PMLA एक्ट क्या है? बदलते वक्त के साथ कड़ा होता गया यह कानून, सभी सरकारों ने संशोधन कर मजबूत करने का किया काम
हेमंत सोरेन के बाद अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से कठोर पीएमएलए कानून ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों के दुरुपयोग के विपक्ष दलों के आरोप का स्वर तेज हो गया है। सबसे अधिक निशाने पर ईडी और उसका पीएमएलए कानून है। विपक्ष का आरोप है कि मोदी सरकार ने पीएमएलए को इतना कड़ा कानून सिर्फ विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए किया है।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। हेमंत सोरेन के बाद अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से कठोर पीएमएलए कानून, ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों के दुरुपयोग के विपक्ष दलों के आरोप का स्वर तेज हो गया है। सबसे अधिक निशाने पर ईडी और उसका पीएमएलए कानून है।
विपक्ष का आरोप है कि मोदी सरकार ने पीएमएलए को इतना कड़ा कानून सिर्फ विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए किया है, जबकि सच्चाई यह है कि अटल वाजपेयी सरकार के दौरान 2002 में बनाया गया पीएमएलए कानून मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के दौरान जुलाई 2005 में लागू हुआ। पीएमएलए कानून के जिन प्रविधानों की चुभन विपक्षी नेताओं को रही है, उन्हें संशोधित कर धारदार बनाने का काम भी 2009 और 2012 में यूपीए सरकार के दौरान किया गया।
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पीएमएलए के कठोर कानून के पहले शिकार राजनीतिज्ञ अक्टूबर 2009 में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोडा बने और उनके साथ कई मंत्रियों पर इसका शिकंजा कसा। 2010 के बाद 2जी घोटाले और कोयला खनन घोटाले समेत तमाम घोटालों में आरोपियों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का शिकंजा कसा। पीएमएलए कानून के तहत ए. राजा समेत तमाम बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद तत्कालीन वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने 2012 में संशोधन कर इसे और भी कड़ा बना दिया और इसके आयाम को और बड़ा कर दिया।
2022 में पीएमएलए के खिलाफ दाखिल याचिकाओं को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पी. चिदंबरम के 2012 में संसद में दिये बयान का भी हवाला दिया था। मजेदार बात यह है कि इन याचिकाकर्ताओं में पी. चिदंबरम के बेटे और कांग्रेस के सांसद कार्ति चिदंबरम भी शामिल थे। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 1999 में वाजपेयी सरकार में तत्कालीन वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा के संसद में दिये बयान का भी हवाला दिया, जिसमें पहली बार उन्होंने कालेधन पर लगाम लगाने के लिए पीएमएलए कानून की जरूरत बताई थी और 2002 में यह कानून पास भी किया गया था।
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शुरूआत में इस कानून में आतंकी फंडिंग, तस्करी और वाइल्ड लाइफ से जुड़े मामले शामिल थे। 2005 में इसे लागू करने के बाद सभी बैंकिंग व वित्तीय संस्थाओं के लिए संदिग्ध लेन-देन की रिपोर्ट फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट (एफआईयू) को भेजना अनिवार्य कर दिया गया, ताकि बैंकिंग चैनल पर नजर रखा जा सके। 2009 में किये गए संसोधनों में भ्रष्टाचार निरोधक कानून जैसे कई कानूनों को पीएमएलए के दायरे में ला दिया गया और ईडी को आरोपियों की संपत्ति को जब्त करने और उन्हें गिरफ्तार करने के अधिकार दिये गए। 2012 में 28 कानूनों के तहत दर्ज केस में ईडी को पीएमएलए के तहत जांच करने का अधिकार दे दिया गया, जबकि पहले सिर्फ छह कानूनों में ईडी को यह दिया गया था। पी. चिदंबरम ने न सिर्फ पीएमएलए कानून को धारदार बनाया, बल्कि ईडी के मजबूत बनाने की भी नींव रखी। 2010 तक पूरे देश में ईडी में कर्मचारियों और अधिकारियों की लगभग 600 पद थे। उनमें भी लगभग आधे खाली रहते थे। यानी बड़े पैमाने पर मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों की जांच के लिए जरूरी संसाधन ईडी के पास नहीं थे। पी. चिदंबरम ने वित्त मंत्री रहते हुए ईडी में स्वीकृत पदों की संख्या लगभग चार गुना बढ़ाते हुए 2200 से अधिक कर दिया। अधिकारियों व कर्मचारियों की इतनी बड़ी फौज के साथ ईडी पूरे देश में एक साथ कई मामलों की जांच करने में सक्षम बन सका है। पीएमएलए के कड़े प्रविधानों के लिए किसी सरकार को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं होगा। अर्थव्यवस्था में कालेधन का इस्तेमाल रोकने के लिए बनाए गए कई देशों के संगठन फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) में भागीदारी और उसके सुझावों के अनुरूप पीएमएलए को कानून को यूपीए और एनडीए सभी सरकारों ने कठोर बनाने का काम किया है। भारत में पीएमएलए को उद्भव के लिए यह जानना जरूरी है कि 1998 में भारत पहली बार एफएटीएफ के एशिया सब