्य अपराध में फांसी की सजा है।
कानून को कड़ाई से लागू करने पर ध्यान
कानूनविदों का कहना है कि पश्चिम बंगाल सरकार को कानून में संशोधन के बजाए मौजूदा कानून को कड़ाई से लागू करने पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि दुष्कर्म के सामान्य अपराध में फांसी की सजा देना बहुत गलत होगा और दुष्कर्म के जघन्य अपराध में पहले से यह सजा मौजूद है।
क्या कहता है कानून
बीएनएस की धारा 66 कहती है कि अगर दुष्कर्म के बाद पीडि़ता की मौत हो जाती है अथवा वह मरणासन्न स्थिति यानी कोमा की स्थित में पहुंच जाती है तो दोषी को कम से कम 20 साल की सजा जिसे उम्रकैद तक बढ़ाया जा सकता है होगी। उम्रकैद का मतलब जीवन रहने तक कैद से है। या फिर मृत्युदंड होगा।
पहले से है फांसी की सजा का प्रविधान
ममता सरकार की मंशा पर स्पष्ट सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील महालक्ष्मी पवनी कहती हैं कि महिलाओं को सुरक्षा देने और अपराध की निष्पक्ष जांच और कार्रवाई में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री नाकाम रहीं और अब संशोधित कानून लाकर वह जनता को गुमराह करने का प्रयास कर रही हैं क्योंकि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में तो पहले से ही दुष्कर्म के जघन्य अपराध में फांसी की सजा है।- ममता बनर्जी स्वयं मुख्यमंत्री हैं, गृह विभाग उनके पास है तो वे किससे जस्टिस मांग रही हैं। ये राजनैतिक स्टंट है जनता को गुमराह कर रही हैं, जनता इतनी मूर्ख नहीं है। वैसे कानूनन राज्य सरकार को कानून में संशोधन लाने का अधिकार है।
- केंद्रीय कानून (भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और पोक्सो अधिनिमय) में राज्य सरकार द्वारा संशोधन लाने के कानूनी और संवैधानिक अधिकार पर पूर्व विधि सचिव पीके मल्होत्रा विस्तार से बताते हैं।
- मल्होत्रा कहते हैं कि जो विषय संविधान की समवर्ती सूची के होते हैं उन पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों को होता है बस शर्त होती है कि राज्य का कानून केंद्रीय कानून के खिलाफ नहीं होना चाहिए।
- क्रिमनल ला समवर्ती सूची में आता है ऐसे में राज्य सरकार को संशोधन अधिनियम लाने का अधिकार है। राज्य सरकार विधानसभा से संशोधन कानून पारित करेगी।
- उसके बाद वह विधेयक राज्यपाल के जरिये मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाएगा और अगर राष्ट्रपति विधेयक को मंजूरी दे देंगे तो वह कानून बन जाएगा और उस राज्य में वह संशोधित कानून लागू होगा।
- लेकिन अगर राष्ट्रपति मंजूरी नहीं देते हैं तो वह कानून नहीं बनेगा। यह संवैधानिक और कानूनी व्यवस्था है। पूर्व में भी ऐसे मामले हुए हैं जहां केंद्रीय कानून को राज्य सरकारों ने संशोधित किया है।
- लेकिन साथ ही मल्होत्रा कहते हैं कि ये भी एक सवाल है कि ममता बनर्जी जो कर रही हैं उसके पीछे उनकी मंशा कानून को सख्त करने की है या ये सिर्फ राजनैतिक उद्देश्य से है।