Polygamy: असम में बहुविवाह पर रोक लगाने की तैयारी में सरमा सरकार, पढ़ें इसको लेकर भारत में क्या है नियम
Polygamy असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने राज्य में बहुविवाह पर रोक लगाने की तैयारी कर रही है। इसको लेकर एक विशेष समिति का गठन भी किया गया है जो इस बात की जांच करेगी कि इसको लेकर नियम बनाने का अधिकार राज्य सरकार के पास है या नहीं।
नई दिल्ली, शालिनी कुमारी। असम सरकार बहुविवाह पर रोक लगाने की तैयारी कर रही है। इस बात की घोषणा राज्य के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने की है। दरअसल, एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि वो राज्य में बहुविवाह की प्रथा को खत्म करने का प्रयास करेंगे ताकि सभी को समान नागरिक अधिकार मिल सके।
राज्य में बहुविवाह प्रथा पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी
सीएम सरमा ने कहा कि इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने के लिए राज्य ने एक समिति तैयार की है, जो इस बात का पता लगाएगी कि बहुविवाह (Polygamy) पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार राज्य सरकार के पास है या नहीं। इसके लिए सीएम ने ट्वीट भी शेयर किया था। इस खबर में हम आपको बताएंगे कि बहुविवाह क्या है, इसको लेकर भारत में क्या कानून है और यह कितने प्रकार की होती है।
क्या हैं बहुविवाह? (What Is Polygamy)
बहुविवाह शब्द ग्रीक के पोलुगा मियां से बना है, जिसका मतलब 'कई शादियां' है। किसी भी महिला या पुरुष का एक से अधिक शादियां करना पोलीगेमी है। समाजशास्त्र के मुताबिक, यदि पुरुष जब एक ही समय में एक से ज्यादा महिलाओं से शादी करता है, तो बहुविवाह कहलाता है। वहीं, यदि महिला एक समय में एक से ज्यादा पुरुषों से विवाह करती है, तो इसे बहुपतित्व कहते हैं।
क्या है बहुविवाह के नियम? (Law For Polygamy)
IPC की धारा 494 के तहत एक से अधिक शादियां यानी बहुविवाह करना अपराध है। यदि किसी का पहला पति या पत्नी जिंदा है, तो वह दूसरी शादी नहीं कर सकता। यदि पहले पति या पत्नी के रहते हुए, कोई दूसरी शादी करता है, तो उसे वैध नहीं माना जाता है। ऐसा करने पर उसे जेल की सजा भी हो सकती है।
मुस्लिमों को बहुविवाह की अनुमति
हालांकि, हमारे देश में आईपीसी की धारा 494 के तहत मुस्लिम पुरुषों को एक से ज्यादा शादी करने की छूट दी गई है। भारत में मुस्लिमों को एक से अधिक शादी करने का अधिकार है। उनके शरियत कानून में भी इस बात की अनुमति दी गई है कि एक पुरुष एक से ज्यादा शादियां कर सकता है। मुस्लिमों के शरियत कानून के मुताबिक, पहली पत्नी की सहमति से पुरुष चार शादियां कर सकता है।
मुस्लिमों में महिलाओं को नहीं अधिकार
आपको बता दें, मुस्लिमों में यह अनुमति केवल पुरुषों को होती है, वे एक से अधिक शादियां कर सकते हैं, लेकिन यदि किसी महिला को एक से अधिक शादी करनी होती है, तो इसके लिए उसे अपने पहले पति से तलाक लेना होगा। मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 के तहत दूसरी शादी की अनुमति नहीं है। पहले पति से तलाक लेने के बाद ही वो दूसरी शादी कर सकती है।
बहुविवाह करने पर सजा का प्रावधान
देश के कानून के अनुसार, यदि कोई बहुविवाह करता है, तो इसे अपराध माना जाता है। इसमें दोषी को अधिकतम सात साल की सजा हो सकती है। साथ ही, दोषी पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। हालांकि, यदि कोर्ट की ओर से पहली शादी को अवैध घोषित कर दिया गया, तो ऐसे में दूसरी शादी करने वाले को दोषी नहीं कहा जाता है।
आसान शब्दों में कहे तो, बाल विवाह के मामले में पहली शादी को अवैध घोषित कर दिया जाता है। इसके अलावा, यह कानून तब भी लागू नहीं होता, जब पति या पत्नी सात साल से अलग रह रहे हों। सात साल तक पति या पत्नी लापता रहे या साथ न रहें तो, ऐसी स्थिति में पति या पत्नी किसी और से विवाह कर सकते हैं।
बहुविवाह में आती हैं कई परेशानियां
भारतीय कानून के मुताबिक, मुस्लिमों को बहुविवाह करने की अनुमति है, लेकिन इसमें भी कई बार शिकायत देखने को मिलती है। कानून के मुताबिक, यदि पहली पत्नी अनुमति देती है, तभी दूसरी शादी की जा सकती है, लेकिन अक्सर शिकायत मिलती है कि पुरुष दूसरी शादी के लिए पत्नी से इजाजत नहीं लेता है। इस कारण से वे महिलाएं काफी अपमानित महसूस करती हैं।
इसके अलावा, यह शिकायत भी मिलती है कि दूसरी शादी करने के बाद पति अपनी पहली पत्नी और उससे जन्मे बच्चों पर ध्यान नहीं देता है, जिससे उन बच्चों के पालन-पोषण का भार केवल महिला के कंधे पर आ जाता है। मजबूरन, अंत में महिलाओं को कानूनी सहारा लेना पड़ता है।
कई मुस्लिम बहुल देशों में प्रतिबंधित है बहुविवाह
आपको बता दें, तुर्की और ट्यूनीशिया जैसे मुस्लिम बहुल देशों और दुनिया के अधिकतर मुस्लिम बहुल देशों में बहुविवाह पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। वहीं, संयुक्त राष्ट्र भी बहुविवाह प्रथा को अस्वीकार करता है और उसका मानना है कि यह महिलाओं के खिलाफ किया जाने वाला भेदभाव है।
आपको बताते चलें कि, भारत में बहुविवाह कानून का प्रस्ताव पिछले सात दशकों से विवादास्पद रहा है। अब तक यह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका है। यदि देश में इसको लेकर कानून बन जाता है, तो अलग-अलग धर्मों द्वारा विवाह, तलाक और संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर तय किए जाने वाले नियम कानूनों द्वारा तय होंगे।
भारत में बहुविवाह के आंकड़े
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के 2019-2020 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हिंदुओं की 1.3 प्रतिशत, मुसलमानों की 1.9 प्रतिशत और दूसरे धार्मिक समूहों की 1.6 फीसदी आबादी में आज भी एक से ज्यादा शादी करने की प्रथा जारी है।
एक सर्वे के अनुसार, बहुविवाह प्रथा की दर गरीब, अशिक्षित और ग्रामीण तबकों में आज भी बहुत ज्यादा है। कहा जा सकता है कि बहुविवाह के मामलों में क्षेत्र और धर्म के अलावा सामाजिक-आर्थिक मुद्दों की भी अहम भूमिका रहती है।
सुप्रीम कोर्ट में हुई थी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर आखिरी बार सुनवाई 23 मार्च, 2023 को हुई थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि पांच न्यायाधीशों की नई संविधान पीठ का गठन किया जाएगा। सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला की पीठ से वकील अश्विनी उपाध्याय ने मामले पर नई संविधान पीठ के गठन का अनुरोध किया था।