विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस क्यों मनाया जाता है, इसकी शुरुआत कब हुई; पढ़ें हर सवाल का जवाब
ऐसा भी क्या खास था हमारे हिस्से की जमीन में जिसे हासिल करने के लिए हमसे हमारा सब छिन गया... यह कहना है उन लाखों शरणार्थियों का जिन्हें आजादी की कीमत अपना सबकुछ लुटाकर चुकानी पड़ी। भारत के लिए विभाजन किसी विभीषिका से कम नहीं थी। इसलिए पीएम मोदी ने हर साल 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस (Partition Horrors Remembrance Day) के रूप में मनाने की शुरुआत की।
Partition Horrors Remembrance Day: कभी पटरियों पर ख्वाब दौड़ाने के सपने थे, पटरियों ने ही ख्वाब का जहां छीन लिया... जी हां, यह दर्द भरी आवाज है उन लाखों विस्थापितों की, जिन्हें विभाजन का दंश झेलना पड़ा और अपनी मातृभूमि को छोड़कर जाना पड़ा। अंग्रेजों की मंशा थी कि भारत के दो टुकड़े कर दिए जाएं। वे अपनी मंशा में कामयाब भी रहे। भारत के दो टुकड़े हो गए और पाकिस्तान नाम के दूसरे देश का जन्म हुआ।
आजादी की चुकानी पड़ी कीमत
14 अगस्त 1947... यह वह तारीख है, जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकता। एक तरफ देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्ति मिल रही थी तो दूसरी तरफ इसकी कीमत देश के विभाजन के रूप में मिल रही थी। विभाजन के परिणामस्वरूप लाखों लोग बेघर हो गए। उन्हें रातों-रात पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा। कई लोग तो ऐसे भी रहे, जिन्हें आजादी की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाने की शुरुआत कब हुई?
भारत के लिए यह विभाजन किसी विभीषिका से कम नहीं थी। इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने 14 अगस्त 2021 को यह एलान किया कि हर साल अब 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस (Partition Horrors Remembrance Day) के रूप में मनाया जाएगा।
पलायन की दर्दनाक कहानी है भारत का विभाजन
- भारत का विभाजन अभूतपूर्व मानव विस्थापन और मजबूरी में पलायन की दर्दनाक कहानी है।
- यह एक ऐसी कहानी है, जिसमें लाखों लोग अजनबियों के बीच एकदम विपरीत वातावरण में नया आशियाना तलाश रहे थे।
- विभाजन के बाद लगभग 60 लाख गैर-मुसलमान उस क्षेत्र से निकल आए, जो बाद में पश्चिमी पाकिस्तान बन गया।
- विभाजन के समय 65 लाख मुसलमान पंजाब और दिल्ली आदि के भारतीय हिस्सों से पश्चिमी पाकिस्तान चले गए थे।
- 20 लाख गैर-मुसलमान पूर्वी बंगाल, जो बाद में पूर्वी पाकिस्तान बना, से निकलकर पश्चिम बंगाल आए।
- 1950 में 20 लाख और गैर-मुसलमान पश्चिम बंगाल आए।
- दस लाख मुसलमान पश्चिम बंगाल से पूर्वी पाकिस्तान चले गए।
- विभाजन की विभीषिका में मारे गए लोगों को आंकड़ा पांच लाख बताया जाता है, लेकिन अनुमानित आंकड़ा पांच से 10 लाख के बीच है।
नए सिरे से शुरू करनी पड़ी जिंदगी
विभाजन के बाद लाखों शरणार्थी उन प्रांतों और शहरों में चले गए, जहां से उनका पहले से कोई संबंध नहीं था। वहां की भाषा, संस्कृति सब अलग थी। ऐसे में शरणार्थियों को अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करनी पड़ी।
बरसों खेती की है, पर आज रोटी देखकर आंसू आ गए।
विभाजन के बाद लाखों अल्पसंख्यकों ने छोड़ा सिंध
भारत के विभाजन के दौरान सिंध के अल्पसंख्यकों (हिंदू और सिख) को विकराल और भयावह त्रासदी सहनी पड़ी। उस समय का कड़वा अनुभव आज भी उनके जेहन में जिंदा है। 17 दिसंबर 1947 को सिंध के हैदराबाद और छह जनवरी 1948 को राजधानी कराची में हुए दंगों से अल्पसंख्यक इस कदर भयभीत हुए कि नवंबर 1947 तक ढाई लाख, जनवरी 1948 तक चार लाख 78 हजार और जून 1948 तक 10 लाख से अधिक लोगों ने सिंध छोड़ दिया।
सिंध से आने वाले कुछ लोगों ने कराची और मुंबई (तब बंबई) के बीच अपना सफर पानी के जहाज से तय किया था। भारत सरकार ने शरणार्थियों की आवाजाही के लिए नौ स्टीमर लगाए थे।
दर्द खूब दिखा होगा उन बेबस आंखों में, जो अपने आबाद आशियाने को बिखरा देख मरहम लगाने चल पड़े।
ट्रेन में आती थीं लाशें
विभाजन के समय लोगों ने रेलगाड़ियों का भी व्यापक रूप से उपयोग किया था। ऐसी कई डरावनी कहानियां भी हैं, जब ट्रेन अपने गंतव्य तक पहुंचती थी तो केवल लाशें और घायल लोग ही बचते थे। भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी सहमति से रेल सुविधा को जारी रखा गया था। हर दिन पांच-छह ट्रेनें दोनों ओर से चलती थीं।
विभाजन के दौरान महिलाओं की स्थिति कैसी रही?
