Child Marriage: बचपन का विनाशकारी अंत, बाल विवाह से सैकड़ों जिंदगियां हो रही तबाह; क्या कहता है भारत का कानून?
Child Marriage भारत में बाल विवाह के खिलाफ सख्त कानून बनाए गए है लेकिन इसके बाद भी देश के कई हिस्सों में बाल विवाह हो रहा है। इसका किसी भी पुरुष या महिला के जीवन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है।
नई दिल्ली, शालिनी कुमारी। Child Marriage: विश्व के कई देशों में ऐसी कई प्रथाएं हैं, जो आज के समय में लोगों के लिए समस्या बन चुकी है। इसमें से कई ऐसी प्रथाएं, जो महिला वर्ग के लिए चुनौती बन गया है। इन्हीं में से एक प्रथा है बाल विवाह।
बाल विवाह के नाम पर आज महिला वर्ग के साथ अन्याय हो रहा है, वे चाह कर भी कुछ बोलने का सामर्थ्य नहीं उठा पाती है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि यह देश के हर कोने में खुले तौर पर हो रहा है, लेकिन जहां भी हो रहा है, इसे रोकना बहुत जरूरी है।
आज का समाज पहले के मुकाबले बहुत आगे निकल चुका है। ऐसे में पुरानी प्रथा के साथ जीवन यापन करना पूरी तरह से गलत है। इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि आखिर बाल विवाह क्या है, इसका कारण क्या है और इस प्रथा के कारण महिलाओं पर क्या दुष्परिणाम पड़ रहा है।
क्या है बाल विवाह? (What Is Child Marriage)
कानून के अनुसार, निश्चित आयु से पहले किसी भी बच्चे का विवाह यानि नाबालिग उम्र में बच्चे का विवाह कर देना बाल विवाह होता है। प्रत्येक देश में बच्चे के बालिग होने की एक आयु निश्चित की गई है, उससे पहले विवाह होना, बाल विवाह कहलाता है। इस विवाह से बच्चों का बचपन छिन जाता है और उन्हें इस बात का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं होता है कि आगे उनके साथ क्या होने वाला है या उनका जीवन कैसा हो जाएगा।
इस प्रथा का शिकार ज्यादातर लड़कियां होती हैं, क्योंकि कई मामलों में देखा गया है कि लड़कियों की उम्र बहुत ही कम होती है और लड़कों की उम्र उनके मुकाबले बहुत ही ज्यादा होती है। इस तरह की शादी से लड़कियों को जीवन भर मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। भारत में कानूनी दृष्टि से 18 वर्ष से कम आयु की लड़की और 21 वर्ष से कम आयु के लड़के का विवाह करना बाल विवाह की श्रेणी में आता है, जो कि कानूनी अपराध है।
क्या है बाल विवाह के कारण? (What Are The Cause Of Child Marriage)
समाज में बाल विवाह के सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक रूप में कई कारण हैं।
शिक्षा का अभाव
शिक्षा, किसी भी व्यक्ति को विवेकशील बनाती है और उसके सोचने तथा समझने की क्षमता को मजबूत करती है। एक शिक्षित व्यक्ति कोई भी फैसला करने से पहले उसके दोनों पहलुओं की जांच करता है। ऐसे में समाज में साक्षरता दर की कमी होने से लोगों को इस बात की समझ होना मुश्किल होता है कि बाल विवाह से बच्चों पर कितना प्रभाव पड़ता है। लोग बस जल्दी से जल्दी अपने गृहस्थ जीवन की स्थापना करने के बारे में सोचने लगते है और इसके फलस्वरूप बाल विवाह आज भी समाज के कई हिस्सों में देखने को मिल जाता है।
निर्धनता
विवाह में अधिक खर्च आता है, जिससे बचने के लिए कई परिवार वाले अपने बच्चों का बाल विवाह कर देते है। घर में एक शादी तय होती है तो, मां-बाप सोचते हैं कि इसी के साथ दूसरे बच्चे की शादी कर दी जाए। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता है कि बच्चों की आयु क्या है। इस तरह, माता-पिता को प्रति विवाह खर्च न्यूनतम मिलता है।
परंपरा
