Electoral Bonds: सात साल पहले आया था 'चुनावी बॉन्ड', 2017 से 11 मार्च तक की पूरी टाइमलाइन यहां पढ़ें
2017 में मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई एक प्रणाली के तहत लोगों और कॉर्पोरेट समूहों को चुनावी बांड नामक वित्तीय साधनों के माध्यम से गुमनाम रूप से किसी भी राजनीतिक दल को असीमित मात्रा में धन दान करने की अनुमति दी गई थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 30 जून तक समय बढ़ाने की मांग करने वाली भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की याचिका खारिज कर दी है।
पीटीआई, नई दिल्ली। Electoral Bonds Case: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 30 जून तक समय बढ़ाने की मांग करने वाली भारतीय स्टेट बैंक की याचिका खारिज कर दी है। शीर्ष अदालत ने एसबीआई को चुनाव आयोग को चुनावी बांड के जानकारी पेश करने के लिए 12 मार्च यानी कल का समय दिया है। आखिर क्या है चुनावी बांड और 2017 के बाद इसमें क्या-क्या बड़े मामले सामने आए? आइये जान लेते है इसका पूरा टाइमलाइन।
क्या है चुनावी बांड?
2017 में मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई एक प्रणाली के तहत, लोगों और कॉर्पोरेट समूहों को 'चुनावी बांड' नामक वित्तीय साधनों के माध्यम से गुमनाम रूप से किसी भी राजनीतिक दल को असीमित मात्रा में धन दान करने की अनुमति दी गई थी।
यहां देखें पूरा टाइमलाइन
- वर्ष 2017 में वित्त विधेयक में चुनावी बांड योजना पेश की गई। 14 सितंबर, 2017 को मुख्य याचिकाकर्ता एनजीओ 'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' ने योजना को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। 3 अक्टूबर, 2017 को SC ने एनजीओ द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्र और EC को नोटिस जारी किया।
- 2 जनवरी, 2018 में केंद्र सरकार ने चुनावी बांड योजना को अधिसूचित किया। 7 नवंबर, 2022 को एक वर्ष में बिक्री के दिनों को 70 से बढ़ाकर 85 करने के लिए चुनावी बांड योजना में संशोधन किया गया। 16 अक्टूबर, 2023 को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एससी बेंच ने योजना के खिलाफ याचिकाओं को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजा।
- 31 अक्टूबर, 2023 को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने योजना के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। 2 नवंबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा।
- 15 फरवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना को रद्द करते हुए सर्वसम्मति से फैसला सुनाया और कहा कि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार के साथ-साथ सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है। 4 मार्च को भारतीय स्टेट बैंक ने राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए प्रत्येक चुनावी बांड के विवरण का खुलासा करने के लिए 30 जून तक समय बढ़ाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
- 7 मार्च को एसबीआई के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसने 6 मार्च तक चुनावी बांड के माध्यम से राजनीतिक दलों को किए गए योगदान का विवरण प्रस्तुत करने के शीर्ष अदालत के निर्देश की जानबूझकर अवज्ञा की।
- 11 मार्च यानी आज उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने समय बढ़ाने की मांग करने वाली एसबीआई की याचिका खारिज कर दी और उसे 12 मार्च को कामकाजी समय समाप्त होने तक चुनाव आयोग को चुनावी बांड का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।