देश के विभाजन के दौरान सबसे अधिक पीड़ा महिलाओं को उठानी पड़ी। उनका अपहरण कर लिया और उनके साथ दुष्कर्म किया गया। कुछ महिलाओं को अपना धर्म बदलने और शायद अपने परिवार का वध करने वाले लोगों से शादी करने के लिए मजबूर किया गया। सबसे दर्दनाक बात तो यह है कि परिवार के सदस्य ही अपने सम्मान के लिए उनको जान से मार डालते थे।
भारत सरकार ने केवल 33 हजार महिलाओं के अपहरण की सूचना दी, जबकि पाकिस्तान सरकार ने 50 हजार महिलाओं के अपहरण का अनुमान लगाया। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था, ''अशांति के काल में स्त्री का अपहरण बहुत बड़ा पाप था, लेकिन शांति स्थापित होने पर भी उस स्त्री का पुनर्वास न हो पाना कहीं अधिक बड़ा पाप था।''
पलायन करने वाले लोगों की स्थिति कैसी थी?
विभाजन के बाद पलायन कर रहे लोगों को न सिर्फ प्रचंड गर्मी झेलनी पड़ी, बल्कि मूसलाधार बारिश में भी मीलों-मील पैदल चलना पड़ा। लोगों का काफिला जिन गांवों से गुजरता था, वहां के लोग भी उनके साथ जुड़ जाते थे। उनका काफिला करीब 10 मील से लेकर 27 मील तक हुआ करती थी।
भुखमरी और थकावट से लोगों ने तोड़ा दम
कुछ लोग ट्रक, तांगो और बैलगाड़ियों से भी पलायन कर रहे थे। बंगाल में लोगों ने नाव का इस्तेमाल भी किया। लोगों पर हमले भी हो रहे थे, लेकिन उन्होंने चलना जारी रखा। वे बिना आश्रय, स्वच्छता, भोजन या पानी के बिना चलते रहे। इस दौरान कई लोगों ने थकावट, भुखमरी और बीमारी के चलते दम तोड़ दिया।
(विभाजन के दौरान श्रवण कुमार जैसे लोग भी देखने को मिले)
पश्चिम बंगाल सरकार ने चटगांव, नारायणगंज, बारीसाल और चांदपुर से शरणार्थियों को कोलकाता (तब कलकत्ता) लाने के लिए 15 स्टीमरों की व्यवस्था की थी। जिन अन्य तरीकों से शरणार्थियों ने बंगाल की सीमा पार की, उनमें बंगाल में चलने वाली ट्रेनों के साथ खुलना-गोलैंडो यात्री ट्रेन भी थी।
जहां जीवन की हर सुबह मुस्कान से पुलकित हो उठती थी, वहां का मंजर देख आंसू भी खून हो गए।
देश का बंटवारा कैसे हुआ?