पहले के समय में लोग कई कारणों से बाल विवाह कर दिया करते थे, जिसे आज के समय में जारी रखना गलत है, लेकिन कुछ लोगों ने इसे एक परंपरा बना दिया है। कई हिस्सों में बाल विवाह सिर्फ इसलिए कराया जाता है, क्योंकि उनका कहना होता है कि बरसों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी उनके यहां बाल विवाह का प्रचलन रहा है।
कई जगह माना जाता है कि लड़कियों का मासिक धर्म शुरू होने के बाद यदि उनका विवाह किया जाता है तो, इससे मां-बाप को पुण्य नहीं मिलता है, क्योंकि लड़कियां अशुद्ध हो जाती है। ऐसे में मां-बाप कम उम्र में ही लड़की की शादी कर देते हैं, फिर चाहे उसे अपने साथ अपने घर में ही रखे। वहीं, देश के कई हिस्सों में देखा गया है कि जब लड़कियों को मासिक चक्र शुरू होता है तो, वह समुदाय के लिए महिला बन जाती है। ऐसे में कम उम्र में ही उनका विवाह कर उन्हें एक पत्नी और मां का दर्जा दे दिया जाता है।
संयुक्त परिवार
अक्सर देखा गया है कि संयुक्त परिवार भी बाल विवाह ज्यादा होते हैं। दरअसल, इन लोगों का मानना है कि शादी सिर्फ लड़का-लड़की नहीं, बल्कि दो परिवारों और पीढ़ियों का मिलन होता है। कई परिवार चाहते हैं कि वो अपनी पूरानी दोस्ती को बरकरार रखे और दोनों परिवारों के बीच रिश्तेदारी स्थापित करें, जिसके लिए वो अपने घर के बच्चों की शादी बचपन में ही तय कर देते हैं और किशोरावस्था होते ही उनका विवाह कर देते है।
कई बार देखा गया है कि घर के बड़े-बुजुर्ग कहते ही कि वो अपने घर के बच्चों की शादी देख लें और उसके बाद चाहे उनकी मृत्यु हो जाए, जिसके नतीजतन, किशोरावस्था में ही बच्चों के हाथ पीले कर दिए जाते हैं।
कौमार्य भंग होने का डर
देश के कई पिछड़े इलाकों में आज भी मां-बाप अपनी लड़की से ही अपनी इज्जत जोड़ कर चलते हैं। उनका मानना है कि लड़की की इज्जत से ही उनकी इज्जत बनी रहेगी। ऐसे में उन्हें हमेशा इस बात का भय रहता है कि कहीं उनकी लड़की किशोरावस्था में प्रवेश करने के बाद किसी गलत रास्ते पर न चली जाए और इससे भय से निकलने के लिए उन्हें शादी ही एकमात्र रास्ता नजर आता है। केवल इस भय के कारण मां-बाप अनजाने में अपनी बच्ची को जीवन भर का उत्पीड़न झेलने पर मजबूर कर देते हैं।
क्या है बाल विवाह का दुष्परिणाम? (What Are The Effects Of Child Marriage)
अधिकारों से वंचित
बाल विवाह का सबसे बड़ा प्रभाव यह होता है, कि इससे लड़कियों अपने अधिकारों से वंचित रह जाती है। जल्दी शादी होने के कारण महिलाओ को कम उम्र में अपने सारे सपनों को पीछे छोड़कर घर के काम सीखने को मजबूर हो जाती हैं। ऐसे में लड़के और लड़कियों पर कई तरह की जिम्मेदारी डाल दी जाती हैं, जिसके लिए वो तैयार नहीं होते और इसके कारण उनका मानसिक एवं भावनात्मक विकास नहीं हो पाता है।
शारीरिक दुष्प्रभाव
छोटी उम्र में लड़कियों का विवाह कर दिया जाता हैं, तो इससे वे की तरह की बीमारी का शिकार हो सकती हैं। कई मामलों में देखा गया है कि कम उम्र में विवाह होने के कारण वे कम उम्र में ही गर्भवती भी हो जाती हैं, ऐसे समय में उन्हें अपने शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में थोड़ी भी समझ नहीं होती है। कई बार तो प्रसव के दौरान कमजोरी होने के कारण लड़कियों की मृत्यु भी हो जाती है।
कम उम्र में मां बनने के कारण गर्भ में उनके बच्चों का भी पूर्ण रूप से विकास नहीं हो पाता है। इससे बच्चे भी कुपोषित पैदा होते हैं या फिर गर्भ में ही किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो जाते हैं। बाल विवाह के कारण शिशु मृत्यु दर में भी तेजी देखने को मिलती है, क्योंकि मां का शरीर बच्चे को जन्म देने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हुआ रहता है।