रिजनल ग्रुप का सदस्य बना और इसी कारण तत्कालीन वाजपेयी सरकार को नया पीएमएलए कानून लाना पड़ा। एक जुलाई 2005 में यूपीए सरकार द्वारा पीएमएलए को लागू करने के बाद 2006 में भारत को एफएटीएफ को एक आवजर्वर के रूप में आमंत्रित किया गया था। इसके बाद एफटीएफ ने भारत को सदस्यता देने के लिए तैयार हुआ, लेकिन उसके पहले पीएमएलए कानूनों को मजबूत करने की दरकार थी, जिसे यूपीए सरकार ने 2009 में कानून में संशोधन कर पूरा किया। इन संशोधनों के बाद 2010 में भारत को एफएटीएफ का 34वां सदस्य बना था और एफएटीएफ की टीम भारत में मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के कानून और प्रणाली की समीक्षा के लिए भारत आया। एफएटीएफ टीम की समीक्षा के बाद दिये सुझावों के आधार पर ही 2012 में पी. चिदंबरम ने पीएमएलए में संशोधन कर उसे और कठोर बनाते हुए दायरा भी बढ़ा दिया था। अक्टूबर और फरवरी में साल में दो बार एफएटीएफ के सदस्यों की बड़ी बैठक होती है, जिनमें कालेधन रोकने के लिए किये गए उपायों की समीक्षा और नए उपायों की जरूरत पर चर्चा होती है और उसमें लिए गए फैसलों के अनुरूप सदस्य देशों को अपने कानून में संशोधन करना पड़ता है। 2023 में एफएटीएफ की टीम भारत की समीक्षा करने आया था और उसके पहले पीएमएलए कानून में कुछ संशोधन भी किये गए थे। इसमें किसी अन्य देश में सरकार में शामिल व्यक्ति के भारत के किसी भी देशी या विदेशी कंपनी में अहम पद पर होने की जानकारी देना अनिवार्य कर दिया गया।
शुरूआत में इस कानून में आतंकी फंडिंग, तस्करी और वाइल्ड लाइफ से जुड़े मामले शामिल थे। 2005 में इसे लागू करने के बाद सभी बैंकिंग व वित्तीय संस्थाओं के लिए संदिग्ध लेन-देन की रिपोर्ट फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट (एफआईयू) को भेजना अनिवार्य कर दिया गया, ताकि बैंकिंग चैनल पर नजर रखा जा सके। 2009 में किये गए संसोधनों में भ्रष्टाचार निरोधक कानून जैसे कई कानूनों को पीएमएलए के दायरे में ला दिया गया और ईडी को आरोपियों की संपत्ति को जब्त करने और उन्हें गिरफ्तार करने के अधिकार दिये गए। 2012 में 28 कानूनों के तहत दर्ज केस में ईडी को पीएमएलए के तहत जांच करने का अधिकार दे दिया गया, जबकि पहले सिर्फ छह कानूनों में ईडी को यह दिया गया था। पी. चिदंबरम ने न सिर्फ पीएमएलए कानून को धारदार बनाया, बल्कि ईडी के मजबूत बनाने की भी नींव रखी। 2010 तक पूरे देश में ईडी में कर्मचारियों और अधिकारियों की लगभग 600 पद थे। उनमें भी लगभग आधे खाली रहते थे। यानी बड़े पैमाने पर मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों की जांच के लिए जरूरी संसाधन ईडी के पास नहीं थे। पी. चिदंबरम ने वित्त मंत्री रहते हुए ईडी में स्वीकृत पदों की संख्या लगभग चार गुना बढ़ाते हुए 2200 से अधिक कर दिया। अधिकारियों व कर्मचारियों की इतनी बड़ी फौज के साथ ईडी पूरे देश में एक साथ कई मामलों की जांच करने में सक्षम बन सका है। पीएमएलए के कड़े प्रविधानों के लिए किसी सरकार को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं होगा। अर्थव्यवस्था में कालेधन का इस्तेमाल रोकने के लिए बनाए गए कई देशों के संगठन फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) में भागीदारी और उसके सुझावों के अनुरूप पीएमएलए को कानून को यूपीए और एनडीए सभी सरकारों ने कठोर बनाने का काम किया है। भारत में पीएमएलए को उद्भव के लिए यह जानना जरूरी है कि 1998 में भारत पहली बार एफएटीएफ के एशिया सब रिजनल ग्रुप का सदस्य बना और इसी कारण तत्कालीन वाजपेयी सरकार को नया पीएमएलए कानून लाना पड़ा। एक जुलाई 2005 में यूपीए सरकार द्वारा पीएमएलए को लागू करने के बाद 2006 में भारत को एफएटीएफ को एक आवजर्वर के रूप में आमंत्रित किया गया था। इसके बाद एफटीएफ ने भारत को सदस्यता देने के लिए तैयार हुआ, लेकिन उसके पहले पीएमएलए कानूनों को मजबूत करने की दरकार थी, जिसे यूपीए सरकार ने 2009 में कानून में संशोधन कर पूरा किया। इन संशोधनों के बाद 2010 में भारत को एफएटीएफ का 34वां सदस्य बना था और एफएटीएफ की टीम भारत में मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के कानून और प्रणाली की समीक्षा के लिए भारत आया। एफएटीएफ टीम की समीक्षा के बाद दिये सुझावों के आधार पर ही 2012 में पी. चिदंबरम ने पीएमएलए में संशोधन कर उसे और कठोर बनाते हुए दायरा भी बढ़ा दिया था। अक्टूबर और फरवरी में साल में दो बार एफएटीएफ के सदस्यों की बड़ी बैठक होती है, जिनमें कालेधन रोकने के लिए किये गए उपायों की समीक्षा और नए उपायों की जरूरत पर चर्चा होती है और उसमें लिए गए फैसलों के अनुरूप सदस्य देशों को अपने कानून में संशोधन करना पड़ता है। 2023 में एफएटीएफ की टीम भारत की समीक्षा करने आया था और उसके पहले पीएमएलए कानून में कुछ संशोधन भी किये गए थे। इसमें किसी अन्य देश में सरकार में शामिल व्यक्ति के भारत के किसी भी देशी या विदेशी कंपनी में अहम पद पर होने की जानकारी देना अनिवार्य कर दिया गया।