देश के बंटवारे की नींव 20 फरवरी 1947 को ही पड़ गई थी, जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने हाउस ऑफ कॉमन्स में घोषणा की थी सरकार 30 जून 1948 से पहले सत्ता भारतीयों को सौंप देगी। हालांकि, लॉर्ड माउंटबेटन ने इस पूरी प्रक्रिया को एक साल पहले ही पूरा कर लिया। माउंटबेटन लंदन से सत्ता हस्तांतरण की मंजूरी लेकर 31 मई 1947 को लंदन से नई दिल्ली लौटे थे। इसके बाद दो जून 1947 को ऐतिहासिक बैठक हुई, जिसमें भारत के विभाजन पर मोटे तौर पर सहमति बनी।
(दो जून 1947 की बैठक के दौरान जिन्ना, लियाकत अली, सरदार पटेल और पंडित नेहरू)
मुस्लिम लीग की बैठक में क्या हुआ?
भारत के विभाजन का फैसला एक पूर्व शर्त की तरह था। भारत जैसे देश का विभाजन धार्मिक आधार पर किए जाने के विचार का व्यापक विरोध हुआ। कहा जाता है कि वे ही नेता विभाजन के लिए तैयार हुए, जिन्हें इसमें उनका हित और उज्ज्वल भविष्य दिख रहा था।
...और फिर चार जून 1947 की प्रेस कॉन्फ्रेंस
माउंटबेटन ने चार जून 1947 को ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। इस दौरान उन्होंने एक साल पहले ही सत्ता भारत को सौंपने की घोषणा की, जिसके बाद कई सवाल पूछे जाने लगे। इनमें से सबसे बड़ा सवाल लोगों के पलायन का था। माउंटबेटन ने 14/15 अगस्त को स्वतंत्रता की तारीख के रूप में घोषित किया। यह अचानक लिया गया निर्णय था। इस पर अमल लाने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा 18 जुलाई को भारत का स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया गया था।
(फोटो- वायसराय माउंटबेटन के साथ जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, लियाकत अली और मोहम्मद अली जिन्ना)
माउंटबेटन की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद नौ जून 1947 को नई दिल्ली के इंपीरियल होटल में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की बैठक हुई। इमसें विभाजन की मांग वाला प्रस्ताव लगभग सर्वसम्मति से पारित हो गया। पक्ष में 300 तो विरोध में मात्र 10 वोट पड़े।
भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा की लकीरें किसने खींची?
भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा का निर्धारण करने के लिए माउंटबेटन ने जून 1947 में सर सिरिल रैडक्लिफ को भारत बुलाया। इससे पहले वे कभी भारत नहीं आए थे। माउंटबेटन ने रैडक्लिफ से बंगाल और पंजाब के लिए सीमा निर्धारित करने का काम सौंपा। वे आठ जुलाई को भारत आए और 12 अगस्त तक अपनी रिपोर्ट पूरी कर ली।
हिंसा और दंगे की कैसे हुई शुरुआत?
दरअसल, चार मार्च 1947 को पुलिस ने हिंदुओं और सिखों के एक जुलूस पर हमला कर दिया और गोली चला दी, जिससे 125 छात्र गंभीर रूप से घायल हो गए, जबकि 10 छात्रों की मौत हो गई। ये सभी छात्र डीएवी कॉलेज लाहौर के थे। इसके बाद छह मार्च की सुबह तक जालंधर, अमृतसर, रावलपिंडी, मुल्तान और सियालकोट समेत पंजाब के मुख्य शहर में दंगा की चपेट में आ गए।
दर्द खूब दिखा होगा उन बेबस आंखों में, जो अपने आबाद आशियाने को बिखरा देख मरहम लगाने चल पड़े।
विस्थापन का दर्द झेलने वाले लाखों भारतवासियों को शत-शत नमन
विभाजन का दर्द आज भी लोगों को है। वे भगवान से प्रार्थना करते हैं कि 14 अगस्त 1947 का दिन अब किसी भारतवासी को न देखना पड़े। विभाजन ने कई लोगों की जिंदगी ली, कई महिलाओं की आबरू लूट ली गई है। कई लोग तो भुखमरी से मर गए। विभाजन की विभीषिका में अपने प्राण गंवाने वाले और विस्थापन का दर्द झेलने वाले लाखों भारतवासियों को शत-शत नमन!
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस भारत के विभाजन के समय जान गंवाने वाले लाखों विस्थापितों की याद में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरुआत 2021 से हुई।
भारत को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली। पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने।
भारत इस साल 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। भारत को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली थी।