तलाक में वृद्धि
अक्सर देखा गया है कि बाल विवाह होने के कारण लड़कियां अशिक्षित रह जाती है और समाज में हो रही घटनाओं को ठीक से समझने में भी असक्षम रह जाती हैं। वहीं दूसरी ओर, शादी के बाद भी लड़के पढ़ते-लिखते हैं और लोगों से मिलते हैं। ऐसे में पुरुष सही समय पर अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं और अपना एक समाज बना लेते हैं। जब लड़के बाहर निकलने लगते हैं और लोगों से मिलने लगते हैं तो, उन्हें अनपढ़ या कम पढ़ी-लिखी दुल्हन के साथ सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाई होती है।
ऐसी परिस्थिति में या तो लड़के शादी होने के बाद भी अपने रिश्ते के प्रति बिल्कुल जिम्मेदार नहीं रहना चाहते हैं या फिर तलाक लेकर अपने पसंद की लड़की से शादी कर लेते हैं। बाल विवाह के कारण आज भी कोर्ट में ऐसे कई मामले सामने आते हैं, जिसमें पुरुषों का कहना है कि बचपन की नासमझी में उनकी शादी की गई है और लड़की उनके पसंद की नहीं है।
कम उम्र में विधवा होने का डर
बाल विवाह के कारण लड़कियों को कम उम्र में विधवा होते हुए भी देखा गया है। कई बार तो उन लड़कियों का पुनर्विवाह कर दिया जाता है, लेकिन कई जगह उन्हें जिंदगी भर के बेजान जिंदगी जीने पर मजबूर कर दिया जाता है। ऐसा भी देखा गया है कि अगर उनका पुनर्विवाह हो भी जाता है तो, वो एक बेमेल विवाह होता है, जो जिंदगी भर के लिए अभिशाप बन जाता है।
बाल विवाह को लेकर भारत का कानून
बाल विवाह अधिनियम 1929
बाल विवाह के खिलाफ सबसे पहले सन 1929 में कानून बनाया गया था, जिसे 1930 में अप्रैल माह की पहली तारीख को पूरे देश में लागू किया गया था। हालांकि, उस समय इसे सिर्फ बाल विवाह के दुष्प्रभावों को खत्म करने के लिए ही शुरू किया गया था। इस कानून के अंतर्गत निम्न नियम लागू किये गये थे –
- इस कानून के तहत विवाह के लिए पुरुष की न्यूनतम आयु 21 वर्ष एवं महिलाओं की न्यूनतम आयु 18 वर्ष तय की गई थी।
- 18 से 21 से कम आयु के लड़के की नाबालिग से शादी होने पर पुरुष को 15 दिन की सजा एवं 1000 रुपये का जुर्माना देना होता था।
- 21 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों द्वारा नाबालिग लड़की के साथ विवाह करने पर पुरुष को, बाल विवाह को आयोजित करने वाले लोगों को और लड़के एवं लड़की के अभिभावकों को 3 महीने की जेल की सजा और कुछ निश्चित किया हुआ जुर्माना देना होता था
बाल विवाह अधिनियम 2006
इसके बाद इस अधिनियम में समय के अनुसार संशोधन किया गया। भारत सरकार ने 2006 में बाल विवाह निषेध अधिनियम बनाया था, जिसे 1 नवंबर, 2007 को लागू किया गया। इस अधिनियम को लागू करने का उद्देश्य बाल विवाह को पूरी तरह से खत्म करना था। सन 2006 के अधिनियम के अनुसार इसमें आयु सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया, लेकिन इसमें बच्चों की सुरक्षा को लेकर कुछ बदलाव किये गये थे।
- इस कानून के तहत बाल विवाह के लिए मजबूर किये गये नाबालिग लड़कों एवं लड़कियों को उनके वयस्क होने के बाद 2 साल तक अपनी शादी तोड़ने का विकल्प दिया जाता है।
- शादी टूट जाने के बाद लड़के पक्ष को बाल विवाह के दौरान लड़की पक्ष की ओर से मिले सभी कीमती सामान, पैसा और उपहार वापस करने होते हैं। इसके साथ ही, जब तक लड़की की दूसरी शादी नहीं हो जाती या वो कमाने नहीं लग जाती, तब तक रहने के लिए घर देना होता है।
- इस संशोधन के बाद, यदि कोई बालिग पुरुष नाबालिग लड़की से विवाह करता है तो , उसे 3 महीने की जगह 2 साल की सजा दी जाती है। साथ ही, कुछ जुर्माना भी लगाया गया जाता है।