Uttarakhand Tunnel Collapse: 9 साल पहले 'रैट होल माइनिंग' पर लगा था बैन, वही विधि बनी संजीवनी; 'मिशन 41' में मिली कामयाबी
Uttarkashi Tunnel Collapse रैट होल माइनिंग तकनीक के जरिए सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने की कोशिश कामयाब हो गई है। मजदूर सुरंग में करीब 60 मीटर की दूरी पर फंसे हुए थे जिन्हें बाहर निकाला जा रहा है। ऑगर मशीन ने 48 मीटर तक ड्रिलिंग की थी। इसके बाद रैट माइनिंग में माहिर टीम ने जिम्मा उठाया था।
By Shalini KumariEdited By: Shalini KumariUpdated: Tue, 28 Nov 2023 02:50 PM (IST)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। Uttarakhand Tunnel Accident: उत्तरकाशी टनल हादसे को आज 17 दिन पूरे हो चुके हैं, जिस पर पूरे देश की नजर टिकी हुई है। दरअसल, दिवाली के दिन हुए हादसे के बाद से लगातार टनल में फंसे 41 मजदूरों को बचाने की जंग जारी थी। बीते दिनों में हर तरह की तकनीक और मशीनों का इस्तेमाल किया गया, लेकिन अब तक सफलता नहीं मिल पाई थी।
हाल ही में 46.8 मीटर तक ड्रिल करने के बाद अमेरिका निर्मित बरमा मशीन के कुछ हिस्से मलबे में फंस गए। जिसके बाद अधिकारियों को रैट होल ड्रिलिंग का ही सहारा दिखा। अंत में रैट होल माइनिंग तकनीक अपनाने का फैसला लिया गया, जिसके बाद कुछ जांबाजों को तैयार किया गया था। अब तक इन रैट माइनर्स की कड़ी मेहनत और देश की प्रार्थना के बाद मिशन पूरा हो चुका है।
ऐसे में आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि आखिर यह कौन-सी तकनीक है, जिसको सभी मशीनों के फेल होने के बाद अपनाने का फैसला लिया गया। इस खबर में हम आपको रैट होल ड्रिलिंग से जुड़े सभी सवालों के जवाब देंगे।
क्या होता है रैट होल माइनिंग? (Rat Hole Mining)
सिल्क्यारा सुरंग में सभी मशीनों द्वारा खुदाई होने के बाद अब हॉरिजॉन्टल खुदाई करने का फैसला किया गया, जो कि मैनुअल विधि से पूरी की गई। दरअसल, इसके लिए सुरंग बनाने वाले कुशल कारीगरों की जरूरत होती है। इन कारीगरों को रैट माइनर्स कहा जाता है।रैट होल माइनर्स को संकीर्ण सुरंग बनाने के लिए तैयार किया जाता है। इनका काम मेघालय जैसे इलाकों में कोयला निकालने के लिए किया जाता है। यह माइनर्स हॉरिजॉन्टल सुरंगों में सैकड़ों फीट तक आसानी से नीचे चले जाते हैं।दरअसल, आमतौर पर एक व्यक्ति के लिए पर्याप्त गड्ढा खोदा जाता है। एक बार गड्ढा खोदे जाने के बाद माइनर रस्सी या बांस की सीढ़ियों के सहारे सुरंग के अंदर जाते हैं और फिर फावड़ा और टोकरियों जैसे उपकरणों के माध्यम से मैनुअली सामान को बाहर निकालते हैं। इस प्रॉसेस का सबसे ज्यादा इस्तेमाल मेघालय के कोयला खदान में किया जाता है।